
जिस प्रकार केंद्र में लोकपाल जैसे पद का सृजन किया गया है। किसी भी देश में इस तरह के पद या संस्था का सृजन या इस तरह के किसी कानून निर्माण करने का उद्देश्य राजनीति व प्रशासन के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को खत्म करना है। उसी प्रकार राज्यों में लोकायुक्त जैसे पद का सृजन किया गया है। इस तरह के पद या संस्था के सृजन या इस तरह के किसी कानून निर्माण करने का उद्देश्य राज्य में सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार को खत्म करना है।
जिस प्रकार लोकपाल पद का संबंध केंद्र से हैं उसी प्रकार लोकायुक्त पद का संबंध राज्यों से हैं।
*ध्यातव्य स्वीडन में सर्वप्रथम 1809 में संविधान के अन्तर्गत ‘ओम्बुड्समैन’ की स्थापना की गयी थी। इसकेेे पश्चात विश्व केेे कई देशों ने इस प्रकार के पद का सृजन हुआ।
- भारत में लोकपाल एवं लोकायुक्त का प्रावधान
स्वतंत्रता और संविधान लागू होने के पश्चात भारत में ओम्बुड्समैन जैसी संस्था की आवश्यकता महसूस की गई लोकपाल उसी प्रकार का एक पद और संस्था है । लोकपाल शब्द सर्वप्रथम सन 1963 में देश के जाने माने विद्वान लक्ष्मी मल सिंघवी ने दिया था। भारत में शासकीय कर्मचारियों की मनमानी, अक्षमता, उदासीनता तथा उसके अविवेकीय कार्य और भ्रष्टाचार के विरुद्ध नागरिकों को संरक्षण देने के उद्देश्य से अनेक संस्थागत व्यवस्थाओं का प्रावधान समय समय पर किया जाता रहा है। इसी संबंध में केंद्र में लोकपाल जैसी संस्था तथा राज्यों में लोकायुक्त और उप लोकायुक्त जैसे पद का सृज किया गया है।
- राज्य में लोकायुक्त के पद का प्रावधान
भारत में लोकपाल एवं सभी राज्यों में राजनीति को प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्य करने हेतु और ऐसे प्रयासों में एकरूपता लाने के दृष्टिकोण से लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 लाया गया था। लेकिन इससे पूर्व भी इस संबंध में काफी प्रयास किए जा चुके थे। कई राज्यों में लोकायुक्त जैसी संस्थाएं स्थापित हो चुकी थी या प्रक्रियाधीन थी। देश के करीब 20 राज्यों में लोकायुक्त जैसे पद और संस्थान सृजित की जा चुकी है।
- किस राज्य में पहली बार लोकायुक्त कानून बना
लोकायुक्त जैसे पद और कानून की शुरुआत सर्वप्रथम उड़ीसा राज्य में सन 1970 में लोकायुक्त कानून पारित कर कर किया गया था ।लेकिन इसका गठन 1982 में हुआ था । देश में महाराष्ट्र ऐसा प्रथम राज्य है जहां 1971 में सबसे पहले लोकायुक्त संस्था का गठन हुआ था। अब बात करते हैं देश के सबसे बड़े प्रांत राजस्थान के बारे में तो राजस्थान में लोकायुक्त के पद की शुरुआत 1973 मे लाये गए एक अधिनियम के तहत की गई थी।
- राजस्थान लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1973
भ्रष्टाचार मुक्त शासन और प्रशासन की और एक कदम की तरफ राजस्थान सरकार का एक प्रयास 1973 में किया गया जहां राजस्थान लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1973 लाया गया जो कि 3 फरवरी 1973 को पारित हुआ और इस अधिनियम को 26 मार्च 1973 को तत्कालीन राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
राजस्थान में सर्वप्रथम 1963 हरीश चंद माथुर की अध्यक्षता में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोकायुक्त जैसी संस्था की स्थापना और गठन की सिफारिश की थी जो कि भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों को सुन सके व उनकी जांच कर सके।
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 में उल्लेखित है कि इस विधेयक के लागू होने के 1 वर्ष के अंदर सभी राज्य अपने-अपने राज्यों में लोकायुक्त का गठन करेंगे।
- लोकायुक्त का संगठन
