वो नासमझ समन्दर को मीठा करने आया है,
मुट्ठी भर शक्कर पुड़िया में बांधकर लाया है!

कत्ल करके अस्थियां गंगा में बहाने लाया हैं,
रंगकर हाथ खून से पापों को धोने आया है!

छोड़कर मरणासन्न माँ बाप को वृद्धाश्रम में ,
बाप की पूंजी से आलीशन कोठी बनवयी हैं !

छोड़कर अकेला तन्हा न रहो कहने आया है,
वो मुझे भूल जाने की नसीहत देने आया है !!

जहर मिला दूध सोने के प्याले में लाया हैं ,
मारने को मुझे मधुपर्क बनाकर लाया है !!

लगवाकर अपने नाम की मेहन्दी हाथो में,
गुलाब को महक छुपाने को कहने आया है!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

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