- रक्षाबंधन पर बहन ने मान लिया ऐसा उपहार भाई मजबूर हो गया सरकार की हठधर्मिता के आगे त्यौहार उसका फीका हो गया ।
सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना महत्व होता है । भाई बहनों के रिश्तो का पावन त्योहार रक्षाबंधन जो प्रेम, विश्वास, समर्पण और कच्चे धागे रूपी राखी का बंधन है ।
यह भी क्या बड़ा अजीब रिश्ता है । राखी भले ही कच्चे धागे से बनी हो लेकिन यह मजबूत रिश्ते ,मजबूत विश्वास, और मजबूत रक्षा सूत्र का बंधन है । बहने अपने भाई की कलाई पर विश्वास और प्रेम और रक्षा का कवच बांधती है। रिश्तो का कोई मोल नहीं होता, राखी की कोई कीमत नहीं होती, किसी उपहार, किसी भेंट ,किसी वस्तु से इसका मोल नहीं किया जा सकता, फिर भी हर भाई यह प्रयास करता है कि वह अपने क्षमता और बहन के मान सम्मान अनुसार उसे कुछ उपहार दे। भले ही बहने कभी कुछ मांगती नहीं लेकिन भाइयों का कर्तव्य बनता है कि वह हर खुशी दे जो बहन चाहती हो।
- बहन ने मांग लिया पहली बार एक उपहार
इस बार तो बड़ा अजीब हो गया पहली बार बहना ने भाई से कुछ मान लिया ।जिसके आगे भाई खुद मजबूर हो गया बहना कोई वस्तु कुछ और भेंट मांगती तो भाई अपनी क्षमता से भी ज्यादा दे देता पर बहन ने अबकी बार तो भाई से ऐसा मांग लिया कि भाई अपना मस्तिष्क झुका कर बैठ गया और उसकी आंखों से आंसुओं की धारा निकल पड़ी । बहना ने तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 में अपने छोटे भाई की जोइनिंग ही मांग ली, लेकिन बेचारा भाई भी क्या करें वह सिस्टम के आगे लाचार हो गया । यह देख भाई की आंखों से आंसू का झरना ही बह गया । क्योंकि एक बहन भी तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 से जोइनिंग की उम्मीद लगाए बैठी थी । एक तरफ बहन की पीड़ा और दूसरी तरफ भाई की मजबूरी यह देख कर हर्ष उल्लास का माहौल आंसूओ में डूब गया ।
- भाई हो गया मजबूर और निकल पड़े आँसू
यह तो एक छोटा सा वाकिया था पर प्रदेश में न जाने ऐसे कितने मजबूर बेरोजगार होंगे जिन्होंने तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 को लेकर कितने सपने सजाए होंगे,न जाने कितनी बहने इस भर्ती में जॉइनिंग की उम्मीदे लगाए बैठी होगी लेकिन शायद उम्मीद लगाए बहनों और मजबूर भाइयो को भी यह समझ में आ गया होगा की योग्यता, मेहनत, संघर्ष, न्याय, वादे ,इरादे परिवारों की खुशियां ,यह सब सरकार की हठधर्मिता और सत्ता के आगे महज बातें हैं लाचार है। सरकार जिस पर मेहरबान हो जाए उनको सब कुछ दे देती है चाहे नीतियों में बदलाव ही क्यो न करना पड़े जो उनका हक नहीं होता नीति में बदलाव कर देती हैं लेकिन जब तक सरकार की इच्छाशक्ति नहीं हो तब तक योग्यताएं ,मेहनत, न्याय संवेदना का सरकार और नेताओं के लिए कोई मोल नहीं होता ,कोई महत्व नहीं होता।
- न जाने कितने त्यौहार फ़िके रह गए
तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती 2012 में क्या कहर ढाया है। युवा बेरोजगारों जो अधिक अंक प्राप्त कर नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं उनके न जाने कितने त्यौहार न जाने कितनी होली न जाने कितनी दीवाली न जाने कितनी रक्षा बंधन निकल गए और आज भी युवा बेरोजगार आंखों में आंसू लेकर अपने आप को और सरकार की नीतियों को खोज रहा है । सोच रहा है कि आखिर क्या गुनाह किया है उसने कि अधिक अंक लाकर भी वह सिस्टम के आगे लाचार हो रहा है । हर युवा की जुबान पर यही शब्द है होली, दिवाली, रक्षाबंधन के त्यौहार फ़िके रह गए , TGT 2012 के बेरोजगारों के अरमान आंसुओं में बह गए ।
- कौन है इन सब के लिए जिम्मेदार
अगर आज सैकड़ों की संख्या में बेरोजगार अपनी खुशियों से वंचित हो रहे हैं ,भाई बहनों के इस त्यौहार पर भाई और बहनों की आंखों से आंसू निकल रहे हैं, बेरोजगार तड़प रहा है , बेरोजगार मजबूर हो रहा है ,बेरोजगार न्याय की उम्मीद में संघर्ष कर रहा है, बेरोजगार न्याय की उम्मीद लगाए बैठा है। इन सबके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह सरकार की हठधर्मिता ही जिम्मेदार हैं। युवा रास्ता भटकता है, युवाओं की उम्मीदें टूटती है, शासन प्रशासन के प्रति असंतोष पनपता है तो उन सब के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो है सरकार , सरकारी सिस्टम,नेताओ की मनमर्जी और उनकी नीतियां ।
नमस्कार सर टीजीटी 2012 के बेरोजगारों की पीड़ा को समझने के लिए हार्दिक धन्यवाद काश इस हठधर्मिता का कोई उपाय होता अथवा स्वयं सरकारी तंत्र इसकी भेंट चढ़ता तब इसको समझ में आता बेरोजगारी कितना बड़ा अभिशाप है