कोरोना काल :- मरती मानवीय संवेदनाओ और अवसरवाद की पराकाष्ठा ।

      कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है ।  लेकिन इतना भी क्या  परिवर्तन …….पिछले कुछ वक्त पूर्व जब आसमान में गर्दन ऊंची करके देखा करते थे तो गिद्ध आसमान की ऊंचाइयों पर फतह  करते नजर आया करते  थे । जिन्हें हम ‘चील’  के नाम से पुकारते थे । न जाने वह चील, वह गिद्ध कहां गुम हो गए । वह गिद्ध,  वह चील कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आते । मानो  बेरोजगार हो गये मानो गिद्ध ,    मानो किसी ने उनका रोजगार छीन लिया हो,   मानो इतिहास बन चुके हो ।  इतना भी क्या परिवर्तन  । वो गिद्ध तो गुम होने ही थे जब नए रूप में, नए स्वरूप में नए गिद्ध जो धरती पर पैदा हो गए । उनका रोजगार किसी ने छीन लिया हो । बस फर्क इतना है कि वह गिद्ध  मरे हुए जानवरों को नोचा करते थे और आज के यह नए स्वरूप  , नए रूप के गिद्ध मानवीय संवेदनाओं को नोचते है,  इंसान की मजबूरियों को नोचते हैं , मोका फ़रस्ती का फायदा देखते है । 

   कोरोना काल मे पिछले दिनों इन्हीं नए स्वरूप,  नए रूप के गिद्धों के बारे में सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया में खूब चर्चाएं हुई, खूब खबरें  और समाचार सुनने को  और पढ़ने को मिले । कोरोना काल किसको याद नही है समाज का हर व्यक्ति इससे प्रभावित है ।  इस कोरोना जैसी महामारी के कारण गरीब हो , अमीर हो शहरी हो ग्रामीण हो , महिलायें हो पुरुष हो या बच्चे हो हर कोई त्रस्त है।  हर कोई भयभीत है, हर कोई डरा हुआ है।  किसी ने अपने परिवार के मुखिया को खोया,  तो किसी ने अपने पति और पत्नी को । किसी के सर से मां-बाप का साया उठ गया किसी मां की गोद सूनी हो गई । अस्पतालों में इलाज के लिए बेड / बिस्तर नहीं,  श्मशान घाट में लाशों का अंतिम संस्कार करने के लिए जगह नहीं,।  अस्पतालों के बाहर रोते बिलखते  परिजन, इलाज के अभाव मैं तड़पते मरीज क्या कुछ नहीं देखने को मिला इस दौर में  । ये सब कुछ देख कर  हर किसी का मानवीय मन विचलित हो जाए।

  हे ईश्वर ये नही जानते कि ये क्या कर रहे है । इस   हृदय विदारक दौर में भी इंसान के रूप मे गिद्ध , ऐसे मौकापरस्त इंसान है जिन्होंने सिर्फ अपनी जेब भरने का मकसद रखा,  उनकी मानवीय संवेदना ही कहीं मर चुकी है । बस  मोका      देखते हैं अपनी जेब भरने का । जीवन रक्षक दवाइयों ,इंजेक्शन ,ऑक्सीजन की कालाबाजारी और मोटी रकम  पर उनको बेचना।  मरीज हो या मृतक व्यक्ति उसको घर या अस्पताल तक पहुंचाने में कुछ एंबुलेंस चालकों ने मोटी रकम मनमानी रकम वसूल कर  अपना जेब भरने में लगे है । यहाँ तक कि  नकली इन्जेक्सन बना कर/ बेच कर लोगो की जिंदगियां खतरे में डालने  से भी बाज नही आये ( भास्कर- इंदौर से प्रकाशित खबर के तहत माने तो ऐसे सौदागरों को गिरफ्तार किया है )  ऐसे लोगो ने अपना  जेब भरने का उद्देश्य बना लिया कुुुछ लोगो ने । रोते बिलखते लोगों की आह ऐसे लोगों को विचलित  भी नहीं करते ।  मानो उनकी सारी मानवीय संवेदना ही मर चुकी  हो । ऐसे लोगों को मौत के सौदागर, मौकापरस्त कहे तो कोई दो राय नहीं होगी।  यह इंसान की आसुरी प्रवृत्ति नहीं है तो और क्या है । कवि प्रदीप का वह गीत आज बड़ा सार्थक नजर आ रहा है  -” देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,  कितना बदल गया है इंसान, सूरज ना बदला ,चांद ना बदला, ना बदला आसमान , कितना बदल गया इंसान ।” 

