लोकपाल शाब्दिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा  के “लोक” तथा ” पाल” शब्द से बना है । जिसमें लोक का अर्थ लोगों से हैं तथा पाल का अर्थ रक्षक या रखवाले से है। इस प्रकार शाब्दिक दृष्टिकोण से लोकपाल का अर्थ जनता का रक्षक या जनता की रक्षा करने वाले से हैं। किसी भी देश में इस तरह के पद या संस्था का सृजन या  इस तरह के किसी कानून निर्माण करने का उद्देश्य राजनीति के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को खत्म करना है।

  • लोकपाल /LOKPAL

स्वीडन में सर्वप्रथम 1809 में संविधान के अन्तर्गत ‘ओम्बुड्समैन’ की स्थापना की गयी थी। इसकेेे पश्चात विश्व केेे कई देशों ने इस प्रकार के पद का सृजन हुआ। 

लोकपाल ओंबड्समैन का ही भारतीय संस्करण है। इसे ब्रिटेन में संसदीय आयुक्त के नाम से जाना जाता है।  ओंबड्समैन स्वीडिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ जन शिकायतों को सुनने वाला होता है। 
स्वतंत्रता और संविधान लागू होने के पश्चात भारत में लोकपाल शब्द सर्वप्रथम सन 1963 में देश के जाने माने विद्वान लक्ष्मी मल सिंघवी ने दिया था।भारत में शासकीय कर्मचारियों की मनमानी, अक्षमता, उदासीनता तथा उसके अविवेकीय कार्य और भ्रष्टाचार के विरुद्ध नागरिकों को संरक्षण देने के उद्देश्य से अनेक संस्थागत व्यवस्थाओं का प्रावधान समय समय पर किया जाता रहा है। जैसे-

० के. संथानम समिति 1962 (भ्रष्टाचार निवारक समिति  1962 ) 

० केंद्रीय सतर्कता आयोग 1964 ज्ञात हो कि यह सतर्कता आयोग के. संथानम समिति 1962 के परामर्श के आधार पर स्थापित किया गया ।

० केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) 1963 

० केंद्रीय प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 (मोरारजी देसाई आयोग)-  इस आयोग के द्वारा नागरिकों की शिकायत निवारण हेतु लोकपाल एवं लोकायुक्त जैसी संस्था की स्थापना गठन किए जाने की सलाह दी थी।

ज्ञात हो कि इससे पूर्व भारत में सर्वप्रथम 1963 में राजस्थान प्रशासनिक सुधार आयोग (हरिश्चंद्र माथुर समिति) ने सर्वप्रथम सुझाव दिया था कि भारत में भी ओंबड्समैन जैसी संस्थाएं होनी चाहिए। 

  • ध्यातव्य –  

प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 का गठन श्री मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में गठित हुआ था लेकिन देसाई के मंत्री बनाए जाने पर इस आयोग का अध्यक्ष के हनुमंंतेया बनाये गये थे।

इस प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश के आधार पर ही सर्वप्रथम 9 मई 1968 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन गृह मंत्री वाई. वी .चह्वाण द्वारा संसद में लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक प्रस्तुत किया गया था।

सन 2011तक इस प्रकार के विधेयक करीब 10 बार संसद में लाया जा चुका था। ( 1968, 1971, 1977, 1985 1989, 1996, 1998, 2001, 2005, 2008 और 2011 ) 01 दिसंबर 2011 में इस प्रकार का विधेयक अंतिम बार लाया गया था लेकिन यह लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक 2013 के रूप में पारित हुआ था ।

  • लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2013

दिसंबर 2011 में लाया गया लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा में तथा 18 दिसंबर 2013 को लोकसभा में पारित हुआ । दोनों सदनों में पारित होने के पश्चात  यह 1 जनवरी 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

  • लोकपाल का संगठन  व सरंचना

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत लोकपाल एक ऐसी संस्था है जिसमें सभापति के अलावा 8 सदस्य होंगे सभापति तो सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या पूर्व मुख्य न्यायाधीश या कोई प्रसिद्ध व्यक्ति हो सकता है।

8 सदस्यों में से 50% सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए जो कि सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के पूर्व या वर्तमान न्यायाधीश हो सकते हैं।
कुल सदस्यों में से 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक वर्ग में से होंगे।  
सामान्यतः लोकपाल व्यक्ति सदस्य बनाए जाते हैं जिन्हें करीब 25 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव प्राप्त हो।

  • कौन नहीं हो सकते लोकपाल संस्था के सदस्य

लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अंतर्गत लोकपाल जैसी संस्था को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं जैसे -लोकपाल एवं लोकायुक्त संस्था में कोई सांसद, कोई विधायक, पंचायत सदस्य एवं नगरपालिका के सदस्य इसके सदस्य नहीं हो सकते । 
किसी राजनीतिक दल से संबंधित व्यक्ति इसका सदस्य नहीं हो सकता है ।
किसी लाभ के पद पर ना हो या यदि हो तो लोकपाल में पद ग्रहण करने से पूर्व में लाभ के पद से त्यागपत्र देना होता है।
ऐसे किसी व्यवसाय या से संबंधित न हो जिसका संबंध सरकार से हो।

