किसी ने क्या खूब कहा है की धन के रूप में लक्ष्मी है नारी ,विद्या के रूप में सरस्वती है नारी , माँ भी है नारी, बहन भी है नारी, बहु भी नारी, बेटी भी है नारी ,जिस रूप में देखो बड़ी महान है नारी ।  लेकिन आज के इस दौर में  मजबूर और लाचार क्यों है नारी , वैश्विक कोरोना महामारी की वजह से जब पूरे देश मे लॉक डाउन लागु है।  लोग अपने अपने घरों में कैद है फिर भी इस दौर में भी महिलाएं सुरक्षित नजर नहीं आई । जब लोगों को घर से बाहर निकल ले पर भी पाबंदी है उस दौर में थी महिलाएं उत्पीड़न की घटनाएं सामने आई। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के हथौड़ी थाना क्षेत्र के अंतर्गत डकरामा गांव  मैं महिलाओं को डायन और चुड़ैल बताकर उसके साथ दुर्व्यवहार किए जाने की घटना विभिन्न समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी यही नहीं यूपी के अलीगढ़ और राजस्थान के सवाई माधोपुर से महिला उत्पीड़न की घटनाये सामने  आई  जहां लड़कियों के साथ गैंगरेप की घटना हुई. ।अलीगढ़ में तो गैंगरेप के अभियुक्तों को सजा भी सुनाई गई, पीड़ित लड़की ने उससे आहत होकर आत्महत्या कर ली तो सवाई माधोपुर में क्वारंटीन में रह रही महिला के साथ गैंगरेप हुआ. । लॉकडाउन की वजह से क्वारंटीन में रुकी एक महिला से सरकारी स्कूल परिसर में ही सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आया है. आखिर ऐसी घटनाएं हमें और समाज को किस तरफ ले जा रही है । सुधार के भले ही बड़े-बड़े दावे किए जाते रहे हो लेकिन मनुष्य की कुंठित मानसिकता आज भी बरकरार है ।

    निसंदेह इस धरा पर विद्यमान समस्त जीवन में से मानव ही एक ऐसा जीव है जिसमें विवेक, संस्कृति, सभ्यता , नैतिकता और मानवता के गुण विद्यमान है लेकिन आज समाज में जिस तरह की घटनाएं जेसे हत्या, चोरी, डकैती ,लूटमार, बलात्कार, मासूम बालिकाओं के साथ दरिंदगी । महिलाओं के प्रति गंभीर प्रकार के अपराध जैसी  अनेक अमानवीय घटनाएं समाज में देखने और सुनने को मिलती है । क्या इन सब से यह साबित नहीं होता है कि आज का मानव अपने मानवीय गुणों से दूर भागता नजर आ रहा है । इसी परिप्रेक्ष्य में आज हम देखे तो महिलाओं के प्रति अत्याचार और अमानवीय व्यवहार की घटनाएं आम बात हो गई है जैसा कि पिछले दिनों……. ऐसी ही खबरें आए दिन समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती है ।

भारतीय संस्कृति में नारी 


भारतीय संस्कृति में नारी में देवी का स्वरूप देखा गया है और हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी नारी को पूजनीय स्थान दिया गया है लेकिन वर्तमान भौतिकवादी युग में नारी के रूप में करुणा ,,प्रेम, दया, विद्या की देवी के रूप में प्रतिष्ठित होते हुए भी समाज के कुछ लोगो की कुंठित सोच के कारण महिला दूसरे दर्जे पर आ गई है । हमारे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में अर्धनारीश्वर का उल्लेख किया गया है इसका अर्थ आधा भाग नारी  ओर आधा भाग पुरुष होने से है लेकिन क्यो समाज  ईश्वर का आधा भाग हाकिम  ओर आधा भाग  गुलाम बन गया है । यह स्थिति आज गांव में अधिक देखने को मिलती है । यह सब कुछ हमें सोचने को मजबूर करते हैं ।
वैदिक काल में तो महिलाओं की स्थिति आपकी अच्छी थी उसे समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ उत्तर वैदिक काल में नारी की स्थिति व सम्मान में परिवर्तन का रूप नजर आने लगा था और यह स्थिति निरंतर बिगड़ती चली गई। 
 वर्तमान में महिलाओं के  साथ किस तरह का व्यवहार हो रहा है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी भारतीय नारी आज हर क्षेत्र में पुरुष वर्ग से कंधा से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं । यही नहीं आज महिलाएं कई क्षेत्रों में पुरुषों से भी आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का लोहा मना रही है जो यह साबित कर रहा है कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं है। समाज में महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं से तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाज में महिलाओं के बारे में पूर्वाग्रह की भावना का अस्तित्व आज भी है ।

