ब्रह्माणी माता मंदिर  परिसर बघेरा में अनपूर्णा देवी की प्रतिमा  होना रखती है आध्यात्मिक महत्व ,पहला भोग अन्नपूर्णा देवी के लगाए जाने की परंपरा रही है

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     ऐतिहासिक और पौराणिक बघेरा  नगरी में ब्रह्माणी माता मंदिर  कस्बे के पश्चिम की तरफ राज्य राजमार्ग संख्या 116  पर काली पहाड़ी की तलहटी में ब्रह्माणी माता का पौराणिक एवं प्राचीन मंदिर जहां आज भी सैकड़ों की संख्या में माता रानी के  भक्तजन व श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं इस पौराणिक मंदिर में माता ब्रह्माणी की सुंदर ओर ममतामय प्रतिमा, मूर्ति स्थित है जोकि काली पहाड़ी के पत्थर में खुदाई की हुई है जहां पर भक्तजन, श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने की आशा और विश्वास लेकर माता के दरबार मे हाजरी देते है ओर प्रार्थना करते हैं  यहां पर दर्शनार्थियों का हमेशा ही तांता लगा रहता है विशेषकर नवरात्रा में तो यहां मेले का माहौल  रहता है दूर-दूर से  दर्शनार्थी यहां दर्शन करने आते हैं , कोई पैदल यात्रा करके आता है तो कोई दंडवत करते हुए आता है अपनी मनोकामनापूरी होने पर भक्तजन यहां भजन संध्या , सवामणी  अनुष्ठान करते हैं ।

  • पहला भोग अन्नपूर्णा देवी के लगाने की परंपरा है ।

   इसके अतिरिक्त  ब्राह्मणी माता मंदिर परिसर में ही त्रिभुजाकार एक पाषाण पर उत्कीर्ण एक प्रतिमा है जिसे लोग आज भी तारा देवी के रूप में सिंदूर लगाकर पूजते हैं इसके पास एक पाषाण पर अन्नपूर्णा देवी के रूप में भी प्रतिमा स्थापित है जो भी ऐतिहासिक आधार  पर अपना अलग ही महत्व रखते हैं । अन्नपूर्णा देवी धन-धान्य संपूर्णता की देवी मानी जाती है जो हमेशा धनधान्य खाद्य पदार्थों का भंडार  भरे रखने की मनोकामना पूरी करती है  ।

बघेरा के इस मंदिर में है अन्नपूर्णा देवी की प्रतिमाबघेरा के इस मंदिर में है अन्नपूर्णा देवी की प्रतिमाबघेरा के इस मंदिर में है अन्नपूर्णा देवी की प्रतिमा

ब्रह्माणी माता मंदिर परिसर में स्थित अन्नपूर्णा देवी की ऐतिहासिक प्रतिमा  प्राचीन हिने के साथ-  साथ ऐतिहासिक महत्व रखती है  कस्बे के बड़े बुजुर्गों की माने तो प्राचीन समय से ही ब्रह्माणी  माता मंदिर परिसर में स्थित अन्नपूर्णा देवी की पूजा-अर्चना होती रही है  कस्बे और  आस पास के क्षेत्र में फसल आने पर सबसे पहला भोग अन्नपूर्णा देवी के लगाए जाने की परंपरा रही है । इसके अतिरिक्त जब भी कस्बे में या आसपास के ग्रामीण अंचल में किसी प्रकार के भव्य भंडारे , सवामणि , भोज, शादी ब्याह में भोज का आयोजन किया जाता था तो उसका पहला भाग अन्नपूर्णा देवी के लगाए जाने की परंपरा रही है।  इस आशा ऒर विश्वास के साथ कि धन धान्य में किसी प्रकार की कोई कमी नही आये । 

  • कौंन है ? अनपूर्णा देवी 


 अन्नपूर्णा देवी धन-धान्य और संपन्नता की देवी मानी जाती है । हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाते हैं।अन्नपूर्णा जयंती के दिन व्रत करने से घर अन्न, खाद्य पदार्थों और धन्य-धान से भर जाता है। आज के दिन मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा की जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए भिक्षुक रुप धरा था और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा अवतार धारण किया। 


पूर्णिमा के दिन स्नान आदि से निवृत होकर किचन और पूजा स्थान की सफाई होती है। उसके बाद गैस चूल्हे या चूल्हे की पूजा करें। फिर मां अन्नपूर्णा तथा भगवान शिव को फूल, फल, अक्षत्, धूप, दीप आदि से विधिपूर्वक पूजा करें। आरती के बाद मां अन्नपूर्णा से आशीष लें कि आपका घर अन्न, धन-धान्य से भरा रहे।

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