  • नियुक्ति

लोकपाल की नियुक्ति एक चयन समिति के परामर्श पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इस चयन समिति में एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य होते हैं,जिनमें प्रधानमंत्री इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। इसके अतिरिक्त लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा चयन समिति की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा एक नामित व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं।

  • ध्यातव्य

सभापति लोकपाल का दर्जा भारत के मुख्य न्यायाधीश के समकक्ष तथा अन्य इसके सदस्यों का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है।

  • कार्यकाल- 

लोकपाल जैसी संस्था को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए उनके कार्यकाल और इन्हें हटाए जाने से संबंधित विशेष प्रावधान लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अंतर्गत किए गए है।

० लोकपाल का कार्यकाल पद ग्रहण करने से 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु पूर्ण होने  जो भी पहले पूर्ण होता है तक होता है।

० कोई भी व्यक्ति अपने पद पर पुनःनियुक्ति का पात्र नहीं होता है।

० सेवानिवृत्ति के पश्चात भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद प्राप्त नहीं किया जा सकता ।

० किसी भी प्रकार के चुनाव के लिए योग्य नहीं होगा। 

० कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व उन्हें कदाचार या अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है ।

  • कार्यकाल से पूर्व हटाए जाने की प्रक्रिया 

संसद के कोई भी 100 सदस्य राष्ट्रपति से याचिका करने पर एक निश्चित प्रक्रिया के द्वारा जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच की जाएगी और आरोप सही पाए जाने पर राष्ट्रपतिय द्वारा हटाया जा सकता हैं।

  • कार्य एवं शक्तियां 

० सीपीसी 1908( सिविल प्रोसीजर कोड 1908) के तहत समन जारी करना । – समन एक ऐसा विधिक नोटिस है जिसके उल्लंघन पर दंडित किए जाने का प्रावधान होता है ।

० शपथ पत्र पर गवाही लेना गवाह की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग करना ।

  • लोकपाल को निम्न शक्ति प्राप्त होती है 

० आरोपित अधिकारी का स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।

० सीबीआई को जांच करने का आदेश दे सकता है।इस दौरान सीबीआई लोकपाल के प्रति उत्तरदाई होती हैं। 

० लोकपाल के स्वयं के न्यायालय होंगे जिन्हें 3 माह में मामले का निपटारा करना होता है लेकिन इसका अधिकतम समय 1 वर्ष का हो सकता है ।

० दोषी अधिकारी से भ्रष्टाचार की राशि वसूल कर सकता है और दोषी अधिकारी की संपत्ति कुर्क किया करने का अधिकार प्राप्त होता है।

  • लोकपाल का क्षेत्राधिकार 

० प्रधानमंत्री इसके दायरेेेे और अधिकार क्षेत्र आते हैं लेकिन ध्यान देने योग्य हैं किन के द्वारा परमाणु ऊर्जा अंतरिक्ष उत्साह विदेशी संबंध तथा लोक रस्ता के बारे में लिए गए निर्णय के बारे इसके दायरे से बाहर होते हैं ।

० सांसद,मंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री इसके दायरे में आते हैं ।

० केंद्र सरकार के सभी मंत्री, पूर्व मंत्री तथा वर्तमान सांसद, पूर्व सांसद लोकपाल के दायरे में आते हैं।

० केंद्रीय सेवाओं के सभी श्रेणियों के सभी अधिकारी तथा पूर्व अधिकारी, संसदीय अधिनियम से स्थापित सभी संस्थाओं के सभी अधिकारी तथा कर्मचारी व सेवानिवृत्त अधिकारी ।

० अखिल भारतीय सेवाओं के सभी अधिकारी तथा पूर्व अधिकारी ।

० विश्व के किसी भी भाग में कार्यरत भारत सरकार का अधिकारी तथा सेवानिवृत्त अधिकारी व कर्मचारी लोकपाल के दायरे में आते हैं।

  • ध्यातव्य

लोकपाल के अधिकार क्षेत्रों के अलावा कुछ नियम और शर्तें भी जोड़ी गई है जैसे लोकपाल स्वयं किसी प्रकार की सजा नहीं दे सकता है। लोकपाल ऐसे मामले की जांच नहीं कर सकता जिनको घटित हुए 7 वर्ष का समय बीत चुका हो । 
झूठी शिकायत का दोषी पाए जाने पर 1 वर्ष की सजा तथा ₹ एक लाख का जुर्माना/ दंड दे सकता है।

  • वर्तमान लोकपाल 

लोकपाल विधेयक के पारित होने और राष्ट्रपति के स्थापित होने के बावजूद भी काफी लंबे समय तक इस पद पर नियुक्ति में डेरी देखने को मिली ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इस पद पर पहली बार नियुक्ति की गई ।न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष वर्तमान लोकपाल है जिनको लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने  23 मार्च 2019 को पद की शपथ दिलाई थी।वहीं घोष ने लोकपाल के आठ सदस्यों को 27 मार्च, 2019 को शपथ दिलाई थी।

ध्यातव्य सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पी. सी घोष देश के वर्तमान लोकपाल के साथ-साथ देश के पहले लोकपाल भी  हैं।

  • ध्यातव्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने उनके नाम की सिफ़ारिश की थी।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page