दिल भरा सा है फिर भी तेरे बिन खालीपन,
अज़ीब सन्नाटा ना जाने क्या चाहे यह मन!

रोना बहुत चाहता बैचेन उद्विग्न नादाँ मन ,
क्या खता हुई हमसे ना समझे बावरा मन!

चलते जाना है ज़िंदगी और चले चाहे बेमन,
दिल के अरमाँ जानकर भी वफ़ा न करें मन!

ना खुशी को जाने ना ग़मों को ये बावरा मन,
फिर किस दुविधा में झूलता यह बेदर्दी मन,

आँखों में ख़ुशियों के मोती मचल रहा मन,
तेरे आलिंगन के ख़्वाब बुन रहा भोला मन!

तेरी यादों का इक सोता बहता बहका मन,
रसीले होंठो के पराग पान को बेताब ये मन!

छायी उदासी मिटाने को जतन करता मन,
दिल शमा सा रोशन खुश रहे गोविन्द मन!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

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