मोकापरस्त अर्थ : अपने लाभ के लिए सदा उपयुक्त अवसर की ताक में रहनेवाला व्यक्ति। 

 अगर इस संसार मे ईश्वर रूपी शक्ति है तो ईश्वर  भी देखता  होगा कि मैंने धरती पर सबसे खूबसूरत और संवेदनाओं को समझने वाला जीव बनाया था इंसान  पर आज उसकी संवेदनाएं आज मर चुकी।  इससे मार्मिक दृश्य को देखकर और ऐसे गिद्ध रूपी इंसानों जिन्होंने भले ही इंसान के रूप में जन्म लिया हो लेकिन उनकी सोच, उनके कर्म  किसी हैवान से कम नहीं है को देखकर सहज ही मन में कुछ भाव प्रकट हो गये………कितना बदल गया इंसान

मेने मौसम तो  मौसम…. मैंने इंसान को बदलते देखा है ।मैंने इंसान को ही नहीं….इंसानियत को भी मरते देखा है ।गिरगिट क्या करें बेचारे ..मैंने इंसान को भी रंग बदलते देखा है ।

मोम क्या करे बेचारी इंसान को भी पत्थर दिल बनते देखा है ।

सुना है आत्मा कभी मरा नहीं करती …मैंने इंसान की आत्मा को भी मरते देखा है 

मैंने इंसान ही नहीं…..इंसानियत को भी मरते देखा है ।गिद्ध को लास को नोचते  देखा है मेने इंसान को ही इंसान को नोचते देखा है ।

लुटाया करते थे जो प्रेम जो इंसान। मैंने इंसान को इंसानियत को लूटते देखा है ।

चंद सिक्को के लालच में …मैंने इंसान को अपना ईमान बेचते देखा है.।

इस महामारी के दौर में मैंने इंसान को  ही इंसान को नोचते देखा है ।

 यह   वक़्त इंसान और इंसानियत दोनों के लिए  एक कठिन वक्त और मुश्किलों भरा  वक्त जरूर है  । ये कठिन वक्त भी निकल जाएगा, यह दौर निकल जाएगा  लेकिन  ईश्वर भी ऐसे  हेवानों, मोका परस्त लोगो को कभी माफ नहीं करेगा । 

कुछ इस प्रकार करे इस समस्या का समाधान 

* ऐसे मोकापरस्त इंसानों, हैवानियत के ऐसे रिश्तेदारों को सबक मिले इनके लिए कठोर से कठोर कानून निर्माण की आवश्यकता है।

* ऐसे मौकापरस्त इंसानों को सोचना चाहिए कि जिस दौर से आज इंसानियत को गुजरना पड़ रहा है उसकी मार कल उन पर या उनके  परिवार , बच्चों पर भी पड़ सकती है।

* ऐसे कर्मचारियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करते हुए उनका तथा उनके अस्पताल का लाइसेंस हमेशा हमेशा के लिए रद्द किया जाना चाहिए । 

* मौका परस्ती  और अवसरवाद को छोड़कर इंसानियत धर्म निभाया जाने की आवश्यकता ।

* कोरोना काल में ऐसे अवसर वादियों पर कार्यवाही करने के लिए एक आयोग/संग़ठन का निर्माण किया जाये जो इस दौरान इससे जुड़े लोगो पर नज़र रखे ।

* जीवन जीना एक मौलिक अधिकार है जिसके लिए या जिसमें सहायक मूलभूत आवश्यकताओं का सौदा करने वाले ऐसे मौत के सौदागरों पर एक अलग से कानून बनाए जाने की आवश्यकता है ।

* यह सदैव याद रखें कि आपके द्वारा किये गए कर्म आपके पास लौट कर आते है और वो भी ब्याज समेत।

* वर्तमान में  इंसान और इंसानियत मुश्किल दौर में है। जितना हो सकता है लोगों की मदद करें। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मो का फल बुरा होता है । 

* महामारी के इस दौर में ऐसे अवसरवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक ऐसे शिकायत पोर्टल बनाया जाना चाहिए जहां पर लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सके ।

* ऐसा प्रयास किया जाए जिसमें पारदर्शिता विकसित हो सके तथा और  अवसरवादियों  को मौका ही नही मिले ।

*  एंबुलेंस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ-साथ लेन-देन का भी पूरा हिसाब रखे जाने का प्रयास हो।

One thought on “अवसरवाद के भेंट चढ़ चुकी है मानवीय संवेदनाएं,”
  1. बिल्कुल सही बात है, इस महामारी ने इन्सान के असली चेहरे को भी बेनकाब किया है ।

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