तोरण द्वार

प्रेम और प्रेम की निशानीयो का सवाल मन और मस्तिष्क में आते ही लोग ताज महल की बात करने लगते है लेकिन हम भूल जाते है की भारत प्रेम ,त्याग समर्पण की कहानियां ऐतिहासिक घटनाएं और प्रेम की निशानियां अपना इतिहास खुद ब खुद बयां करते है। जहां तक धोरा री धरती राजस्थान की बात करें तो यहां पर तो इतिहास में अनेकों अनेक ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं । कहानियों, ऐतिहासिक घटनाओं, कहावतें और प्रेम की निशानीयो से भरा पड़ा है।  

  • प्रेम और प्रेम का प्रतीक

आज हम बात करते हैं राजस्थान के ऐसे ही ऐतिहासिक घटना और प्रेम की निशानियां के बारे में। राजस्थान में ढोला मारू का प्रेम और उनके विवाह ,प्रेम की निशानी के रूप में तोरण द्वार आज भी अपना इतिहास खुद ब खुद याद कर रहा है आइए जानते हैं कि आखिर कौन थे यह ढोला-मारू और उनके प्रेम और शादी के प्रतीक की निशानी क्या है? और  राजस्थान के किस गांव /शहर में कहां आज भी राजस्थान में खुद पर खुद अपना इतिहास बयान कर रहा है। 

  • कौन है ?  ढोला मारू

आठवीं सदी की एक घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक.प्रेमी नायक के रूप में याद किया जाता है। लोक गीतों में महिलाएं अपने प्रियतम को ढोला के नाम से संबोधित करती हैं। 

इस प्रेमाख्यान का नायक ढोला नरवर के राजा नल का पुत्र था जिसे इतिहास में ढोला व साल्हकुमार के नाम से जाना जाता है। ढोला का विवाह बीकानेर के पूंगल नामक ठिकाने के स्वामी पंवार राजा पिंगल की पुत्री मारवणी के साथ हुआ था। उस वक्त ढोला तीन वर्ष का मारवणी मात्र डेढ़ वर्ष की थी, इसीलिए शादी के बाद मारवणी को ढोला के साथ नरवर नहीं भेजा गया। बड़े होने पर ढोला की एक और शादी मालवणी के साथ हो गई। बचपन की शादी ढोला भूल गया। मारवणी प्रौढ़ हुई तो पिता ने ढोला को नरवर संदेश भेजा।

दूसरी रानी मालवणी को ढोला की पहली शादी का पता चल गया।मारवणी जैसी बेहद खूबसूरत राजकुमारी कोई और न हो इस ईर्ष्या के चलते राजा पिंगल तक कोई भी संदेश नहीं पहुंचने दिया। वह संदेश वाहक को ही मरवा डालती। उधर मारवणी को स्वप्न में प्रियतम ढोला के दर्शन हुए और वह वियोग में चलती रही। बाद में पिता पिंगल ने चतुर ढोली को नरवर भेजा और गाने के माध्यम से ढोला को याद दिलाया और मारवणी ने मारू राग में दोहे बनाकर दिए। 

संदेशवाहक ढोली ने मल्हार राग में गाना शुरू किया ऐसे सुहाने मौसम में ढोली की मल्हार राग का मधुर संगीत ढोला के कानों में गूंजने लगा ।’

  • आज भी इस कस्बे में है प्रेम की निशानी 

एक किंवंदती के अनुसार राजस्थान के अमर प्रेमी ढोला-मारू का विवाह केकड़ी जिले के बघेरा कस्बे में हुआ था जहां आज भी पत्थर (पाषाण) का तोरण द्वार उनके प्रेम का मूक साक्षी है। रेतीले धोरों में उपजे प्रेम को ढोला-मारू ने बघेरा में ही परिणय के अटूट बंधन के रंग में रंगा था।  धोरा की धरती राजस्थान में अजमेर मेरवाड़ा में  केकड़ी जिले में बघेरा एक ऐतिहासिक और पौराणिक ग्राम है जो इतिहास ,आध्यत्मिक और प्रेम के अद्भुत स्मृतियों को अपने आप मे समेटता हुआ अपनी गवाही खुद ब खुद ही बयां कर रहा है। 

करीब 1000 से अधिक वर्षों से धूप -छाया- वर्षा की प्राकृतिक मार झेलता हुआ यह गौरव इतिहास और गांव का गौरव बढ़ाता आ रहा है लेकिन क्योकि इस इमारत के एक खंभे में बहुत चौड़ी दरार पड़ चुकी है, जिससे यह ऐतिहासिक स्मारक कभी भी धरासायी हो सकता है । यह गौरव आज जर्जर होकर अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है कोई इसकी सुध लेने वाला नही |

One thought on “ढोला-मारू कौन थे ? प्रेम का प्रतीक तोरण द्वार राजस्थान के किस गांव में है ?”

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