जहां जहां तहां रखी हुई ऐतिहासिक,धार्मिक वस्तुएं/कलाकृतियां हमारी अमूल्य धरोहर है ये हमें हमारी सभ्यता संस्कृति व धर्म और इतिहास को याद दिलाती है हमारा दायित्व है  कि हम उसे संजोए रखें ।

    मरुधरा राजस्थान के हृदय कहलाने वाले अजमेर जिले के अंतिम छोर पर बसे हुए ऐतिहासिक,आध्यात्मिक पौराणिक और पुरातात्विक महत्व रखने वाला बघेरा कस्बा जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है बल्कि युगो युगो से धर्म और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ यह कस्बा आज भी अपना इतिहास खुद ब खुद बयां कर रहा है धर्म और अध्यात्म का यह केंद्र आज भी धर्म प्रेमियों और इतिहासकारों के लिए एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है एक तरफ विश्व प्रसिद्ध शूर वराह मंदिर लोकाईमान है तो दूसरी तरफ जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में जाना और पहचाना जाता है
इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इस कस्बे में आज भी सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर अपनी अलग पहचान रखते हैं वहीं दूसरी और बघेरा की पावन धरा अपनी कोख से मूर्तियां, शिलालेख ,सिक्के ,मृदभांड प्राप्त होते रहते हैं जहां कहीं भी मकान निर्माण के लिए या किसी और प्रयोजन से खुदाई की जाती है तो धर्म और आध्यात्मिक की इस धरा से मूर्तियां,शिलालेख,मृदभांड प्राप्त होते रहते हैं मानो बघेरा की यह धरती कस्बे को ऐसी अमूल्य धरोहर देने के लिए ही बनी है। मानो समुंदर मंथन रूपी इस धरती की खुदाई में मूर्तियां कलाकृतियाँ और ऐतिहासिक वस्तुओं के रूप में अमृत दे रही होएक देश भक्ति गाना बड़ा प्रसिद्ध है कि मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती सच ही कहा है यह गाना मेरे गांव मेरे कस्बे बघेरा के लिए भी सार्थक साबित हो रहा है। जिसके बारे में कहूंगा कि-” मेरे गांव की धरती मूर्तियां/प्रतिमा उगले मेरे गांव की धरती इतिहास उगले।

यहां वहां जहां भी देखो शिलाखंडों पर किसी कलाकार या किसी मूर्तिकार की कलाकृति का नमूना मिल जाता है । यहां से निकली हुई पूरा महत्व की सामग्रियों का वर्णन किया जाना संभव नहीं है और ना ही मेरे शब्दों में इतनी तासीर है कि मैं इस पावन धरा के बारे में इतना कुछ कह सकूं या ऐसे मूर्तिकार ओ ऐसे कलाकारों के बारे में मेरी कलम कुछ लिख सके फिर भी एक छोटी सी प्रतिमा जिसका ध्यान भले ही जाए या ना जाए लेकिन एक कलमगार हूं धर्म अध्यात्म और इतिहास में रुचि रखता हूं विशेषकर ये पावन धरा बघेरा जो मेरा गौरव है जहां कहीं भी ऐसा कोई दृश्य या ऐसी कोई कलाकृति देखता हूं तो मेरी कलम मुझे लिखने को संकेत करती है और मैं अपने भावों को शब्दों का रूप देने का प्रयास करता हूं

।पिछले दिनों मैं किसी रास्ते से गुजर रहा था वहां पर मुझे एक छोटी सी प्रतिमा जो कि श्यामवरण पाषाण की बनी हुई है और यह धरा ऐसी जन्मभूमि है जहां हर गली हर मोहल्ले हर चौराहे हर नुक्कड़ जहां कहीं हो ऐसी कलाकृतियां ऐसी मूर्तियां  ऐसे पाषाण दिखना एक आम बात है ।ये एक परंपरा बन चुकी है लेकिन प्रतिमा को देखकर प्रतीत होता है की शायद मूर्तिकार अपनी इस कलाकृति को पूर्ण रूप नही दे पाया शायद मूर्तिकार इस प्रतिमा को पूर्णतया मूर्त रूप दे देता तो यह भी आज किसी मंदिर स्थापित होती और यह भी पूजी जाती ।

मूर्तिकार इसको पूर्ण रूप या मूर्त रूप क्यों नहीं दे सका इसका कारण इतिहास में कहीं गुम हो गया । चाहे आधी अधूरी ही सही लेकिन  पाषाण की यह प्रतिमा  हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है । आधी अधूरी ही सही किसी मंदिर में स्थापित ना हो सकी हो लेकिन फिर भी कलाकार की ऐसी कलाकृति कस्बे के धर्म और आध्यात्म का इतिहास खुद ब खुद बयां कर रही है । धर्म से संबंध रखने वाली यह  मूर्ति यह प्रतिमा  /कलाकृति भले ही मूर्त रूप ना ले सकी हो लेकिन इस आधी अधूरी प्रतिमा का संबंध  हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति हमारी कलाकृति हमारे इतिहास और हमारे समाज और धर्म से हैं । हमें ऐसी प्रतिमाओ /कलाकृतियों को  एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक धरोहर मानकर संजोए रखना चाहिए।

ऐसी ही सामग्रियां हमें याद दिलाती है कि हमारा इतिहास हमारे संस्कृति  एक पावन धर्म संस्कृति और सभ्यता वाली रही है । ऐसी ही कलाकृतियां चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो जहां कहीं भी है जहां कहीं भी रखी हुई हो इनके प्रति हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम उन्हें एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर समझ कर उनको संजोये रखें । 

  • आने वाली पीढ़ी को अपने  इतिहास, आध्यात्मिकता से अवगत कराएं


लेखन का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना सा है की बघेरा कस्बा वैष्णव धर्म और जैन धर्म का भी एक तीर्थ और पुरामहत्व का कस्बा रहा है उस धरोहर को बचाने अपना इतिहास और अपने गौरव को कलमबद्ध करना है । यहां आज भी धर्म प्रेमी अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए ,दर्शन लाभ प्राप्त करने के लिए इस धरा पर आकर पुण्य कमाते हैं ।  हम इस पावन धरा के नागरिक हैं तो हमारा भी दायित्व बनता है कि हम ऐसे ही ऐतिहासिक धरोहरों को चाहे वह आधी अधूरी हो चाहे खंडित हो या यहाँ वहां बिखरी हो उन्हें सजाए रखें ताकि लोगों को हम अपने इतिहास से अवगत करा सके आने वाली पीढ़ियों को बता सकें कि बघेरा की पावन धरा इतिहास में एक अपना अलग ही महत्व रखता है  अगर आज भी हम समझ नहीं पाए अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को नष्ट होते देखते रहेंगे तो हमारे पास दिखाने और  बताने के लिए कुछ नहीं होगा केवल और केवल इतिहास की बातें होगी ।

2 thoughts on “बघेरा गाँव की धरती मूर्तियां और इतिहास उगलती है।”

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