काव्य – मावठ की बूंदे
शिशिर मावठ ठिठुरन हाड़ कँपाती लहूँ जमाती,खुले अम्बर के नीचे चिथड़ों में गरीबी रात बिताती! डगमग डगमग गरदन हाले दांत बजे ज्यों खरताल,नासा रन्ध्र जम गई मुखविवर भट्टी सा सुलगे…
(M.A. B.ED, NET, SET, Ph.d, LL.B)
शिशिर मावठ ठिठुरन हाड़ कँपाती लहूँ जमाती,खुले अम्बर के नीचे चिथड़ों में गरीबी रात बिताती! डगमग डगमग गरदन हाले दांत बजे ज्यों खरताल,नासा रन्ध्र जम गई मुखविवर भट्टी सा सुलगे…
महफ़िल में बार बार किसी पर नजर गयी ,हमने बचाई लाख मगर फिर भी उधर गयी ! नजरबन्द जालिम नजर हमारी बहक गयी,उनसे मिली नजर,नजर हम पर ठहर गयी !…
वो नासमझ समन्दर को मीठा करने आया है,मुट्ठी भर शक्कर पुड़िया में बांधकर लाया है! कत्ल करके अस्थियां गंगा में बहाने लाया हैं,रंगकर हाथ खून से पापों को धोने आया…
मित्र हो तो सुदामा बनकर तांडुल खिलाओ !कृष्ण बन कर नंगे पैर दौड़ द्वार पर आओ !! फूल खुशबू वाले चाहिए बाग खूब लगाओ!भरी दोपहरी में पसीना बहा पानी पिलाओ…
अधर मोन हो गये पलक चिलमन बात,ना तू सुने ना मैं ये नैना भीतर मुलाकात ! चाँद सलोना मुखड़ा चितवन तिरछी चाल,पुष्पसर के वेग से बिन्धा मन पंछी बेहाल! उगते…
रूह में भला बिना ख्वाहिश उतरता कौन हैं,आँख मूंद भरोसा किसी पर करता कौन हैं! जान देने को अक्सर उल्फ़त में कहते तो हैं,पतंगे की तरह दीपक पर यूँ मरता…
@ गोविन्द नारायण शर्मा अधर मोन हो गये पलक चिलमन बात,ना तू सुने ना मैं ये नैना भीतर मुलाकात ! चाँद सलोना मुखड़ा चितवन तिरछी चाल,पुष्पसर के वेग से बिन्धा…
@ गोविन्द नारायण शर्मा कोई मुझे पुराना जमाना फिर लाकर दे दो ,काली मिट्टी से बनी बैलों वाली गाड़ी दे दो ! सीखने को मिट्टी वाली तख्ती कहीं खो गयी…
@ गोविन्द नारायण शर्मा ईर्ष्या बहुत हो गयी मन का मेल निचोड़ दो,दिली अदावद खूब हैं अब मेल निचोड़ दो ! घाव अब पक गया मवाद को निकाल दो,ठीक करना…
@ गोविन्द नारायण शर्मा तंग गलियां तन पे बेहया लिबास देख रहा हूँ ,सच जमाना बदल गया आँखों देख रहा हूं ! प्यासी नदियां बिलखती नग जमी दोख हुए ,मधुवन…
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