@ गोविन्द नारायण शर्मा
छोटी छोटी बातों में मुझे पड़ना नही आता ,
तू ये न समझ की मुझे लड़ना नही आता!

बेकार है तमाम तालीम उस जनाब की,
गमजदा लोगो के चेहरे पढ़ना नही आता!

जो पढ़ लिया करते थे कभी नजरें हमारी,
उन्हें अब दर्द भरी चीखे सुनाई नही देती !

नफरत वो अपने दिल में मुझसे करने लगी,
हवा के झोंके से दबे शोले सी सुलगने लगी !

बिना नजरें मिलाये हाथ मिलाना जरूरी न था,
बिन तमन्ना के मिलने की कोई वजह न थी !

लोग न जाने कितनी फिजूल बातें करते रहे,
मेरी जुबां पर सिर्फ तेरा ही नाम आता रहा !

नदी के दो किनारों को मिलते हुए नही देखा,
इस घाव को कभी मुकम्मल होते नही देखा!

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