निर्भया के चारों गुनहगारों को कल शनिवार को फांसी दी जानी थी. लेकिन पटियाला हाउस कोर्ट ने अभी फिलहाल गुनहगारों की फांसी रोक दी है. पटियाला हाउस कोर्ट ने अगले आदेश तक निर्भया के चारों दोषियों की फांसी को टाल दिया है.   22 जनवरी को होनी थी फांसी  कानूनी दांवपेच में उलझ कर  रुकी फांसी आखिर  फिर एक फरवरी को फाँसी की  तारीख मुकर्रर कर  दी गई  अब  एक बार फिर कानूनी दांवपेच में उलझ कर फांसी को टाल दिया गया   मिलेगी अब एक ओर तारीख , तारीख पर तारीख ,आखिर कब तक ऐसे दोषियों की सजा को टाला  जाता रहेगा, आखिर कब तक ऐसे दोषियों को बचाया जाता रहेगा ,आखिर न्याय में इतनी देरी क्यों , इस प्रकार की देरी और कानूनी दाव पेचों से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस प्रकार के कानूनी दांवपेच से क्या अपराधियो  में  कानून का डर रहेगा, क्या  ऐसे दरिंदे ऐसा अपराध करने से डरेंगे, पीड़ितों और उनके परिवार जनों को समय पर न्याय मिलने की उम्मीद रहेगी।

     खैर जो भी है सबका अपना-अपना नजरिया है सबकी अपनी अपनी सोच है इस विषय पर हम नहीं जाएंगे लेकिन समाज के ऐसे दरिंदों के लिए क्या सजा होनी चाहिए बताये जाने की आवश्यकता नहीं है बड़ी खुशी मिलती है उस वक्त समाज में घूम रहे ऐसे दरिंदों को सजा देने के लिए समाज का हर वर्ग हर प्रकार का भेदभाव भूलकर एक स्वर में मांग होती है पर उस वक्त पीड़ा होती है जब ऐसे दरिन्दों को बचाने के लिए हाथ उठने लगे उनके समर्थन में आवाज उठती है महिलाओं और बालिकाओं के प्रति दरिंदगी करने वाले को माफ् किया जाने की सलाह दी जाती है  समय की आवश्कता है  की कि हर प्रकार के मतभेद भूलकर ऐसे दरिंदों को सजा दिए जाने की मांग होनी चाहिये, समाज के हर वर्ग को दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार कर इन्हें कठोर से कठोर सजा दिए जाने की पैरवी की जानी चाहिए।
आखिर यह कैसी विडंबना है जिस  विश्व गुरु कहलाने वाले देश में जहा भारतीय संस्कृति में नारी में देवी व माता के स्वरूप देखा गया और हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी नारी को पूजने स्थान दिया गया नवरात्रों में कन्याओं को कन्या भोज करा कर उन्हें उपहार दिया जाता है हमारे समाज को हमारी संस्कृति को हमारे सभ्यता को किसकी नजर लग गई है आधुनिक युग में नारी के रूप में करुणा प्रेम दया और त्याग की देवी के रूप में प्रतिष्ठित होते हुए भी समाज के कुछ लोग अपनी  कुंठित सोच के कारण सामाजिक जीवन में उसे मात्र भोग की वस्तु मान कर रह गया है।

   आज समाज में महिला घर से बाहर हो या घर में  अपने आप को सुरक्षित महसूस क्यों नहीं करती क्यों उन्हें भोग की वस्तु  मानकर हवस का शिकार बना दिया जाता है जब महिलाएं बालिकाएं सुरक्षित नहीं है तो किस से अपनी  पीड़ा सुनाएं, कहीं भी अकेली आ जा नहीं सकती महिलाएं अबोध बालिकाएं जो शायद इस दुनियादारी की रस्मों से इस समाज की सोच से परिचित भी नहीं हुई होगी मानव के रूप में घूम रहे ऐसे दानव और भेड़ियों के हवस का शिकार हो जाती है अनेक मनचलों की हरकतों का विरोध करने पर हिंसा का शिकार हो जाती है तेजाब फेंक कर उनके चेहरे को कुरूप बना दिया जाता है आखिर कब रुकेगी इस प्रकार की दरिंदगी न जाने कितनी बालिकाएं अबोध बालिका ऐसे दरिंदों की हवस का शिकार होकर सिसक रही है क्या यही महिला होने की सजा है क्यों दोषियों को सजा मिलने में इतनी देरी हो जाती है क्यो  दोषियों  को बचाने समाज के कुछ लोग समर्थन करने लगते हैं  आखिर  लोगों के दिमाग में ऐसे अपराध करने से पहले दंड का भय नहीं होता यह एक चिंतनीय विषय है।