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत लोकपाल एक ऐसी संस्था है जिसमें सभापति के अलावा 8 सदस्य होंगे। अध्यक्ष उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या पूर्व मुख्य न्यायाधीश या कोई प्रसिद्ध व्यक्ति हो सकता है। ध्यातव्य (राजस्थान लोकायुक्त व उपलोकायुक्त अधिनियम 1973 के तहत जैसी संस्था में लोकायुक्त तथा उप लोकायुक्त के साथ-साथ दो अन्य सदस्य होंगे का प्रावधान किया गया था। )
8 सदस्यों में से 50% सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए जो कि सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के पूर्व या वर्तमान न्यायाधीश हो सकते हैं।
कुल सदस्यों में से 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाओं तथा अल्पसंख्यक वर्ग में से होंगे।
- नियुक्ति
लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त की नियुक्ति एक चयन समिति के परामर्श के आधार पर राज्यपाल के द्वारा की जाती है ।
लोकायुक्त का गठन एक चयन समिति के परामर्श के आधार पर किया जाएगा । इस चयन समिति में मुख्यमंत्री अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों में विधानसभा में विपक्षी दल का नेता, उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित कोई व्यक्ति तथा राज्यपाल द्वारा नाम एक व्यक्ति के सदस्य होते हैं।
- कार्यकाल
राजस्थान लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1973 के प्रावधानों के तहत इस का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया था।
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के प्रावधान के तहत राज्य में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक होगा यह निर्धारित किया गया ज्ञात हो कि वर्तमान में अधिकतर राज्यों में यही 5 वर्ष का ही प्रावधान है।
ध्यान देने योग्य बात है कि राजस्थान में मार्च 2018 में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 8 वर्ष करने का अध्यादेश जारी किया गया ।इस प्रावधान को हो राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी क्योंकि वर्तमान लोकायुक्त सज्जन सिंह कोठारी की नियुक्ति के समय के कार्यकाल 5 वर्ष का परामर्श दिया था ।अतः इसका कार्यकाल 8 वर्ष करना अवैधानिक है।
- ध्यातव्य
राजस्थान सरकार ने राजस्थान लोकायुक्त उप लोकायुक्त संशोधन अधिनियम 2019 के द्वारा लोकायुक्त का कार्यकाल वापस 8 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दिया गया। वर्तमान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष ही है।
- सेवानिवृत्ति के पश्चात पुनःनियुक्ति संबंधित शर्तें
० कोई भी व्यक्ति अपने पद पर पुनःनियुक्ति का पात्र नहीं होता है।
० सेवानिवृत्ति के पश्चात राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
० किसी भी प्रकार के चुनाव के लिए योग्य नहीं होगा।
- कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व हटाए जाने की प्रक्रिया
कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व कदाचार एवं क्षमता के आधार पर उसे हटाया जा सकता है । हटाने की प्रक्रिया में राज्यपाल द्वारा आरोप की जांच सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से करवाई जा सकती है ।
आरोप सही साबित होने पर विधानसभा में हटाए जाने का एक प्रस्ताव लाया जाता है।
विधानसभा अपने कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव को पारित कर देती है तो लोकायुक्त का पद रिक्त माना जाता है।
- यह नहीं हो सकते लोकायुक्त संस्था के सदस्य
लोकायुक्त जैसी संस्था को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं जैसे- लोकायुक्त संस्था में कोई सांसद, विधायक, पंचायत सदस्य एवं नगरपालिका के सदस्य इसके सदस्य नहीं हो सकते ।
