राजस्थान की वीर प्रसूता धरा शौर्य के साथ प्रेम और बलिदान की गाथाओं से भी भरी है। प्रेमी युगल ढोला-मारू के प्रेम और समर्पण की कथा राजस्थानी लोक गीतों और किंवदंतियों के साथ आज भी युवाओं के हृदय को तरंगित कर देती है।
- इस गांव में हुआ था ढोला मारू का विवाह
एक किंवंदती के अनुसार ढोला-मारू का विवाह केकड़ी जिले के बघेरा कस्बे में हुआ था जहां आज भी पत्थर (पाषाण) का तोरण द्वार उनके प्रेम का मूक साक्षी है। रेतीले धोरों में उपजे प्रेम को ढोला-मारू ने बघेरा में ही परिणय के अटूट बंधन के रंग में रंगा था। धोरा की धरती राजस्थान में अजमेर मेरवाड़ा में केकडी जिले में बघेरा एक ऐतिहासिक और पौराणिक कस्बा है जो इतिहास ,आध्यत्मिक और प्रेम के अद्भुत स्मृतियों को अपने आप मे समेटता हुआ अपनी गवाही खुद ब खुद ही बयां कर रहा है , ऐसा ही एक कलात्मक और ऐतिहासिक गौरव अमर प्रेमी ढोला मारू के प्रेम और शादी का प्रतिक तोरणद्वार अपनी कहानी स्वमं बयां कर रहा है प्रेमी युगल ढोला-मारू के प्रेम और समर्पण कथा राजस्थानी लोक गीतों और किंवदंतियों के साथ आज भी युवाओं के हृदय को तरंगित कर देती है।
- कौन था ढोला
नरवर के राजकुमार जो कि झालावाड़ जिले में है ढोला का वास्तविक नाम तेजकरण था ।
बघेरा कस्बे के मध्य में स्थित पाषाण का तोरण द्वार उनके प्रेम के साक्षी के रूप में विद्यमान है। करीब 1100 वर्ष पुराने इस तोरण द्वार पर अजंता-एलोरा की तरह ढोला-मारू सहित कई तरह की मूर्तियां उकेरी गई हैं। साथ ही ढोला मारू की विवाह की प्रतीक के रूप में चवरिया भी उस जगह पर है तोरण द्वार का पत्थर भी नजदीकी गांव घटियाली का काम में लिया गया था।
- कस्बे में है एतिहासिक तोरण द्वार
कस्बे में स्थित इस ऐतिहासिक तोरण द्वार और स्मारक पर नवग्रह एवं अन्य देवी-देवताओं नृत्य करते हुए अप्सराएं आदि उकेरी हुई है इसके एक और खंभे पर एक लेख खुदा हुआ था जो अब समय की मार के कारण और जन उपेक्षाओं के कारण नष्ट हो गया है एक इतिहासकारों ने इस लेख को नई तकनीक से पढ़ने का प्रयास किया और यहां के बुजुर्गों ने इस लेख के बारे में बताया कि यह ढोला एवं मारूवणी के विवाह की स्मृति का लेख है जिसका उल्लेख अनेक ऐतिहासिक पुस्तको में भी मिलता है के अतिरिक्त इस ऐतिहासिक ग्राम पर कई इतिहासकारों ने अध्ययन किया और उनकी पुस्तकों में इस प्रकार के प्रमाण मिलते हैं बघेरा के इतिहास पर लिखी गई पुष्पा शर्मा की पुस्तक मैं भी इस बात का उल्लेख आता है ।राजस्थानी काव्य राजस्थानी साहित्य की प्रसिद्ध पुस्तक
- यह दोहा प्रमाणित करता है किवदंती को
“ ढोला मारू रा दूहा “ के संस्करणों में भी इस लोक संवाद की पुष्टि होती है इस वार्ता के संस्करण में विवाह विषयक विवरण निम्न पंक्तियों में मिलता है।
तोरण खड़क्या तीन सौ चवरी पदम पचास बहतर मन मिर्ची लगी अन का करो विचार
संवत नवो अणतरो दुई घर हुयो उछाहढोला मरु परणीया हुयो बघेर ब्याह
बले बघेरा देवगांव सागर घणा निवाणधन भटियाणी माखण पित ढोला चनहाण
देव बघेरई दीयए रे में लाणउचरई बामण वेद पुराण
- यह है किवदंती
उपरोक्त दोहे में बताया जाता हैं कि तोरण मारने की रस्म व विवाह बंधन में बंधने के समय भोजन के दौरान 72 मण (2280 किग्रा) लाल मिर्च का उपयोग हुआ था। औसतन एक किग्रा सब्जी में 20 ग्राम लाल मिर्च डाली जाती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हजारों लोगो की भोजन की व्यवस्था यहां की गई थी साथ ही यह भी प्रतिपादित होता है कि इस विवाह में 300 तोरण मारे गए थे एवं 50 चवरिया में विवाह संपन्न हुआ था अर्थात ढोला-मारू के साथ अनेक जोड़ों का विवाह यहां हुआ राजतंत्र में परंपरा हुआ करती थी की।
- यह रही है परंपरा
