वराह मंदिर का नाम सुनते ही केकड़ी जिले के विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर का खयाल मन और मस्तिष्क में आ जाता है । वैसे भारत के कई शहरों और कस्बों में, गांव में वराह मंदिर जरूर स्थापित है, लेकिन जिस प्रकार पुष्कर के वराह मंदिर की अपनी एक अलग पहचान, एक अलग इतिहास और अलग आध्यात्मिक महत्व है, उसी प्रकार केकड़ी जिले मुख्यालय के ही समीप बसे हुए ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और पौराणिक कस्बा बघेरा भी वराह मंदिर के लिए ना केवल देश बल्कि पूरे विश्व में अपना महत्व रखता है ।

  • बघेरा में स्थित है प्राचीन वराह मंदिर

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बघेरा में शुर वराह की एक अनुपम और अद्वितीय प्रतिमा वाला विश्व प्रसिद्ध मंदिर है । जब धर्म और आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन मंदिरों के महत्व के प्राचीन मंदिरों की बात होती है तो  भूमि राजस्थान के अजमेर जिले में केकड़ी तहसील में बघेरा के नाम से प्रसिद्ध एक कस्बा जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है । प्राचीन कला संस्कृति और सभ्यता को अपने में समेटे हुए यह छोटा सा कस्बा  पौराणिक , आध्यत्मिक ऐतिहासिक प्राचीन और पुरातात्विक दृष्टि से एक अलग ही महत्व और स्थान रखता है ।

  • वराह सरोवर के किनारे स्थित है यह प्रसिद्ध मंदिर

बघेरा कस्बे के उत्तर दिशा की तरफ लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई पवित्र और पौराणिक झील है  जिसे ‘ वराह सागर झील”  के नाम से जाना जाता है। इस झील के किनारे विश्व प्रसिद्ध शुर वराह का एक भव्य औऱ ऐतिहासिक मंदिर स्थित है जो अपनी कलाकृति विशाल था भव्यता के साथ-साथ अपना ऐतिहासिक आध्यात्मिक महत्व भी रखता है इसी मंदिर में श्याम वर्ण रूपी शूर वराह की एक विशाल प्रतिमा है।

  • किसने करवाया था इस वराह मंदिर का निर्माण

कस्बे में स्थित इस  प्राचीन और भव्य मंदिर  का इतिहास काफी पुराना रहा है। इसका जीर्णोद्धार आठवीं शताब्दी से पूर्व के मंदिरों के अवशेषों पर संवत 1600  के आसपास मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेगू के राव  सवाई मेघ सिंह जिसे ‘काली मेघ ‘ के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने इस मंदिर का नए सिरे से  करवाया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी है तथा इस मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार महा वराह कि दसवीं शताब्दी से पूर्व की निर्मित प्रतिमा को स्थापित किया था। 

एक जनश्रुति भी है की बघेरा के इस भव्य शुर वराह मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वह  वराह सागर झील में ही एक टीले की खुदाई से प्राप्त हुई थी। जिस स्थान पर यह मूर्ति निकली है आज भी उसे “वराह भट्टी” के नाम से जाना जाता है जहां पर पानी भर जाने पर  आज भी बुलबुले निकलते है।

  • इस वराह मंदिर का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है

बघेरा के वराह सागर में मूर्ति निकलने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कहानी है l यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेगू के राव मेघ सिंह बादशाह जागीर के यहां आगरा में थे ।उनकी जागीर में मालपुरा जो आज  टोंक जिले में है मालपुरा से बेगू का मार्ग बघेरा होकर ही जाता था और यह बघेरा नगर इसी प्रकार 6 मार्गों को जोड़ता था। ऐसा माना जाता है और बेगू के राव मेघ सिंह की यात्रा के दौरान  झील कें पूर्वी छोर पर स्थित एक यूप था जिस पर लिखा था”  एक तीर पर धन ” इसी युप के इशारे के आधार पर बेगू राव साहब ने उस टीले की खुदाई की जहां पर उक्त प्रतिमा निकली थी जिस स्थान पर यह प्रतिमा निकली उसे फराह भक्ति के नाम से पुकारते हैं, जहां भी आज पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। कस्बे का यह मंदिर जाने-माने इतिहासकारों की लेखनी में भी अपना स्थान बना चुका है।

