वराह सागर झील

  • राजस्थान में कहां है वराह सागर झील

राजस्थान के केकड़ी जिले में जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक और आध्यात्मिक बघेरा कस्बे में उत्तर दिशा की तरफ स्थित यह झील एक प्राचीन झील है जो हमें ही पानी के हिलोरे लेती है। यह झील पर्यटकों को विशेषकर धर्म और अध्यात्म में विश्वास करने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है।

  • वराह सागर झील का विस्तार और क्षेत्रफल

धार्मिक महत्व रखने वाली इस झील का विस्तार लगभग 300 एकड़ बताया जाता है तथा इस झील की 3 दिशाओं की तरफ प्राचीन घाट बने हुए हैं। एक अनुमान के दृष्टिकोण से पश्चिम से पूरब दिशा में इसकी लंबाई करीब 1600 फुट और चौड़ाई उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में 900 फुट मानी जाती है तथा इस झील में पर्यटक पुण्य लाभ कमाने के लिए डुबकी लगाते देखे जा सकते हैं इसके अतिरिक्त कई विदेशी पक्षी भी देखे जा सकते हैं ।

  • वराह सागर किनारे है विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर

कस्बे में वराह सागर झील के किनारे विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर है । करीब आठवीं शताब्दी से पूर्व के मन्दिर के अवशेषों पर संवत् 1600 के आसपास बेंगू राव सवाई मेघसिंह (काली मेघ) ने इस मन्दिर का नए सिरे से जीर्णोद्धार करवाया। इस मन्दिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार महावराह (पशुवराह/शूकर रूप) की दसवीं शताब्दी से पूर्व की निर्मित प्रतिमा को स्थापित किया। इस मन्दिर में वैष्णवातार पशु वराह की दुर्लभ एवं अद्वितीय श्याम पाषाण की विशाल और कलाकृति का नमूना रूपी मूर्ति विराजमान है।

 

  • झील के मध्य स्थित है वराह भट्टी

वह सागर के बीचो बीच एक प्राकट्य स्थल है जनश्रुती है कि यह मूर्ति वराह सागर (झील) में एक टीले के उत्खनन से प्राप्त हुई थी। कालान्तर में मध्यकालीन विध्वंसकारियों के भय से इसे वर्तमान मन्दिर के निकट तालाब में छिपा दिया गया था। विध्वंसकारियों ने मन्दिर को क्षति तो पहुँचाई, परन्तु मूर्ति सुरक्षित रह गयी।

भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से तृतीय वराहावतार वराह अवतार है ।जिस स्थान से इस वराह मूर्ति को निकाला गया उस स्थान को वराह जी की भट्टी कहा जाता है। जहां आज भी पानी के बुलबुले निकलते हैं और धार्मिक महत्व के कारण इसकी पूजा अर्चना की जाती है।

  • वराह सागर झील के किनारे मेले का आयोजन

वराह सागर झील के किनारे हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल एकादशी को एक विशाल धार्मिक मेले का आयोजन बड़ी धुमधाम के साथ किया जाता है,जिसमें कस्बे के प्रमुख मंदिर में स्थित लकड़ी के मंदिर जिसे बियान भी कहा जाता है को एक जुलूस के माध्यम से नगर भ्रमण करवाया जाता है जिसके अंतर्गत बैंड बाजे,भजन, गीत संगीत के साथ ट्रैक्टर ट्रॉली में सैकड़ों धर्म प्रेमियों की उपस्थिति में नगर भ्रमण करने के बाद वराह सागर की शेर करवाई जाती है जिसे जल झुलाया जाना कहा जाता है । इस धार्मिक आयोजन में ग्रामीण और आसपास के धर्म प्रेमीयो द्वारा भजन कीर्तन के द्वारा यह उत्सव मनाया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं इसके पश्चात महाआरती का आयोजन सैकड़ों भक्तों और ग्रामीण जन की उपस्थिति में किया जाता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से धर्म प्रेमी लोग आते हैं जिसे देखने के लिए गांव में उत्सव का माहौल रहता है। यह मेला राजस्थानी संस्कृति का एक मनोरम दृश्य और नमूना है।

 

  • वराह सागर किनारे प्राचीन और ऐतिहासिक छतरियां

वराह सागर झील किनारे राज परिवार की ऐतिहासिक छतरियां अपना इतिहास खुद ब खुद बयान कर रही है जिनमें अष्टकोणीय और षटकोणीय छतरिया महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन छतरियों पर फूल पत्तियों, पुष्प की सुंदर कलाकृतियां ,नकाशी हर किसी का ध्यान अपनी और आकर्षित करती है।

  • झील किनारे प्राचीन मंदिर और खंडित अवशेष

धर्म और आध्यात्मिक महत्व रखने वाली वराह सागर झील के किनारे आज भी अनेक प्राचीन मंदिर स्थित है जिसमें प्राचीन वराह मंदिर ,अस्तल मंदिर/सनाकादी ऋषि के आश्रम के अवशेष प्रमुख रूप से महत्पूर्ण है । इसके अतिरिक्त भगवान जगदीश मंदिर जिसका हाल ही में जीर्णोद्धार किया गया है स्थित। है।

माना जाता है कि झील किनारे अनेक ऋषि मुनियों ने अपनी तपस्या की थी जिसके प्रमाण आज भी वराह सागर किनारे और वहां मंदिर प्रांगण में हवन कुंड और समाधियो के रूप में देखी जा सकती है।

  • धार्मिक महत्व रखती है यह झील

वराह सागर झील एक पवित्र झील मानी जाती है।जिसमे स्नान कर हर कोई पुण्य लाभ कमाना चाहते हैं इसके अतिरिक्त कार्तिक महा में कार्तिक स्नान किया जाता है पूर्णिमा को विशेष स्नान का आयोजन होता है साथ ही विश्व प्रसिद्ध वराह मन्दिर के प्रातः कालीन अभिषेक और महा आरती में इस झील के जल का ही उपयोग किया जाता है। इसकी पवित्रता इस बात से देखी जाती है कि इस झील में मछलियां पकड़ना,गंदगी फैलाना जैसे कार्यों पर आज भी प्रतिबंध है।

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