“वीरो ओर पीरो की खान”  राजस्थान राज्य के केकड़ी जिले की उप तहसील मुख्यालय आज का बघेरा कस्बा  न केवल अपने विश्व प्रसिद्ध शूर वराह मंदिर और प्रेम के प्रतीक तोरण द्वार व अपनी ऐतिहासिकता पौराणिकता के लिए जाना जाता है बल्कि यहां राजा भृतहरि की तपो स्थली भी हैं, जो लोगों को बरबस ही अपनी ओर खिंचती लेती हैं।

बघेरा

बघेरा में  केकड़ी -टोडा रायसिंह बाईपास रोड़ पर पहाड़ी की तलहटी में राजा भृर्तहरि की प्राचीन और शिला खंड की भव्य गुफा। यह गुफा नाथ संप्रदाय के साधुओं की साधना और तपोस्थली है ।

बताया जाता है कि उज्जैन के राजा भृतहरि  ने वैराग्य धारण करने के पश्चात कई जगह पर रहकर तपस्या की थी बताया जाता है कि उज्जैन और अलवर के साथ साथ  बघेरा(अजमेर) में भी तपस्या की थी जिनकी तपोस्थली की गुफा है  जहां पर रहकर उज्जैन के राजा ने वैराग्य धारण करने के पश्चात तपस्या की थी आज भी अपना इतिहास खुद ब खुद बयां कर रही है।

  • कहां है ? भृतहरि की गुफा
  •   राजा भृतहरि की एक गुफा अलवर जिले के तिजारा में है साथ ही बघेरा में भी ऐसी ही तपोस्थली पहाड़ी में एक गुफा में है इसलिए इसे भृतहरि बाबा की गुफा के नाम से जाता है ।
  • विशाल आकार वाली इस गुफा की ऊंचाई लगभग 50 फिट ,गहराई 15 फिट ओर चौड़ाई 16 फिट है गुफा में प्रवेश करने का एक छोटा सा/संकीर्ण द्वार है ।

  ऐसा माना जाता है कि राजा भर्तृहरि ने इस गुफ़ाओं में कई वर्षो तक तपस्या की थी।  आज भी यह स्थान बड़ी बड़ी लांगडियो (पत्थरों की सिला) से घिरा आश्रमनुमा है यहां इस गुफा मे योग-साधन करने का स्थल धूनी / हवन कुंड ,आसन  पगल्या /पद चिन्ह आज भी अपना इतिहास बयान कर रहे हैं । यहां पर एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी गई है । 

भीषण गर्मी में भी शीतलता देती है गुफा

भीषण गर्मी के दौर में भी यह गुफा अंदर से शीतलता प्रदान करती है । मानो वातानुकूलित कक्ष में बैठे है।

  नाथ संप्रदाय के लोगों द्वारा आज भी यहां पर पूजा पाठ किया जाता है साथ ही यहाँ साधु संतों का निवास स्थल है जहा  साधु संत तपस्या में लीन रहते हैं ।

  • विशेष गायन शैली 


भृतहरि की इस तपो भूमि पर भगवा वस्त्र धारण किये नाथ संप्रदाय के लोगों द्वारा विशेष वाद्य यंत्र सारंगी ,मजीरा ओर चिमटा, के साथ  मन को मोह लेने वाली स्वर और शैली में भजन की प्रस्तुति जो एकल और सामुहिक रूप से की जाती है सहज ही लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेती हैं।

  • कौन थे ? राजा भृतहरि


उज्जैन के राजा भृतहरि विक्रमादित्य उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भाई थे तथा इनके पिता का नाम चन्द्रसेन था। राजा भर्तृहरि धर्म और नीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। कथा के अनुसार राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे।

एक दिन जब राजा भृर्तहरि को पता चला की उनकी रानी पिंगला ने उन्हें धोका दिया है वह  किसी ओर पर मोहित है तो यह देख मोह माया  के इस मकड़जाल से उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे राजपाठ  सब कुछ त्याग कर गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए यही बैराग पंथी के प्रथम प्रचारक माने जाते है ।

  • नाथ संप्रदाय के साथ जन जन की है विशेष आस्था


बघेरा कस्बे में राजा भृतहरि की गुफा  नाथ संप्रदाय के लोगों का आस्था का विशेष केंद्र बना हुआ है। इस संप्रदाय के लोग दूर-दूर से इस तपोस्थली पर दर्शन करने आते हैं लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि न केवल नाथ संप्रदाय बल्कि यह स्थान आमजन के लिए भी आस्था का केंद्र बना हुआ है ।

भभूत/राख की है महिमा

आज बड़ी संख्या में भक्त लोग इस तपोंभूमि के दर्शन करने आते है और हवन कुंड की राख/भभूत अपने सर पर लगाते है और पुड़िया बना कर अपने घर ले जाते है,अपने घर के पूजास्थल पर रखते है।

स्थानीय लोग इसे भृतहरि बाबा की गुफा के नाम से पुकारते है । इस पावन धरा के आसपास के क्षेत्र एक मास्टर प्लान के तहत विकसित किया जाए साथ ही इसके प्रचार-प्रसार  की भी आवश्यकता महसूस की जाती है । निश्चित रूप से पर्यटन को बढ़ावा दिया था साथ ही धर्म और अध्यात्म विश्वास करने वाले लोगों को बल मिलेगा सुविधाओं का विस्तार होगा,बस आवश्यकता है स्थानीय लोग और प्रशासन की इच्छाशक्ति की ।

12 thoughts on ““राजा भर्तृहरि की गुफ़ा”/भर्तृहरि की तपों स्थली कहां है ?”
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