( फादर्स डे 21 जून)
“सीना छेद कर छलनी कर देते है लोग,,सहज ही अपनी पर क्यो आ जाते है लोग,
जीते जी तो सम्मान करते नही उनका, मरने पर कंधों पर उठा लेते हैं लोग ।” -कवि चेतन
वर्तमान 21 वी सदी ओर वैश्वीकरण के दौर में अक्सर बेटे , बेटियां अपने पिता को गांव हो या शहर हर जगह पापा , डैडी , ओर डैड आदि नाम से पुकारते है । यही संस्कृति फल फूल रही है ।
- परिवार का ‘वट वृक्ष’ है पिता
पिता शब्द अपने आप मे हिमालय की तरह अपना प्रभाव और महत्व रखता है । वैसे तो हमारे देश में हर दिन उत्सव, हर दिन कोई न कोई दिवस होता है । अपने और अपनों के साथ मिलकर खुशियों को साझा करने का अवसर हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का आधार है । हमारे बुजुर्ग हमारी अमूल्य धरोहर है हर किसी की जिंदगी में पिता का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है यही हमारी सनातम संस्कृति है ।
वर्ष में एक दिन मातृ दिवस, पिता दिवस बुजुर्ग दिवस मना कर आज हम अपने परिवार, अपने परिवार जन ओर माता पिता के नाम से अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है । हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता हो या घर के बुजुर्ग सबको बड़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है ।
- पिता है तो सारे सपने सच्चे हैं
पिता ही वह वट व्रक्ष है जिसकी छांव में हम फलते फूलते है , पिता है तो सारे अरमान अपने है, पिता है तो सारे सपने सच्चे हैं , वह पिता ही है जिसने अंगुली पकड़कर चलना सिखा है , वह पिता ही है जिसके दिल मे प्रेम उमडे पर बयां नही कर पाता , वह पिता ही है जिसकी डांट में भी एक सीख होती है, पिता है तो सारा जहां अपना है , वो पिता ही है जिसके बिना जिंदगी अधुरी है । दिन भर की मेहनत के बाद जब पिता घर लौटता है ओर बच्चा आकर उसे निपट जाता है तो दिन भर की थकान पल भर दूर हो जाती है ।
- हर दिन फादर्स डे की सोच विकसित करनी होगी
क्या वर्ष में एक दिन उनको बधाई देकर सोशल मीडिया पर फ़ोटो शेयर करके सम्मान दर्शाते कर अपने आप को श्रवण कुमार साबित करना चाहते हैं किसी एक दिन नहीं बल्कि हमेशा ही परिवार जनों की नजरों में पिता का अहम स्थान होता है । समय की चाल देखो, भागदौड़ की जिंदगी में मानवीय संवेदनाएं मर चुकी है रिस्तो की अहमियत को कम आंकने लगे है , भागदौड़ की जिंदगी में अपनों के लिए वक्त नहीं इसीलिए वर्ष में एक दिन उन्हें सम्मान देकर, उन्हें पुरस्कार देकर ,,उन्हें सम्मान से पुकार कर, उन्हें बधाइयां देकर और सोशल मीडिया पर हैप्पी फादर्स डे लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती हैं ।
- सांस्कृतिक मूल्यों के संक्रमण का काल
वैश्वीकरण के इस दौर में सांस्कृतिक मूल्यों का संक्रमण काल जरूर है लेकिन क्या हमारे संस्कार ,हमारे संवेदनाएं ,क्या हमारे मूल्य ,क्या हमारी संस्कृति इतने कमजोर हो गये है ,क्या हमारे संस्कार इतने कमजोर हैं कि पश्चिमी संस्कृति के मूल्य हमारे रिश्ते पर ,हमारे संबोधन पर, हमारे संवेदना पर भारी पड़ने लगे हैं ।निश्चित रूप से आज हमारे समाज पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव देखा जा सकता है जिसने हमारी मानवीय संवेदनाओं ,हमारे रिश्ते भारी हो गए है और हमारे संबोधन के तरीकों में बदलाव हुआ है लेकिन इसके लिए केवल पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को ही जिम्मेदार ठहरा कर हम अपनी कमजोरियां नहीं छुपा सकते।
- कब मनाया जाता है फ़ादर्स डे
पूरी दुनिया के साथ साथ भारत में जून माह के तीसरे रविवार को पिता के सम्मान में पिता दिवस मनाते है यानी ” फादर्स डे ” विश्व के कई देशों में अलग-अलग तारीख और दिन को इसे मनाया जाता है। वहीं, भारत सहित कई देशों में यह जून माह के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। वर्ष 2020 में यह 21 जून को मनाया गया ।
- कब शुरुआत हुई थी फादर्स डे मनाये जाने की
