सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक त्यौहार है होली और होली के त्योहार से जुड़ा हुआ है होलिका दहन।

होलिका दहन कब और क्यों किया जाता हैं और इसका क्या धार्मिक महत्व है। होलिका दहन हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह हर साल होली के अवसर पर यह मनाया जाता है।

होलिका दहन का अर्थ होता है ‘होलिका की दहन’। इस दिन लोग एक बड़े चौक में एक बड़ी होलिका (किसी सूखे पेड़ या किसी लकड़ी के रूप में प्रतीकात्मक) बनाते हैं और उसे जलाते हैं।

होलिका दहन का कारण एक पुरानी कथा से जुड़ा हुआ है। इस कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक राक्षस एक राजा था जो अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकना चाहता था। हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका की मदद से प्रह्लाद को मारने की योजना बनाता है। होलिका अपने ब्रह्मास्त्र की सहायता से अग्नि कुंड में प्रह्लाद को जलाने की कोशिश करती है, लेकिन उसे जलने की जगह पर प्रह्लाद बच जाता है। इससे यह संकेत मिलता है कि भक्ति और सत्य कभी नष्ट नहीं हो सकते।

होलिका दहन के कार्य से लोग आशा करते हैं कि उनके जीवन में बुराई और दुख का अंत हो जाएगा और सुख और समृद्धि की बरसात होगी। यह त्योहार भारतीय संस्कृति में एकता, प्रेम और हर्ष का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर लोग रंगों से खेलते हैं और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। यह भी एक आनंददायक और मनोहारी गतिविधि है जो लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर मनोरंजन करने का अवसर देती है।

इस प्रकार, होलिका दहन का आयोजन करने से लोग अपने जीवन में आनंद, समृद्धि और सुख को आमंत्रित करते हैं। यह त्योहार हिन्दू समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है और इसे पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

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