पिछले दिनों एक देश एक कानून मतलब ‘समान नागरिक संहिता’ के लागू करने की बात उठी अब बात उठी हैं तो तलक तक जानी चाहिए । भारतीय राजनीति और राजनीतिक दलों में कुछ मुद्दे औऱ सवैधानिक प्रावधान ऐसे रहे है जिन्होंने भारतीय राजनीति और आम जनता को प्रभावित किया है ।

 संविधान का अनुच्छेद 370 और राम मंदिर के मुद्दे के बाद अनुच्छेद 44 ही एक ऐसा संवेदनशील मामला है जिस पर संविधान निर्माता भी चिंतित थे । यह मुुद्दा अचानक चर्चा में इसलिए आया है कि पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता और जरूरत महसूस करते हुए केंद्र सरकार को इस बारे में उचित कदम उठाए जाने का परामर्श दिया है ।

  • समान नागरिक सहिंता क्या है ?

 
किसी भी देश के  समाज और सामाजिक व्यवस्था में अलग-अलग पंथों, धर्मो के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ का मूल आधार है। समान नागरिक संहिता से मतलब कानूनों के एसे समूह से है जो देश के सभी  नागरिकों चाहे वह किसी पंथ या पंथ से संबंधित हों उन पर समान रूप से लागू होता है। 

  • समान नागरिक सहिंता की आवश्यकता

भारतीय संविधान में भी समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है । अब सवाल यह उठता है कि समान नागरिक संहिता क्यो ?  उसका एक ही जवाब है किसी भी देश को आधुनिकता की ओर ले जाने के लिए, समाज को विकसित सोच की ओर ले जाने के लिए, समाज में धर्म ,जाति, संप्रदाय के आधार पर भेदभाव को दूर करते हुए, समाज में सहजातीयता और एकरूपता स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है।


 दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी कुछ इसी प्रकार का परामर्श दिया है कि आज समाज में जाति, धर्म, संप्रदाय की दीवारें टूट रही है ,समाज में एकरूपता आ रही है, इसलिए अब समय आ गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के आलोक में समान नागरिक सिविल संहिता की ओर कदम बढ़ाया जाए । आखिर सवाल यह भी है कि जब एक देश तो सब के लिये एक कानून क्यो नही ।

  • संविधान और समान नागरिक सिविल संहिता


भारतीय संविधान के भाग 4 में एक ऐसा अनुच्छेद जिस को लागू करना,उसके अनुसार प्रावधान करना,राज्य और सरकार का कर्तव्य है । संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक में देश के नीति निर्देशक तत्व में अनुच्छेद 44 सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है।

लेकिन सच्चाई का एक पहलु यह भी है कि इन नीति निदेशक तत्वों के पीछे कानूनी शक्ति का अभाव है और न्यायालय द्वारा इसे लागू नही करवाया जा सकता और न ही इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है । अनुच्छेद 37 में इस बात का उल्लेख भी है ।

  • न्यायालय ने बार बार इसकी आवश्यकता महसूस की


पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा समान नागरिक संहिता के बारे में जो वकालत की है और सरकार को इस संदर्भ में उचित कदम उठाने की सलाह दी है । वह कोई पहली बार नहीं है की न्यायालय को इस प्रकार की सलाह देनी पड़ी हो  बल्कि 1985, 2015, 2016 और 2020 में और एक बार फिर 2021 में भी न्यायालय के द्वारा इस प्रकार की आवश्यकता महसूस करते हुए सरकार को इस बारे में उचित कदम उठाए जाने की सलाह दी है ।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में अपने परामर्श में कहा है कि 1985 में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए परामर्श के 4 दशक पूरे होने के करीब है इसके बाद भी सरकारें इसके प्रति गंभीर क्यों नहीं है ?  आपको जानकर आश्चर्य होगा कि न्यायपालिका समान नागरिक संहिता के बारे में सरकार को कोई आदेश नहीं दे सकती । वह इस बारे में सलाह जरूर दे सकती है।  क्योंकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 37 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है की नीति निदेशक तत्वों के बारे में न्यायालय किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।