आखिर जब ऐसे दरिंदों को सजा दिलाने के लिए लंबे समय तक कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ता है पीड़ितों और उनके परिवार जनों को उन्हें मानसिक तनाव, पीड़ा से गुजरना पड़ता है  न केवल मानसिक रूप से बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी  अपने आपको समस्याओ का सामना करना होता  है
आखिर इस प्रकार के सामाजिक ,आर्थिक और मानसिक पीड़ा उनकी वेदना से बरसों तक कानूनी लड़ाई लड़ लड़ कर कुछ लोग तो अपना धैर्य खो कर शायद इस कानूनी लड़ाई को छोड़कर हार मान चुके होते हैं क्योंकि उन्हें पीड़ा होती है कि उन्हें इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी क्या वह दोषियों को सजा दिलाने में सफल हो पाएंगे ऐसा ही सवाल उनके मन मस्तिष्क में उठता होगा।

आखिर कौन है इस प्रकार के सिस्टम का जिम्मेदार आखिर कौन है इस प्रकार की घटनाओं का जिम्मेदार क्या हमारी कमजोर कानून व्यवस्था क्या हमारी कमजोर न्यायिक प्रणाली  या अपराधियों को सजा में हो रही देरी या हमारी कानूनी पेचीदगियां।इस प्रकार के दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलना आज की आवश्यकता है, आवश्यकता है समाज को अपनी सोच बदलने की  ,  आवश्यकता है एक कठोर कानून की,  आवश्यकता है एक सकारात्मक नजरिए की तुरंत और समय पर न्याय दिए जाने की, सरल सुलभ न्यायिक प्रक्रिया की ताकि दोषियों को कठोर से कठोर सजा मिले ।

पिछले दिनों इसी प्रकार के अनेक घटनाएं देखने को मिली रूह कांप जाती है ऐसी खबरें को पढ़कर सुनकर मर्म को छू जाती है समाज में सिसक रही ऐसी बालिकाओं के साथ दरिंदगी की घटनाओं को सुनकर मेरी मेरी रूह कांप जाती है मेरी  कलम में  इतनी ताकत कहा से लाऊँ  कि मैं ऐसी बालिकाओं के साथ हो रहे अन्याय को यहां बयान कर सकु उनकी पीड़ाओं  को कम  कर सकूं  पीड़ितों ओर उसके परिवार जनों को धैर्य रखने की ताकत दे सकू की आज नही तो कल  दरिन्दों को सजा जरूर मिलेगी और मिलनी ही चाहिए एक कोशिश है मेरी  की समाज में घट रही ऐसी दरिंदगीयो ऐसे कुंठित मानसिकता वाले व्यक्तियों का बहिष्कार हो उन्हें सख्त से सख्त सजा मिले समय पर न्याय मिले।में अपनी कलम के माध्यम से  समाज को अपनी सोच और अपनी नजरिया बदलने की अपील कर सकता हूं अपील कर सकता हूँ कि पीड़ितों ओर उनके परिवार वालो को न्याय मिले और समय पर मिले   उन्होंने पहले ही बहुत कुछ खोया है,  उम्मीद है अब तो उनको न्याय मिले  न्याय में हो रही देरी न्याय नही मिलने के बराबर है।
 तारीख पर तारीख मिलती है टी एक ओर नई तारीख, अब तारीख नही न्याय मिलना चाहिए।कुछ भी हो देश मे आज भी न्यायपा।लिका से हर भारतीय को उम्मीद है   में भी उम्मीद  करता हूँ कि ये उम्मीद बरकरार रहे,।

3 thoughts on “तारीख पर तारीख मिलेगी अब और एक तारीख,तारीख नही अब न्याय चाहिए”

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