महफ़िल में बार बार किसी पर नजर गयी ,
हमने बचाई लाख मगर फिर भी उधर गयी !

नजरबन्द जालिम नजर हमारी बहक गयी,
उनसे मिली नजर,नजर हम पर ठहर गयी !

कातिल नजर पर नजर रखने को नजर रखी,
नजरो से नजर दिल में कब गहरी उतर गयी!

नजर को उनकी नजराना नजर किया गया,
नजराने की तरफ जरा भी नजर नहीं गयी !

हमारी नजर जब से उनकी नजर से चार हुई,
हो नजर उनकी इनायत नजर तरस सी गयी !

नजरो ही नजरों में मोहब्बत उनसे हो गयी,
मेरी नजर को उनकी नजरो की लत हो गयी!

प्यासी नजर उनकी नजरों की मुरीद हो गयी ,
हमारी नजर उनकी नजरो के संग चली गयी!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

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