• तुलसी (पौधा)

तुलसी का पौधा जो अपने औषधीय गुणों और आध्यात्मिक महत्व के कारण युगों युगों से पूजा जाता रहा है । आज हम इसी तुलसी के पौधे के औषधीय गुणों और इसके आध्यात्मिक महत्व के बारे में जानते है….

औषधीय गुणों वाला घर घर मे पूजे जाने वाले और अपने दैनिक उपयोग का हिस्सा वाला पौधा तुलसी एक औषधीय पौधा है जिसमें विटामिन (Vitamin) और खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। सभी रोगों को दूर करने और शारीरिक शक्ति बढ़ाने वाले गुणों से भरपूर इस औषधीय पौधे को प्रत्यक्ष देवी कहा गया है।

  • कौन थी तुलसी माता(पौधा)

सनातन संस्कृति वाले भारतीय समाज में  हर घर में पूजे जाने वाला एक औषधीय पौधा जिसे अक्सर तुलसी माता के नाम से जाता है । क्या आप जानते हैं कि औषधीय गुणों से भरपूर यह तुलसी का पौधा धार्मिक महत्व रखता है । धार्मिक ग्रंथ आकृतियों की माने तो तुलसी के नाम से पहचाने जाने वाले पौधे के बारे में बताया जाता है कि तुलसी(पौधा) पूर्व जन्मी एक कन्या थीब्जिसक मूल नाम वृन्दा था जो कि बाल्य अवस्था से ही भगवान विष्णु कि परम भगत थी।

  • तुलसी का वैवाहिक जीवन

तुलसी जब युवा हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में  ही दानव राज जलंधर से किया गया।  बताया जाता है कि दांव राज जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था । विष्णु भगत वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी इस बात से देवता भी अवगत थे।

  • युद्ध मे गये पति की रक्षा का लिया संकल्प

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध में गये  पतिव्रता वृन्दा में युद्ध मे गये अपने पति की रक्षा के लिए संकल्प लिया कि जब तक पति युद्ध में रहेगे वह पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते तब रक अपना संकल्प नही छोड़ेगी ।बताया जाता है कि पतिव्रता स्त्री वृन्दा के संकल्प और तपस्या व व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके। युद्ध लंबे समय तक बिना किसी निर्णय के चलता रहा देवता हैरान और परेशान थे यह देखकर इस समस्या के समाधान के लिए देवलोक के सारे देवता भगवान विष्णु  के पास गये और उनसे और उनसे । लेकिन कहा जाता है कि भगवान भी भक्त के वश में होते हैं प्रार्थना की तो भगवान भगवान विष्णु की मजबूत है कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।

देवताओं और दानवों के बीच युद्ध जैसी समस्या का समस्या का समाधान करना आवश्यक था इसीलिए सभी देवताओं के दूसरे उपाय की खोज में थे । आखिरकार भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा वह तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए। बस अब क्या था जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और बुस्क सर धड़ से अलग कर दिया ।

  • वृन्दा ने दिया था  श्राप

जलंधर का सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि उसके पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उसी वक्त भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई।  उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये। यह देख कर सभी देवताओ में सन्नाटा छा गया  सभी देवता वृन्दा से अपना श्राप वापस लेने की प्रार्थना करने लगे तब  पतिव्रता वृंदा ने भगवान को वापस उनके अपने ही रूप में कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वह सती हो गयी।

  • वृन्दा की राख से निकला तुलसी का पौधा

पतिव्रता वृन्दा के सती ही के पर उनकी राख से  कुछ समय उपरांत एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने  उसका नाम  तुलसी है तथा मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा ।  इसके अतिरक्त उन्होंने कहा कि
बिना तुलसी जी के  वे भोग स्वीकार नहीं करेंगे। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे।

  • तुलसी और शालिग्राम का विवाह

तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है ।देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है । आज भी देव उठनी एकादशी के रूप में माना जाता है । इस दिन सैकड़ों , हजारों की संख्या में विवाह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं साथ ही इस दिन को आध्यात्मिक,पौराणिक महत्व के रूप में देखा जाता है।

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