विश्व बुजुर्ग दिवस ( 01 अक्टूबर ) पर विशेष …
राजस्थान के जाने-माने कवि और मेरे आदर्श औऱ जिनका मुझे हमेशा ही सानिध्य प्राप्त हुआ है कविराज चंद्र सिंह चेतन ने एक मुलाकात के दौरान कहा था –
” . सीना छेद कर छलनी कर देते हैं लोग सहज ही अपनी औकात पर आ जाते हैं लोग जीते जी तो सम्मान करते नहीं मरने पर कंधे पर उठा लेते हैं लोग”
कविराज की यह पंक्तियां आज के सामाजिक और पारिवारिक परिवेश पर पूर्णतया सार्थक नजर आ रही है जब बात हो सामाजिक सरोकार की तो भारतीय समाज और संस्कृति में अपनी संस्कृति सभ्यता संस्कार और अपने कर्तव्य की बात की जाना परम आवश्यक हो जाता है और हमारी संस्कृति और सभ्यता में हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का अमूल्य धरोहर और अतुलनीय पूंजी है ।
सांस्कृतिक मूल्यों ओर संवेदनाओ का पतन
आज इस भौतिकवादी युग में भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए संयुक्त परिवार सांस्कृतिक मूल्यों का पतन परिवार में बुजुर्गों के सम्मान में कमी ए,कांकी परिवार का निर्माण और मानवीय संवेदनाओं का पतन जैसी बातें समाज में देखी जा रही है जहां तक सवाल है परिवार में समाज में बुजुर्गों के सम्मान का तो यह एक समाज का एक मार्मिक पहलू है । वर्तमान में समाचार पत्र हो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो कहीं न कहीं बुजुर्गों के साथ मानवीय व्यवहार ,मारपीट, घर से निकाल देना या उनका ध्यान न रखना जैसी खबरें सुनने और पढ़ने को मिलती रही है । ऐसे ही खबरें सुर्खियां बनती है। परिवार और अपनों की उपेक्षा के कारण ही आज व्रद्धआश्रम हमारे समाज का हिस्सा बन गये है । विश्वास ही नहीं होता कि जिस देश में बुजुर्ग माता-पिता को इतना सम्मान दिया जाता था और जिस देश में श्रवण कुमार जैसे मातृ पितृ भक्त की गाथा युगो युगो से सुनी जा रही है उस देश में माता-पिता के साथ/परिवार में बुजुर्गों के साथ इस तरह का व्यवहार। माता-पिता को बोझ समझ कर उनकी उपेक्षा की जाती है । यहां तक कि उनकी प्राथमिक आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं किया जाता , माता पिता इस विश्वास के साथ अपनी संतान का लालन पालन करते हैं कि बेटे उम्र की इस अवस्था में उनका सहारा बनेगे लेकिन जब वही बेटा उस विश्वास और ममता का गला घोट ते हुए उनकी उपेक्षा करने लगता है तो उनके दिल पर क्या गुजरती होगी आज के और पीढ़ी को शायद इसका अंदाजा नहीं है।
परिवार का आधार है बुजुर्ग
भारतीय संस्कृति बुजुर्गों को परिवार में बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है उन्ही के मार्गदर्शन में परिवार का हर छोटा-बड़ा कार्य किए जाता था लेकिन आज के इस भौतिकवादी युग में दिनों दिन परिवार में समाज में बुजुर्गों के सम्मान में कमी देखी जाती रही है आखिर क्यों ?आज की युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य से दूर पड़ती नजर आ रही है। क्या ? व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वार्थ हमारी संस्कृति पर इस कदर हावी हो जाते हैं कि हम बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी को भूल रहे हैं । क्या हम इतने आधुनिक हो गए हैं कि परिवार में बुजुर्गों के विचार उनकी टोका टोकी परिवार में उनकी उपस्थिति को बहुत समझने लगते हैं और उनसे किनारा करना चाहते हैं । यह एक सच्चाई व समाज का मानवीय पहलू है जिसको हमें स्वीकार करना ही होगा हम केवल इसके लिए पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को ही जिम्मेदार मान कर अपनी कमजोरियों को छुपा नहीं सकते ग्रामीण अंचल के लोगों की बात छोड़ो और पढ़े-लिखे लोग भी समाज के इस मार्ग को समझने में असफल रहे हैं और उनके द्वारा भी बुजुर्गो के साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है ।
विश्व बुजुर्ग दिवस की सार्थकता
हर वर्ष 1 अक्टूबर को विश्व योग दिवस मनाया जाता है जो वास्तविकता से परे हैं सरकार के द्वारा एक ऐसा विधेयक खिलाया गया है इसमें युवाओं को अपने माता-पिता के भरण-पोषण उनकी प्राथमिक आवश्यकता पूरी करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य किया गया है ।सरकार का यह प्रयास स्वागत योग जरूर है लेकिन सवाल यह भी उठता है कि परिवार में उपेक्षित बुजुर्ग कानून की मदद लेने के लिए क्या ? आगे आएंगे कानून के माध्यम से बुजुर्गों के पोषण के लिए युवाओं को बातें तो किया जा सकता है लेकिन कानून के माध्यम से युवाओं के दिल में सम्मान की भावना संवेदना पैदा नहीं की जा सकती यह तभी हो सकता है जब आज के युवा को अपने कर्तव्य और जिम्मेदारी का एहसास हो उन्हें मानवीय संवेदनाओं को अनुभव करने का नजरिया हो ।कुछ लोग मानवीय मूल्यों और सांस्कृतिक बातों को सैद्धांतिक समझते हैं लेकिन यह आज इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते हमें स्वीकार करना ही होगा कि परिवार में आज हम बुजुर्गों के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं वैसा ही व्यवहार कल ऐसा व्यवहार हमारे साथ भी हो सकता है क्योंकि परिवार के बच्चे जिस वातावरण में रहेंगे इस तरह का व्यवहार में परिवार में देखेंगे जाहिर है कि वैसा ही व्यवहार वह भी सीखेंगे और करेंगे। हमें परिवार में समाज में बुजुर्गों के साथ हो रहे उपेक्षा पूर्ण व्यवहार को एक परंपरा बनने से रोकना होगा क्योंकि बुजुर्ग पीढ़ी हमारी अमूल्य धरोहर है इस के सम्मान को हमे बनाए रखना ही होगा ।
विचारों ऒर मूल्यों का संक्रमण काल है
वर्तमान समय में सांस्कृतिक मूल्यों का संक्रमण काल है जिसमें बुजुर्ग पीढ़ी और युवा पीढ़ी के बीच कुछ मामलों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, विचारों में मतभेद हो सकते हैं लेकिन इस मतभेद को मनभेद बनाते हुए समस्याओं का समाधान समाधान निकाला जाना आज की आवश्यकता है यह तभी हो सकता है जब समाज के युवा में कर्तव्य बोध हो ,जिम्मेदारी का अहसास हो और मानवीय संवेदनाओं का अस्तित्व हो । युवा अपनी जिम्मेदारी समझेगा तो अनेक सामाजिक, पारिवारिक समस्याओं का समाधान हो जाएगा जाएगा।
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