अजमेर जिले के अंतिम छोर पर बसे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और पौराणिक गांव बघेरा से करीब 15 किलोमीटर दूर टोडारायसिंह (जिला टोंक) जो की एक तहसील मुख्यालय हैं, एक ऐतिहासिक कस्बा रहा है जो आज भी अपनी ऐतिहासिकता और बावडियों के कारण अपनी अलग ही पहचान रखता है।

मेवाड़ रियासत की जागीर था टोडा
टोडारायसिंह कस्बे की ऐतिहासिकता का संबंध राजस्थान के गौरव पूर्ण इतिहास से रहा है… चाहे वह अजमेर हो या फिर मेवाड़ रियासत उनका टोडारायसिंह से उसका गहरा संबंध रहा है। अजमेर के अरावली पर्वतमाला में तारागढ़ ऐतिहासिक महत्व रखता है।
आखिरकार यह ताराबाई कौन थी जिनके नाम पर तारागढ़ नाम रखा गया और इस ताराबाई का संबंध मेवाड़ रियासत और टोडारायसिंह से क्या रहा आइए जानते हैं इस बारे में….
टोडा की राजकुमारी थी ताराबाई
ताराबाई तत्कालीन समय में मेवाड़ रियासत की एक जागीर टोडा के शासक राव सुरताण की सुपुत्री थी इतिहासकारों के अनुसार जब मालवा के सुल्तान
गयासुद्दीन खिलजी ने रणथंमोर, टोडा और बूंदी पर आक्रमण करके अपने अधिकार में कर लिया था तो टोडा के राव सुरताण ले अपनी वीरांगना पुत्री ताराबाई के साथ मेवाड़ रियासत के शासक रायमल की शरण में चला गया।
टोडा के राव सुरताण ने की थी प्रतिज्ञा
टोडा के राव सुरताण ने प्रतिज्ञा की थी कि वह अपनी पुत्री ताराबाई का विवाह उस शूरवीर के साथ करेंगे जो टोडा को जीतकर उसे वापस दिलाएगा। इस शर्त को पूरा कर कई राजाओं ने प्रयास किया जिनमे राजा रायमल के पुत्र जयमल और पृथ्वी राज का नाम भी आता है।
मेवाड़ के जयमल ने रखा था विवाह का प्रस्ताव
राणा रायमल( 473–1509) के दूसरे पुत्र जयमल ने तारा की सुंदरता पर आसक्त होकर उनसे विवाह करने की जिद की तो ताराबाई ने उसे अपने पिता सुरताण के पास भेजा राव सुरताण ने राजकुमार जयमल को अपनी पुत्री की शादी की शर्त से अवगत कराया तो युवराज जयमल ने सुरताण और ताराबाई के साथ अशिष्ठ व्यवहार किया। इस व्यवहार से क्रोधित होकर राव सुरताण ने जयमल को मौत के घाट उतार दिया। ज्ञात हो कि राजस्थान के जाने-माने इतिहासकार डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार जयमल सोलंकीयों के विरुद्ध युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे ।
मेवाड़ के पृथ्वीराज ने किया था ताराबाई से विवाह
जयमल की मृत्यु के पश्चात रायमल के जेष्ठ पुत्र पृथ्वीराज( उड़ना राजकुमार) ने ताराबाई से विवाह करने का निर्णय कर टोडा पर आक्रमण कर दिया । पृथ्वी राज में करीब 500 लड़ाको के साथ टोडा पर आक्रमण किया और लल्ला खा को पराजित कर उसे जीत लिया और पृथ्वीराज ने टोडा का राज्य वापस सुरताण को सौंप दिया और वचनबद्ध सुरताण राव ने तारा बाई का विवाह पृथ्वीराज से कर दिया। पृथ्वीराज सिसोदिया ने अजमेर के दुर्ग का जीर्णोद्वार कर उसे अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर तारागढ़ दुर्ग कर दिया था तभी से वह तारागढ़ के नाम से जाना जाता है।
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