राज परिवार के सदस्यों के विवाह के साथ-साथ अपने दास दासियो के विवाह भी संपन्न करवाए जाते थे जो कुछ भी हो ढोला मारु का ऐतिहासिक विवाह स्थल इसी ग्राम बघेरा में इसे तोरण द्वार के सामने माना जाता है जहां प्रतीक के रूप में आज भी चवरिया एवं थाम के रूप में खंबे विद्यमान है कहा जाता है कि ढोला की आयु उस समय 3वर्ष 6 माह एवं मारु की आयु लगभग 1 वर्ष 6 माह (डेढ़ वर्ष ) की थी जब उनका विवाह हुआ था।
राजस्थानी काव्य साहित्य की प्रसिद्ध पुस्तक ढोला मारू का दोहा की एक प्रति बघेरा के पुस्तकालय में स्थित है जिसमें उल्लेख है यह कि ढोला के पिता राजा नल के आराध्य देव महा वराह थे एवं इसीलिए पोंगल के राजा पिंगल की पुत्री मारवणी से अपने पुत्र का विवाह उन्होंने आराध्य देव के सम्मुख बघेरा जो कि भगवान शुर वराह (महा वराह ) का एक पौराणिक स्थान है में किया। बीसलदेव रासो पुस्तक से प्राप्त होती है जिसमें बघेरा की अहम भूमिका है और चौहान राजा बीसलदेव का भटियाणी से विवाह में यह स्थान मुख्य रहा।
- कौन थे ढोला-मारू..
- आठवीं सदी की इस घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक.प्रेमी नायक के रूप में याद किया जाता है। लोक गीतों में महिलाएं अपने प्रियतम को ढोला के नाम से संबोधित करती हैं। इस प्रेमाख्यान का नायक ढोला नरवर के राजा नल का पुत्र था जिसे इतिहास में ढोला व साल्हकुमार के नाम से जाना जाता है। ढोला का विवाह बीकानेर के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री मारवणी के साथ हुआ था।
उस वक्त ढोला तीन वर्ष का मारवणी मात्र डेढ़ वर्ष की थी, इसीलिए शादी के बाद मारवणी को ढोला के साथ नरवर नहीं भेजा गया। बड़े होने पर ढोला की एक और शादी मालवणी के साथ हो गई। बचपन की शादी ढोला भूल गया। मारवणी प्रौढ़ हुई तो पिता ने ढोला को नरवर संदेश भेजा।दूसरी रानी मालवणी को ढोला की पहली शादी का पता चल गया।
मारवणी जैसी बेहद खूबसूरत राजकुमारी कोई और न हो इस ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल तक कोई भी संदेश नहीं पहुंचने दिया। वह संदेश वाहक को ही मरवा डालती। उधर मारवणी को स्वप्न में प्रियतम ढोला के दर्शन हुए और वह वियोग में चलती रही। बाद में पिता पिंगल ने चतुर ढोली को नरवर भेजा और गाने के माध्यम से ढोला को याद दिलाया और मारवणी ने मारू राग में दोहे बनाकर दिए। बाद में संदेशवाहक ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया ऐसे सुहाने मौसम में ढोली की मल्हार राग का मधुर संगीत ढोला के कानों में गूंजने लगा ।’
ढोला नरवर सेरियां, धण पूंगल गळीयां आखडिया डंबर भई-नयण गमाया रोय, क्यूँ साजण परदेस में, रह्या बिंडाणा होय। दूज्जण वयण न सांभरी, मना न वीसारेहकुंझा लालबचाह ज्यूं खिण खिण चितारेहजे थूं साहिबा न आवियो, सावण पहली तीजबीजल तणे झवूकडे, मधु मरेसी खीज
यथार्थ मरु की आंखें लाल हो गयी है ए रो रो कर ओर नयन गँवा दिए है, साजन परदेस में क्यों पराया हो गया है। इसके बाद ढोली ने मारु के सौंदर्य का वर्णन कुछ इन शब्दों में किया।
रमणी, खमणी,बहुगुणी सुकोमली सुकच्छ गोरी गंगा नीर ज्यूँ, मन गवरी तन अच्छ गति गयनद जंघ केल ग्रभ, केहर जिमि कतिलंकहीर डसन विप्रभा अधर मरवण भ्रुकुटी मयंकआदिता हूँ अजलो मारुणी मुख ब्रणझीणा कपडा पेरणा, ज्यो झांकीई सोब्रण
ढोंली (संदेश वाहक) की यह कविता सुनकर ढोला ऊंट पर सवार होकर मारू से मिलने के लिए रवाना हो गया।
- बघेरा की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते कुछ ऐतिहासिक ग्रंथ
कहावत और ऐतिहासिक प्रमाण इस बात को और अधिक प्रमाणित करते हैं कि अजमेर जिला का यह गांव जो अपने आप में ऐतिहासिकता आध्यात्मिकता और पौराणिक को समेटे हुए हैं अनेक ऐतिहासिक आध्यात्मिक और पौराणिक ग्रंथों में इस कस्बे का नाम है साथ ही इस गांव पर राजस्थान के अनेक जाने-माने इतिहासकारों ने शोध कार्य किया है जैसे कर्नल जेम्स टॉड, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, बृजमोहन जावलिया की।पुस्तकें ।