भ्रूण परीक्षण और नारी


गर्भवती महिला का भ्रूण परीक्षण करवाकर लड़की होने पर उसका गर्भपात करने  लड़की को इस दुनिया में आने से पहले ही खत्म कर  देने की कुंठित मानसिकता  रखते है  हालांकि ऐसी घटनाएं सरकारी प्रयासों और आम जनता की जागरूकता की वजह से आज काफी कम हो गई हैं।  

दहेज प्रथा और भारतीय नारी


शादी के पश्चात अनेक बार महिलाएं दहेज के नाम पर सताई जाती है । कुछ मामलों में महिलाओं ने भी इस दहेज के कानून का दुरुपयोग की जाने की घटनाएं हुई है लेकिन आज भी इसमें सुधार की आवश्यकता है । नये सपने को सजाए दुल्हन के कोमल हृदय को कुचल दिया जाता है।  गला घोटकर , मिट्टी का तेल डालकर जला दिया जाता है या फिर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है । जिस समाज में नारी की स्थिति पर दहेज की तलवार हमेशा लटकी रहती है उस नारी की वेदना को कौन समझे ।  सरकार ने दहेज प्रथा पर रोक हेतु कानून बनाया था जो आज भी विद्यमान है आए दिन महिलाएं  दहेज के नाम पर सताई जाती रही है इस कुप्रथा, ओर कुंठित सोच को  जड़ से मिटाने के लिए युवाओं को आगे आकर सकारात्मक भूमिका निभानी होगी । समाज के हर व्यक्ति को यह सोचना होगा कि वह भी बेटी वाला है ।

कुप्रथाये और भारतीय नारी


विज्ञान की प्रगति व शिक्षा का प्रचार होने के बावजूद भी आज अंधविश्वास के चलते बूढ़ी ,अपाहिज या लाचार महिलाएं डायन और चुड़ैल के नाम पर उत्पीड़ित की जाती है जैसा कि पिछले दिनों बिहार में हुआ । यही नहीं भारतीय महिलाओं के शोषण व उत्पीड़न के कई अन्य रूप के सामने आते रहे हैं । जिनकी वेदना महिलाओं को अपने जीवन में भुगतनी पड़ती है । कई घटनाएं तो कानून के पंजों से बाहर रह जाती है सरकार ऐसी घटनाओं ऐसी कुप्रथाओं को रोकने के लिए कानून भी बनाती है लेकिन समाज में अपेक्षित सहयोग के बिना ऐसी प्रथाओं पर पूर्ण रूप से रोक भी नहीं लगा पाती हैं । बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, बेमेल विवाह, आदि हालांकि ऐसी  घटनाये समाज में कम हुई है लेकिन आज भी सुधार की आवश्यकता है।

आखिर सुरक्षित क्यो नही  ?  नारी


    महिला, मासूम बालिका  घर हो या बाहर कहीं भी अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करती है कई बार तो घर में ही अपने नजदीकी रिश्तेदारों या परिचितों के हवस का शिकार हो जाती है जब महिलाएं बालिकाएं घर में ही सुरक्षित नहीं है तो किससे अपनी पीड़ा सुनाये।  किसका  विश्वास करें किसका नहीं  ? यह एक सोचनीय विषय है । घर के बाहर तो महिलाएं बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है अकेले कहीं आ जा सकती नहीं महिलाएं बालिकाएं आए दिन मानव के रूप में दानवो की हवस का शिकार हो जाती है अनेक मनचलों की हरकतों का विरोध करने पर हिंसा की शिकार हो जाती है या तेजाब डालकर चेहरा जला दिया जाता है जो कि मानवता के नाम पर एक कलंक है ।