फ़ादर्स डे के मनाये जाने के बारे के बताया जाता है की पहली बार वर्जीनिया के फेयरमोंट में 5 जुलाई 1908 में मनाई गई थी। इसके पिछे की कहानी बताई जाती है कि 6 दिसंबर 1907 को 362 लोगो की मोनोगांह के एक खान दुर्घटना में हुई मौत के बाद उनकी याद में उनके सम्मान में ग्रेस क्लेटन ने एक विशेष दिवस का आयोजन किया था। मेरे दृष्टिकोण से तो यह ठीक नही क्योकि मृत्यु के बाद तो हमारी संस्कृति में श्राद्ध मनाया जाता है अब ये श्राद्ध नही तो ओर क्या है । इसके बाद सर्वप्रथम फादर्स डे मनाने की शुरुआत अमेरिका से हुई थी। इस दिन को मनाने की प्रेरणा सर्वप्रथम वर्ष 1909 में मदर्स डे से मिली थी। वॉशिंगटन के स्पोकेन शहर में सोनोरा डॉड ने अपने पिता की याद में इस दिन की शुरुआत की थी। हालांकि फादर्स डे बनाई जाने की अनेक कहानियां ओर कारण बताये जाते है ।
आखिर यह कैसा अंधापन है आज भी हम विदेशियों के द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार तय किए गए दिन को फादर्स डे के रूप में अनुसरण करते चले आ रहे हैं क्या हमारी भारतीय सनातन संस्कृति और हमारे देश में ऐसे कोई आदर्श पिता नहीं हुए जिन्हें आदर्श मानकर हम अपना स्वयं का “भारतीय फ़ादर्स डे” हो ।
- हर दिन हो हैप्पी फ़ादर्स डे
पिता का सम्मान किया जाना चाहिए लेकिन क्या अपने सोच है कि हम जून माह के तीसरे रविवार को ही क्यो मनाते है । केवल इस लिए की पश्चिमी देश ऐसा करते है ।……….आखिर समाज किस भ्रम जाल में जी रहा है,, किस दिशा की ओर जा रहा है वर्ष में 364 दिन सामान्य स्थिति दिनों में हमारे पास उनके लिये वक्त नही ओर हर वर्ष में एक दिन “फादर्स डे ” मनाकर , सोशल मीडिया पर सेल्फी शेयर करके क्या साबित करना चाहते हैं ।
वर्ष में एक दिन को सम्मान देकर पुरस्कार देकर ,क्या साबित करना चाहते हैं वर्ष मेंं एक दिन दी जाने वाली जाने वाली बधाइयों सम्मान प्रेम का अगर थोड़ा सा भी हिस्सा हर रोज उनको दिया जाए जो समाज की सबसे बड़े सामाजिक कुरीति, सबसे बड़ी सामाजिक समस्या हमेशा हमेशा के लिए भारतीय समाज से दूर हो जाएगी और समाज में जहां-तहां खुलेंगे वृद्धाश्रम की आवश्यकता नहीं रहेगी।
- फादर्स डे का महत्व
फ़ादर्स डे मनाये जाने का मकशद यह है कि एक बालक की जिंदगी में पिता का क्या महत्व है बताना है, अपनी भावनाओं का इज़हार करना है और यह सब कुछ केवल वर्ष में एक दिन फादर्स डे मनाने से नहीं बल्कि हर दिन फादर डे मनाए जाने का नजरिया ओर सोच फिर से विकसित करने से ही होगी । हमें हर दिन फादर्स डे मनाए जाने का महत्व समझना होगा ।
- तभी होगा फ़ादर्स डे मनाना सार्थक
जैसा कि हमारी भारतीय संस्कृति कहती है कि हमें हर दिन पिता को मान सम्मान प्रेम देना चाहिए जिनके वे हकदार है , पिता की भावनाओं को समझें, उनकी टोका टोकी को अपनी स्वतंत्रता में बाधा न समझे, उनकी आवश्यकताओं और जरूरतों को समझें , उनकी कही गई बात को ध्यान से सुने उन्हें अपनेपन का एहसास दिलाते रहे, उन्हें वक़्त दे, तभी हमारा फादर्स डे मनाए जाने का उद्देश्य सार्थक होगा ।
- कोरोना काल मे डेड से पिता श्री
वैश्विक महामारी के दौर में जब भारत मे भी लॉक डायन लागू किया हर कोई अपने घर मे में कैद होकर रह गया समय गुजारे तो केसे गुजरे आखिर जनता की मांग पर सरकार में लॉक डाउन के दौरान दूरदर्शन पर रामायण, का प्रसारण की शुरुआत की तो इसका सकारात्मक प्रभाव समाज और पारिवारिक संस्कारो पर पड़ना लाजमी था । रामायण का प्रसारण हुआ तो अचानक हमारे घर के ओर आस पड़ोस के बच्चों में एक परिवर्तन देखा गया कि वो अपने पिता को पिता श्री के नाम से संबोधन करते देखे गये । ये है हमारी भारतीय संस्कृति , लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के परिणामस्वरूप ही पिता के संबोधन का तरीका पिता श्री से डैड हो गया ।
Great post Thank you. I look forward to the continuation. https://yoykem.com.tr/
Wonderful post! We will be linking to this great article on our site. Keep up the great writing https://no19butik.com/
This post post made me think. I will write something about this on my blog. Have a nice day!! https://farmasiucretsizuyelik.com/
Very nice blog post. I definitely love this site. Stick with it! horse racing live video https://freehorseracingtv.com/live/