धोरा की धरती राजस्थान के अजमेर जिले के अंतिम छोर पर बसे एक ऐतिहासिक और पौराणिक कस्बा बघेरा जिसे कभी व्याघ्रपादपुर के नाम से जाना जाता था ।इस कस्बे में डाई नदी के किनारे पर एक छोटा सा प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे अलखिया का देवरा कहा जाता है हम बचपन से ही यही नाम सुनते आए है और बुजुर्गों के कथनों से भी यही स्पष्ट होता है कहा ये भी जाता है की आस पास के क्षेत्र में इस प्रकार का अलखिया का देवरा यही एक मात्र है भले ही यह प्राचीन देवरा अपने मूल स्वरूप में नही है लेकिन इसे अलखिया का देवरा कहने का कोई तो राज है जो इतिहास में कही खो गया है ।
अनुमान लगया जाता है कि कही इस प्राचीन मंदिर का सम्बन्ध उस अलखिया संप्रदाय से तो नही है क्यो की इसके इस नाम से जाना जाने पर कोई तो कारण है ओर ये कस्बा वैष्णव धर्म जैन धर्म, का एक एतिहसिक केंद्र रहा है ।
क्या है अलखिया सम्प्रदाय ?
इस सम्प्रदाय की स्थापना चुरू जिले में जन्मे स्वामी लालगिरी जी के द्वारा 10 वी सदी में की थी और इस संप्रदाय की मुख्य पीठ बीकानेर में है ।
स्वामी लाल गिरी का जन्म राजस्थान के चुरू जिले में हुआ था उन्हें स्वामी लाल दास जी महाराज भी कहां जाता है इनका एक प्रसिद्ध ग्रंथ था अलख स्तुति प्रकाश । स्वामी कैलाश गिरी जी केे अनुयायी देश प्रदेश केे विभिन्न क्षेत्रों तक फैले हुए थे । क्षेत्र के विभिन्न गांव कस्बों में इस संप्रदाय के संतरहा करते थे अजमेर जिले की बघेरा कस्बे में अलखिया सम्प्रदाय से स्थान होना शायद उस ओर करता हैै कि कभी इस कस्बा में भी अंलखियां संप्रदाय के अनुयायी और संत रहा करते होंगे ।
अलखिया सम्प्रदाय और बघेरा
बघेरा ऐतिहासिक और पौराणिक कस्बा रहा है। इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणिकता अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ और आध्यात्मिक ग्रंथ भी करते हैं। यही बात इसकी इस बात को ओर भी अधिक बल प्रदान करती है की कही इस मंदिर का सम्बंध अलखिया सम्प्रदाय से तो नही अगर इस का संबंध इसी सम्प्रदाय से है तो ये हमारे गांव के लिये गौरव का विषय है इस पूज्य स्थल इस तपो भूमि पर आज भी लोग दर्शन और पुण्य लाभ के लिए आते रहते है ।