किसी राजनीतिक दल से संबंधित व्यक्ति इसका सदस्य नहीं हो सकता है ।
किसी लाभ के पद पर ना हो या यदि हो तो लोकायुक्त में पद ग्रहण करने से पूर्व में लाभ के पद से त्यागपत्र देना होता है।
ऐसे किसी व्यवसाय या से संबंधित न हो जिसका संबंध सरकार से हो।
- ध्यातव्य
लोकायुक्त का दर्जा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समकक्ष तथा अन्य इसके सदस्यों का दर्जा अन्य न्यायाधीश के बराबर होता है।
- लोकपाल को निम्न शक्ति प्राप्त होती है
० सीपीसी 1908( सिविल प्रोसीजर कोड 1908) के तहत समन जारी करना । – समन एक ऐसा विधिक नोटिस है जिसके उल्लंघन पर दंडित किए जाने का प्रावधान होता है ।
० शपथ पत्र पर गवाही लेना गवाह की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग करना ।
० आरोपित अधिकारी का स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।
० लोकायुक्त के स्वयं के न्यायालय होंगे जिन्हें 3 माह में मामले का निपटारा करना होता है लेकिन इसका अधिकतम समय 1 वर्ष का हो सकता है ।
० दोषी अधिकारी से भ्रष्टाचार की राशि वसूल कर सकता है और दोषी अधिकारी की संपत्ति कुर्क किया करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- ध्यातव्य
लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्रों के अलावा कुछ नियम और शर्तें भी जोड़ी गई है जैसे लोकायुक्त स्वयं किसी प्रकार की सजा नहीं दे सकता है। लोकपाल ऐसे मामले की जांच नहीं कर सकता जिनको घटित हुए 5 वर्ष का समय बीत चुका हो ।
झूठी शिकायत का दोषी पाए जाने पर 3 वर्ष की सजा दे सकता है।
लोकायुक्त के अधिकार और क्षेत्रीय तथा कार्यकाल संबंधी प्रावधान अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है आइए बात करते हैं राजस्थान में लोकायुक्त संस्था के क्षेत्राधिकार से संबंधित प्रावधानों के बारे में।* यह लोकपाल के क्षेत्राधिकार में आते है
०राज्य मंत्री परिषद के मुख्यमंत्री को छोड़कर बाकी सभी मंत्री०राज्य में कार्य करने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी व कर्मचारी।०राज्य की प्रशासनिक सेवा के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी।०राज्य में सभी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष महापौर /सभापति तथा नगरपालिका अध्यक्ष।०जिला प्रमुख, पंचायत समिति के प्रधान इसके दायरे में आते हैं।
- यह लोकायुक्त के दायरे में नहीं आते हैं
०मुख्यमंत्री
०पूर्व मंत्री
०विधायक
०सेवानिवृत्त अधिकारी
०उच्च न्यायालय के सभी अधिकारी व कर्मचारी
०जिला न्यायाधीश तथा राजस्थान न्यायिक सेवा के अधिकारी।
०राज्य निर्वाचन आयोग के सभी अधिकारी और कर्मचारी।
०राज्य विधानसभा के अधिकारी व कर्मचारी।
०महालेखाकार ऑफिस के में कार्य करने वाले अधिकारी व कर्मचारी।
०राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य,अधिकारी व कर्मचारी।
०सरपंच।
- राजस्थान के पहले लोकायुक्त
राजस्थान लोकायुक्त एवं उप लोकायुक्त अधिनियम 1973 के तहत आई.डी दुआ राजस्थान के प्रथम लोकायुक्त(1973) तथा K.P.U.मेनन पहले उप लोकायुक्त थे ।इसके पश्चात उप लोकायुक्त के पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई।
- राजस्थान के वर्तमान लोकायुक्त
सज्जन सिंह कोठारी के सेवानिवृत्त होने के पश्चात यह पद काफी समय से रिक्त चल रहा था। हाल ही में 27 फरवरी 2021 को राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र के द्वारा पूर्व न्यायाधीश प्रताप कृष्ण लोहरा को राजस्थान का नया लोकायुक्त नियुक्त किया गया था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इनकी नियुक्ति 5 वर्ष के लिए हुई है।
० हाल ही में जुलाई 2018 में पश्चिमी बंगाल में लोकायुक्त कानून का निर्माण किया गया था।