इतिहास विषय पर लिखी गई अनेक पुस्तकों और बघेरा का इतिहास विषय पर लिखी गई अनेक पुस्तकों , बृजमोहन जावलिया जैसे अनेक इतिहासकारों ने अपनी पुतको में  इस वैभवशाली प्राचीन मंदिर का उल्लेख किया है।

  • इस कारण से प्रसिद्ध है यह मंदिर और प्रतिमा

अपनी अलग पहचान रखने वाले इस मंदिर में विराजमान यह प्रतिमा  एक विशाल प्रतिमा होने के साथ-साथ कलाकृति का एक अनुपम नमूना भी है।   

मंदिर में विराजमान विशालकाय सुंदर और मन को मोह लेने वाली यह अद्वितीय प्रतिमा हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है । इस प्रतिमा का आकार अनुमानित रूप से  4″2″6 फिट है जो कि भगवान विष्णु का  तृतीय अवतार है। वराह रूप में एक पशु की इस संरचना को मूर्तिकार ने जिस रूप में बनाया है वह कल्पना से परे है भगवान विष्णु का यह रूप  आद्वित्य हैं । काले पाषाण से बनी यह प्रतिमा जिस पर हजारों की संख्या में छोटी-छोटी प्रतिमाओ, कलाकृतियां  उत्कीर्ण है ।उन्हें देखकर सहज जी लोग  दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाते हैं ।

  • कलाकृति का अनुपम उदाहरण है वराह प्रतिमा

इस प्रतिमा की बनावट इनका आकार और इस पर की गई बारीक कलाकृति को शब्दों में पिरो कर वर्णन करना संभव नहीं है ।  इस रूप में भी विष्णु के समस्त आयुध, शंख, चक्र, गदा पद्म, अपने चारों पैरों में धारण किए हुए हैं शेष शैया पर क्षीर सागर में शयन करना विष्णु को बहुत प्रिय है । इसे भी विग्रह शेषनाग को सैया के रूप में दिखाया गया है । चारों पैरों के बीच में कुंडली मारकर शेषनाग अपने फनो को भगवान की स्तुति में मुख के नीचे किए हुए हैं शेषनाग के इन फर्नो के अंदर दोनों नाग  कन्या ईगला – पिगला इणा पीणा भी भगवान की स्तुति करती हुई दिखाई गई । शेषनाग मेंरुदण्ड में स्तिथ  सुशुम्र  का प्रतीक और फन इन्द्रियों ओर इणा, पीणा  दाई ओर बाई दोनों नाड़ियो  तथा बराही नाडी के स्थान को दर्शाती  है मस्तिष्क पर रासलीला चक्र का होना पीठ पर सात समुंदर और सात  लोक जिनमें चरा- चर विश्व में जीव मात्र की सभी क्रियाओं का विस्तार सहित चित्रण किया जाना समुंद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों ने शेषनाग को नेज के रूप में काम में लिया और 14 रत्न नवनीत के रूप में प्राप्त किए थे उन्हें भी उक्त में  समाहित किया गया है ।

इसी प्रकार मल युद्ध ,नृत्य, स्नान गायन यहां तक कि अन्य सभी ग्रहों को भी इस में दर्शाए जाना इस प्रतिमा को एक अलग ही महत्व प्रदान करते हैं  साथ ही वीणा बजाते हुए नारद भी भगवान की इस प्रतिमा में उत्कीर्ण किया हुआ है  ।इन सभी विशेषताओं से शुर वराह  की प्रतिमा मनमोहक और  आकर्षित है  जो  हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती  है।

  • विश्व में इस तरह की यह अद्वितीय प्रतिमा हैं

जानकारों इतिहास करो धर्म प्रेमियों की माने तो बताया जाता है कि शास्त्रों में जिस प्रकार का वर्णन वराह का पृथ्वी को धारण किये जाने का वर्णन किया गया है उसी वर्णन के तहत इस प्रतिमा को बनाया गया था साथ ही यह भी एक किवदंती है और बताया जाता है कि विश्व में इस प्रकार की यही एकमात्र अनुपम कलाकृति है।

पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार “चमकते हुए श्याम पाषण की शुकर रुप वराह की यह विशालकाय मूर्ति उनके अनुसार देखी हुई वराह की सब मूर्तियों में सर्वाधिक सुंदर प्रतिमा है।”

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16 thoughts on “वराह मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया था ?(When and who built the Varaha temple ?)”
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