  • समान नागरिक संहिता का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं


समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करते ही कुछ लोग इसका संबंध सीधा ही इस्लाम संप्रदाय से जोड़ देते हैं जो कि न तो उचित है और न ही सच्च ।  समान नागरिक संहिता का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं और नहीं यह किसी धर्म विशेष पर लागू होती बल्कि यह भारत के सभी समुदायों के लोगों चाहे वह हिंदू,मुस्लिम, सिख, ईसाई ,पारसी, आर्य या और किसी भी संप्रदाय के हो सब पर समान रूप से लागू होगा । जहां तक इसके विरोध की बात है तो जो लोग इसका विरोध करते हैं वास्तव में वे समान नागरिक संहिता के प्रावधान, उसका वास्तविक अर्थ ही नहीं जानते । इसका किसी धर्म विशेष से कोई लेना देना नहीं है और  इसे धर्म विशेष से भी ना जोड़ा जाए । ऐसी सोच संकीर्णता का ही प्रतीक होगा। 

समान नागरिक संहिता का संबंध सभी धर्मो, संप्रदायों, जाति, की  उन परंपराओं, उन परिपाटियों, प्रथाओं,रीति रिवाजों से हैं जिनके कारण समाज में नागरिकों को विशेषकर महिलाओं को अधिकारों से वंचित होना पड़ता हो, सब के लिए अलग अलग कानून हो, इसमें समान रूप से गोद लेने के अधिकार ,विरासत के अधिकार, विवाह, तलाक, संपत्ति का अधिकार और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए समान प्रकार का कानून लागू किए जाने से है। चाहे वे किसी भी धर्म ,सम्प्रदाय ,जाति, से हो। अनुच्छेद 14 समानता का अधिकर जो देता है ।

  • विधि और न्याय मन्त्रालय द्वारा गठित आयोग ने भी किया समर्थन 

  2016 में समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन करने के लिये विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा एक विधि आयोग का गठन किया था। इस आयोग के अनुसार  समाज में असमानता की स्थिति उत्पन्न करने वाली समस्त रुढ़ियों  चाहे वो किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति से हो उनकी समीक्षा की जानी चाहिये। इसके अतिरिक्त इस आयोग ने महिला अधिकारों को वरीयता देना, प्रत्येक धर्म और संस्थान का कर्तव्य माना  था। कही न कही यह आयोग भी समान नागरिक सहिंता की और संकेत करता है ।

  • वर्तमान सरकार इस मुद्दे को ले रही है गंभीरता से

वर्तमान समय में अनुच्छेद 370 के प्रावधान को समाप्त करने और राम मंदिर के मुद्दे का समाधान करने के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा ने एक की टीवी चैनल में दिए गए साक्षात्कार में कहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर गंभीर है और समाज के सभी वर्गों से उचित सलाह लेकर  ,पूरी गंभीरता के साथ इस मुद्दे पर कार्य करेगी और कानून बनाएगी । उन्होंने कहा है कि इस प्रकार के प्रावधान का संबंध किसी धर्म विशेष, जाति विशेष, धर्म विशेष, संप्रदाय विशेष से न होकर समाज के लोगों को उचित अधिकार और सम्मान से जीवन जीने का अधिकार देना है। उन्होंने कहा है कि सभी धर्मों में कुछ अच्छी बातें हैं, कुछ हिंदू धर्म में ,कुछ इस्लाम में और इसी प्रकार बाकी संप्रदायों में भी जो अच्छी बातें हैं उनको ध्यान में रखते हुये एक कानून का निर्माण किया जाएगा ।

  • गोवा में है समान नागरिक सहिंता लागू

संविधान लागू होने के बाद लगभग 70 वर्ष गुजर जाने के पश्चात भी आज तक इस अनुच्छेद 44 को जिसमें समान नागरिक सिविल संहिता का उल्लेख है लागू नहीं किया जा सका । वर्तमान में गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर समान नागरिक सिविल संहिता को लागू किया गया ।वह धर्म,जाति ,सम्प्रदाय के आधार का कोई भेदभाव नहो वरन कानून सब पर सामान रूप से लागू होता है । 

  • ध्यातव्य-
  • विश्व में करीब 9 ऐसे इस्लामिक देश है जहां पर समान नागरिक  संहिता जैसा प्रावधान लागू है । जिनमें टर्की ,सूडान  जैसे देश शामिल है ।
  • आज विश्व में ऐसे अनेक आधुनिक और विकसित देश है जहां पर समान नागरिक संहिता जैसे कानून लागू हैं जिनमें अमेरिका पाकिस्तान बांग्लादेश आयरलैंड मलेशिया तुर्की सूडान इंडोनेशिया और इजिप्ट जैसे कई देश है ।

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