इसके अतिरिक्त अनेक पुरातत्व वेदों के ग्रंथों में इस गांव का उल्लेख हुआ है डॉ मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित “ अजमेर जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन” “ अजमेर जिले का इतिहास” डॉ गोपीनाथ शर्मा के द्वारा लिखित “राजस्थान के इतिहास के स्रोत” हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा लिखित “ बाणभट्ट की आत्मकथा “ डॉ. परमेश्वरी लाल गुप्त के द्वारा लिखित “ प्राचीन भारतीय मुद्राएं “
डॉ. बृजमोहन जावल्या द्वारा लिखित “बघेरा का इतिहास “ शिव शर्मा के द्वारा लिखित “अजमेर इतिहास और पर्यटन” तथा सुजस के विभिन्न अंग जनसंपर्क -निदेशालय जयपुर के द्वारा जारी किए गए बघेरा पर लिखी गई पुस्तक ,पुष्पा शर्मा की पुस्तक -बघेरा इतिहास संस्कृति और पर्यटन आदि यह ऐसे ऐतिहासिक और शोध ग्रंथ है जो इनको प्रमाणिकता देने में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
- धरोहर संरक्षण अधिनियम 1961
इस अधिनियम के तहत नीला बोर्ड लगा कर इस तोरण द्वार को संरक्षित घोषित जरूर कर रखा है लेकिन यह नीला बोर्ड केवल औपचारिकता मात्रा प्रतीत होता है यह उस पुत्र की तरह नजर आता है जिसे गोद लेकर उसका अपने आपको संरक्षक घोषित कर उसे अपने हाल पर लावारिश की तरह छोड़ दिया जाये।
करीब 1000 से अधिक वर्षों से धूप -छाया- वर्षा की प्राकृतिक मार झेलता हुआ यह गौरव इतिहास और गांव का गौरव बढ़ाता आ रहा है लेकिन क्योकि इस इमारत के एक खंभे में बहुत चौड़ी दरार पड़ चुकी है, जिससे यह ऐतिहासिक स्मारक कभी भी धरासायी हो सकता है । यह गौरव आज जर्जर होकर अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है कोई इसकी सुध लेने वाला नही |
- आखिर कौन है इसके लिए जिम्मेदार…..
वह आम जनता जो कभी इसे अपना गौरव समझती थी उसके द्वारा की जाने वाली उपेक्षा या फिर नीला बोर्ड लगाकर अपने आपको इसका संरक्षक घोषित करने वाला विभाग और सरकार |
जिम्मेदार जो कोई भी हो, कारण जो कुछ भी हो लेकिन यह गोरव आज स्वयं ही मजबूर होकर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है और अपनी इस दुर्दशा पर खुद ही आंसू बहाने को मजबूर हो रही है।
इंतजार है आज भी उस वक्त की जब विभाग और सरकार इसकी की सुध लेगी इंतजार है आज भी उन लोगों का जो इस धरोहर की कद्र करके इसे बचाने में अपना योगदान देंगेइंतजार है आज भी उस मसीहा का जो इस तोरण द्वार के दर्द को महसूस कर सके इंतजार है आज भी जो इस तोरण द्वार की दशा और पीड़ा को समझ सके इन्तजार है आज भी उस व्यक्ति की जो इस धरोहर की संरक्षण की मांग को धरोहर संरक्षण प्राधिकरण ,सरकार और संबंधित विभाग तक पहुंचाएं।
अभी भी वक़्त है इसको बचाने के लिये ….जागो अगर इस धरोहर की यूं ही उपेक्षा होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाली पीढ़ियां यह कहा करेगी कि यहां कभी ढोला मारू की शादी का प्रतिक तोरण द्वार हुआ करता था .अगर अब भी इसकी सुध नहीं ली गई तो इसे केवल इतिहास के पन्नों में ही पढ़ा जाएगा यह इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा ।इतिहास हमे कभी माफ नही करेगा ओर फिर बघेरा के इतिहास, प्रेम के इतिहास में रहेगी तो सिर्फ इसकी यादे, व इसके अवशेष ।
- मैं हूँ बघेरा का गौरव तोरण द्वार……
“गौरव हूं गांव का इतिहास हूँ गांव का गौरव बनकर छा जाऊंगा मीत भूल कर भी मत करना मेरी उपेक्षा नही तो में कही खो जाऊंगा यूं ही उपेक्षा करते रहे मेरी तो वक्त की तरह के पीछे छूट जाऊंगा आंसू बहा रहा हूँ अपनी दशा पर टूट भी गया तो पहचान अपनी छोड़ जाऊंगा ” .
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