महिला उत्पीड़न और भारतीय नारी


   महिलाओं के प्रति मानवीय अमानवीय व्यवहार में कई बार महिलाएं भी अहम भूमिका निभाती है  कभी दोस्त बनकर कभी सास तो कभी ननद बनकर । यह सोचने का  बिंदु है कि जब महिला ही महिलाओं की वेदना को नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा । बेटी वे बहु में फर्क क्यों होता है ।नारी की वेदना के बारे में क्या कहें और क्या लिखें अस्मिता का संकट समकालीन नारी को दवाई जा रहा है । वह संभलते हुए अपने पांव जमाने की पुरजोर कोशिश कर रही है । अपनी वेदना को मिटाने के लिए नारी को स्वम संगठित होकर संघर्ष करना होगा । वैसे आज महिला आयोग भी नारी के अधिकारों के प्रति संघर्षशील है लेकिन जब तक महिलाएं अपने अस्तित्व को पहचान कर आगे नहीं आती तब तक महिला आयोग भी अपने स्तर पर कहां तक सुधार करेगा । इसके साथ-साथ  समाज को भी महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा ।  बहू  को भी बेटी ही समझना होगा आखिर वह भी किसी की बेटी है। 
घरेलू हिंसा रोकथाम और  कानूनआये  दिन परिवारों में किसी किसी प्रकार से महिला घरेलू हिंसा का शिकार हो जाती है कुछ घटनाएं सामने आ जाती है कुछ घटनाएं परिवार के चार दिवारी हुए ही दफन हो जाते है महिलाओं के साथ किसी प्रकार का शारीरिक दुर्व्यवहार , पीड़ा, अपहानि ,जीवन या स्वास्थ्य को खतरा या किसी प्रकार का लैगिंग दुर्व्यवहार गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार करना उनके साथ मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार अपमान, उपहास, गाली देना या वित्तीय संसाधनों, जिसकी वह हकदार है, से वंचित करना,मानसिक रूप से परेशान करना ये सभी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आते है  सरकार के द्वारा घरेलू हिंसा रोकने के उद्देश्य से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 लाया गया फिर भी आए दिन समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं सुनने और पढ़ने को मिलती हैं सुधार की गर्जना के बावजूद भी महिलाओं के शोषण अत्याचार में कमी क्यों नहीं आ रही है । महिलाओं की सुरक्षा के लिए पिछले दिनों घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून भी बना लेकिन सवाल ये उठता है कि समाज में कितनी महिलाएं घरेलू हिंसा के खिलाफ खुलकर सामने आती है और कानून की मदद लेती है । नारी की वेदना पर क्या कहें आखिर कब तक  समाज, इज्जत के नाम पर कब तक  ये  सहन करती रहेगी । जब तक महिलाये स्वयंअपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होती जब तक वह भय,इज्जत लोक लिहाज के दर से ऊपर उठकर कानून का सहारा नहीं लेगी तब तक कानून भी उनकी मदद नहीं कर सकता

समाज को बदलती होगी मानसिकता


जैसे जैसे समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है और सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में उदारीकरण का प्रभाव बढ़ता है वैसे-वैसे आदमी अधिक पाशविक  होता जा रहा है । महिलाओं के प्रति, बालिकाओं के प्रति पूर्वाग्रह की मानसिकता की वजह से ही बार बार महिलाएं, बालिकाओं को हवस का  ओर उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है । कई मामलों में वहसी  बलात्कारी  ओर उत्पीडक भय के कारण मासूम बालिकाओं को अपनी हवस का शिकार बनाने के पश्चात उसकी हत्या तक कर डालते हैं या कानूनी कार्यवाही न किये जाने का दबाव डाल काट मामले को दबाने की कोशिश की जाती है । न जाने कितनी मासूम बालिका दरिंदों के शिकार का होकर सिसक रही है  न जाने कितनी महिलाये उत्पीडत होकर भी चुप रहती है । क्या यही महिला होने की सजा है ? क्यों दोषियों को समय पर सजा नहीं मिलती है ? क्यो  लोगों के दिमाग में ऐसे अपराध करने से पहले दंड का भय नहीं होता है ?  हालांकि पिछले दिनों कुछ अपराधियों को दंड सजा-ए-मौत दिया है फिर भी क्यो लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही है  ? यह एक चिंतनीय विषय है ।  वर्तमान में अभी  कानूनी की कमजोरी कहे या जनता की जागरूकता की कमी कई अभियुक्त उसका फायदा उठा कर कानूनी पचड़े में उलझा कर  बेदाग और बाइज्जत रिहा हो जाते हैं ।
त्वरित न्याय के साथ जन सहयोग अपेक्षित
  पीड़ितों को समय पर सुलभ न्याय प्राप्त हो और ऐसे दरिंदों को कठोर से कठोर सजा मिले इस प्रकार का प्रावधान कानून में किया जाने की आवश्यकता है क्योंकि कई मामले कानूनी पचड़े में फंस जाते हैं जैसा कि पिछले दिनों निर्भया के दोषियों को सजा मिलने में देखा गया । कितनी ही बार उनकी सजा ए मौत पर रोक लगाई गई कितने ही प्रकार की कानूनी पेच में उलझाया गया  और इन सब में एक लंबा वक्त गुजर गया । 
निसंदेह आज के दौर में सरकारी प्रयासों के साथ-साथ  बदलाव हुआ है लेकिन समाज को भी अपने स्तर पर  पहल ओर सुधार करना होगा  विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र ओर अधिक सुधार की जरूरत है । आम जनता का सहयोग अपेक्षित है तभी सरकारी कानून और न्याय प्रणाली अपने कार्य को सही तरीके से अंजाम दे सकती है तभी होगा  अर्द्धनारिश्वर का रूप साकार ।

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