नफरत ,झूंठ फ़रेब दिखता कपटी दुनिया में,
लोग सच्चे प्यारे दिखते किस्से और कहानी में!
सच झूँठ अतीत के स्याह कोरे पन्ने होते हैं ,
फ़रेबी लोग सच का मुखोटा पहने होते हैं!
वो सच में झूँठ बोल रहा था बड़े सलीके से,
मैं एतबार न करता तो भला करता भी क्या?
बन्दे झूँठ धोखा फ़रेब पलभर का शुकूँ देंगे,
दिल जिसका दुःखाया तूने ताउम्र बद्दुआ देंगे!
मैं सच बोलता रह गया झूँठ कहीँ पहुँच गया,
जो झूँठ था सो बार झूँठ बोलने से सच हो गया!
धोखेबाज झूँठा स्वांग रच दुनिया को ठगते है,
झूँठ फ़रेब का तिलस्मी चोला ओढ़े फिरते हैं!
सजन झूँठ मत बोल अन्त ईश्वर घर जाना है,
वहाँ न हाथी न घोड़े पैदल ही बैकुंठ पाना है !
@ गोविन्द नारायण शर्मा