
- आसान नहीं वर्धमान से महावीर बनना त्याग,तपस्या, करुणा,निस्वार्थ भाव और इन्द्रिय विजेता,क्षमा शीलता को अपना आभूषण बनाना पड़ता है –
- भगवान महावीर के विचारों, सिद्धांतों और आदर्शों को आज अपनाये जाने की जरूरत
- महावीर का नाम ही अपने आप में एक आदर्श हैं और महावीर नाम ही एक संदेश है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी समाज में रहकर ही उसका सामाजिकरण होता है उसी समाजीकरण की प्रक्रिया के दौरान उसे अनेक प्रकार के सामाजिक आयामो से रूबरू होना पड़ता है और मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है धर्म और धर्म से जुड़े हुए विचार इंसान को प्रभावित करते हैं। निश्चित रूप से आज सामाजिक व्यवस्था का ताना-बाना उसके जन्म के आधार पर तय होता हो अलग-अलग धर्म और मान्यताओं के लोग समाज में निवास करते हो लेकिन सभी धर्मों का मूल आधार एक है कर्म की प्रधानता और ईश्वर एक है ।
मैं जन्म से जैन तो नहीं हूं लेकिन जैन धर्म और जैन समाज के जो सिद्धांतो का प्रभाव एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मेरे जीवन पर भी पड़ा है क्योंकि सामाजिक परिवेश में जुड़े हुए ऐसे अनेक पक्ष आयाम है जिनका संबंध जैन धर्म से है और मेरा संबंध जैन समाज से जुड़े हुए लोगों से भी रहा है । वैसे भी मेरा गांव जैन धर्म का एक अतिशय क्षेत्र तीर्थ रहा है ।
जैन धर्म का नाम सुनते ही भगवान महावीर और अहिंसा के विचार मन मस्तिष्क में स्वतः ही आ जाते हैं । निसंदेह जैन धर्म में 24 तीर्थकर रहे हैं लेकिन भगवान महावीर जो कि 24 वे (अंतिम) तीर्थकर है उन्होंने ही जैन धर्म और उसके सिद्धांतों को पराकाष्ठा तक पहुंचाया हैं । भगवान महावीर (वर्धमान) का जन्म चैत्र शुक्ल 13 को हुआ था इसी दिन प्रतिवर्ष जैन अनुयायिओं द्वारा महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है ।
जैन धर्म और जैन सिद्धांतों की पहचान दी, कोई वर्धमान यूँ ही महावीर नहीं बन गए । वर्धमान से महावीर बनने के लिए न जाने कितने कठोर मार्गो से गुजरना पड़ता है तो जाने कितनी परीक्षाऐ उनको देनी पड़ती है , कितना त्याग करना पड़ता है । उन्होंने समाज को करुणा, अहिंसा, सत्य, त्याग ओर शुभ कर्मो क्षमा करने का संदेश दिया,
महाराजा सिद्धार्थ के घर दिव्य बालक के जन्म के अवसर पर गरीब लोग अपनी गरीबी भूल कर, दरिद्र अपनी दरिद्रता भूल कर, कर्जदार अपने कर्ज को भूल कर भक्तिमय ओर भावनाओं से सराबोर माहौल में गीत गाने लगे थे झूम उठे थे । धार्मिक मान्यता और अनुयायियों के अनुसार बताया जाता है कि जब वर्धमान का माता के गर्भ में आगमन हुआ था तभी से धन-धान्य सम्पनता में वृद्धि होने लगी थी तथा माता के मन में अच्छे और सकारात्मक विचार और स्वप्न आने लगे थे इसीलिए बालक/राजकुमार का वर्धमान नाम रखा गया था । उनके मार्गदर्शन में ही उनके बताए हुए सिद्धांतों पर चलकर ही उनके अनुयायी जैन कहलाए जैन धर्म की उत्पत्ति जिन से हुई है जिसका तात्पर्य होता है विजेता तभी से उन्हें जैन कहां जाने लगा । वह महावीर ही थे जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की ओर जैन कहलाये ।
भगवान महावीर करुणा, अहिंसा, त्याग के अवतार थे उन्होंने यह संदेश दिया कि व्यक्ति की पहचान जाति या जन्म से नहीं बल्कि उनके कर्मों से होती है । उन्होंने शुभ कर्म करने का संदेश दिया । महावीर तो युग पुरुष थे । महान और क्रांतिकारी जैन संत तरुण सागर जी महाराज की मान्यताओं के अनुसार महावीर के नाम में ही मैं ही म- में महादेव छुपे हैं और हैं- में हनुमान छुपे हैं ,व- में विष्णु छुपे हैं और र- में राम छुपे है । भगवान महावीर के बताए हुए सिद्धांत तब भी प्रासंगिक थे और उनकी आज भी उतनी ही प्रासंगिकता है। उनका संदेश था की राह चलती नारी में भी सीता नजर आ सकती हैं बस अपनी सोच और अपनी दृष्टि बदलने की आवश्यकता है ।
महावीर के विचारो की प्रासंगिकता
महावीर के अहिंसा के विचार तब भी प्रासंगिक थे और आज भी प्रासंगिक है उन्हीं सिद्धांत के आधार पर महात्मा गांधी ने देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान दिया था।उसी अहिंसा के विचार और सिद्धान्त की समाज को आज जरूरत है । महावीर नाम का दीपक तब जला था उसकी रोशनी की आज भी आवश्यकता है जो समाज को एक नई राह दिखा सके । खुद भगवान महावीर के नाम में ही संदेश छुपा है महावीर नाम ही समाज को एक खुद-ब-खुद संदेश देता है । महावीर नाम का ही एक भावार्थ है । महावीर नाम ही समाज के लिए एक संदेश है महावीर नाम ही समाज के लिए एक मार्गदर्शक है । महावीर में म कहता है कि कर्म से महान बनो , महावीर में है कहता है हिम्मत और जज्बा रखो, महावीर में व कहता है जीवन में वचन और कर्तव्य को निभाओ, महावीर मे र कहता है कि जीवन में जीवो पर रहम करो । महावीर के इन्हीं विचारों की आज के इस भौतिकवादी युग और भौतिकवादी सोच के दौर में आज समाज को आवश्यकता है । आज भगवान महावीर के क्षमा करने के गुण और “जिओ और जीने दो” के विचार को आत्मसात करने की आज महती जरूरत है तभी होगी एक खुशहाल समाज की स्थापना ।
महावीर के विचार कल भी सार्थक थे और आज भी बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि ना केवल जैन धर्म के अनुयायियों बल्कि समाज के सभी लोगों चाहे वो किसी भी धर्म और सम्प्रदाय से ही उनको क्षमाशीलता के गुण औऱ “जियो और जीने दो” के विचार को अपनाया जाना चाहिए तभी एक खुशहाल समाज की स्थापना हो सकती है ।