समाज के चन्द लोगों की सोच और प्रयासों से ही जीवंत है हमारी संस्कृति और हमारे सांस्कृतिक मूल्य, चलो एक बार फिर उन्हें जीवंत करते हैं।
सनातन संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों वाली हमारी भारतीय संस्कृति युगो युगो से अपनी अपनी अलग ही पहचान रखती आई है लेकिन जैसा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है विकास की इतनी अंधी दौड़ इतनी आगे बढ़ चुकी है कि आज हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर पश्चिमी संस्कृति और लोगों की भौतिकवादी सोच ने भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित किया है।यह सत्यता भी है कि निश्चित रूप से इस भौतिकवादी सोच और आधुनिकता की दौड़ ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर कुठाराघात किया है । शायद आधुनिकता की दौड़ में आज लोग इतने अंधे हो चुके हैं कि वह अपनी जड़ों को भूलता जा रहा है। शायद वह यह भूल गया है किम मंजिल की ऊंचाइयां चाहे जितनी बड़ा लो उसकी मजबूती,उसका आधार, उसकी नींव, उसकी जमीन होती है । जब वह जमीन ही कमजोर हो जाती है तो बहुमंजिला इमारतों की ऊंचाइयां कोई मायने नहीं रखती। किसी भी देश और समाज की ऊंचाइयां किसी आधुनिकता पर नहीं, किसी अंधी दौड़ पर नहीं, बल्कि अपनी जड़ों, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति और अपने सांस्कृतिक मूल्यों पर टिकी होती है।
……..लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज हमारे सांस्कृतिक मूल्य कमजोर होते जा रहे हैं ….जो कि चिंतन और चिंता का विषय है । इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि आज भी हम समाज में यहां- वहां अपनी दैनिक- दिनचर्या में ऐसे दृश्य और ऐसी घटनाये देखने और सुनने को मिलती हैं ऐसी ही घटनाएं हमें नजर आने लगती है कि हम एक बार फिर अपने सांस्कृतिक मूल्यों अपनी सभ्यता और अपने आधार के बारे में सोचने को मजबूर हो जाते हैं, और शायद ऐसे ही लोगों के प्रयासों और सोच के परिणामस्वरूप हमारे देश और हमारी सभ्यता, हमारे सांस्कृतिक मूल्य आज भी जिंदा है।
नवंबर 2020 में जब शादियों का दौर था जिनमें अक्सर देखा गया कि अपनी बहन-बेटियों की विदाई के समय परिवारजन भाई- बंधु जमीन पर हथेलियां रखकर उनपर चला कर विदा करते देखा गया।
प्रेरणा देता वाइरल वीडियो
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर मेने एक वीडियो देखा जिसमें मेने देखा कि एक पिता, एक मां अपनी बेटी के पैरों को धोकर कभी पानी से,तो कभी दही से, कभी दूध से,धोकर उसे पी रहे थे। इसमें बताया गया कि बेटी को विदाई से पहले….. एक कपड़े पर उनके पद चिन्हों को उकेरा गया, बड़ा ही मार्मिक और भावुक करने वाला दृश्य था। सनातन संस्कृति वाले भारत देश में ही ऐसे दृश्य देखने को मिल सकते हैं। हमारी संस्कृति को यूं ही सनातन संस्कृति नहीं कहते, मैं तो यही कहूंगा और यही सत्यता भी है कि आज ऐसे ही लोगों के प्रयासों और सोच के कारण हमारे सांस्कृतिक मूल्य जीवंत है।
मैं नमन करता हूं ऐसे माता पिता को ,आज आधुनिकता और पश्चिमी संस्कृति की तरफ दौड़ रहे लोगों और अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर होने वाले लोगों के लिए एक सच्चा संदेश है। यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो बालिकाओं को पराया धन समझा करते है।, उन लोगों के मुंह पर तमाचा है….. जो कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर उतारू हो जाते हैं, यह उन लोगों के लिए एक सबक है…… जो बिटिया के जन्म लेने पर दुखी हो जाते हैं और उसे किसी अनाथ आश्रम में छोड़ आते हैं या किसी कूड़े- पात्र में फेंक दिया जाता है । यह उन लोगों के लिए एक संदेश है…. जो बालिकाओं के साथ अमानवीय व्यवहार करने की सोच रखते हैं।
अगले जन्म मोय बिटिया ही कीजो
हमारे सांस्कृतिक मूल्य इतने कमजोर नहीं है कि आधुनिकता और भौतिकवाद की सोच उन्हें कमज़ोर कर सके । इस वायरल वीडियो ने समाज को एक संदेश दिया है कि …..यह वही देश है जहाँ बालिकाओं को देवी का रूप दिया जाता था । निश्चित रूप से इस वीडियो ने न केवल मेरे मन को झकझोर दिया… बल्कि समाज के अन्य व्यक्तियों के मन को भी प्रभावित किया होगा ।उनको भी कुछ संदेश मिला होगा…… बस फर्क इतना है कि उन भावों को मैंने अपने कलम से शब्दों का रूप देने का प्रयास किया।
चलो हम एक बार फिर अपने सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करें. उन्हें एक बार फिर जीवंत करते हैं ताकि समाज की हर बिटिया कह सके कि –” अगले जन्म मुझे बिटिया ही किज्यो””प्रयास भले छोटा ही सही एक शुरुआत तो होनी चाहिए,कब तक अंधेरे में रहोगे अब दीपक जला लेना चाहिए।जला है आज दीपक तो कल एक मशाल जलनी चाहिए,किसका इंतजार है अब छोटा सा बदलाव होना चाहिए”।।
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