पंचायत राज संस्थाओं मे लोकतंत्र की प्रारंभिक पाठशाला कहलाने वाली लोकतांत्रिक संस्था ग्राम पंचायत/विलेज कॉउन्सिल (Village Council) ग्राम पंचायत गांव स्तर पर पंचायती राज प्रणाली की आधारशिला है। पंचायती राज प्रणाली के अनुसार, ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद होती है।ग्रामीण पंचायती राज की इस प्रणाली को 73 वे संवैधानिक संशोधन 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था। जिसमें ग्राम सभा का भी उल्लेख है।
ग्राम पंचायत और ग्राम सभा एक ही या अलग
कई बार ग्राम पंचायत और ग्राम सभा को लेकर यह दुविधा रहती है कि इन दोनों में क्या भिन्नता है? क्या दोनों संस्थाएं एक ही है ? इन दोनों के सदस्यों के को लेकर क्या क्या प्रावधान है ? ..तो आज हम इस आलेख के माध्यम से ग्रामीण पंचायत राज की प्रारंभिक पाठशाला ग्राम पंचायत और ग्राम सभा के बारे में जानेंगे। निश्चित रूप से यह आलेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा….
पंचायत और ग्राम सभा दोनों संवैधानिक संस्था
73वें संविधान संशोधन के पश्चात ग्राम पंचायत और ग्राम सभा(अनुच्छेद 243(क) दोनों ही संवैधानिक संस्था है। दोनों का नाम सुनते ही मन में दोनो का एक ही अर्थ लगा लिया जाता है कि ग्राम सभा ही ग्राम पंचायत है या ग्राम पंचायत ही ग्राम सभा लेकिन दोनों स्थानीय संस्था होने के बावजूद भी दोनों अलग है दोनों की संगठनात्मक संरचना अलग है दोनों के कार्य अलग-अलग हैं।
73वें संविधान संशोधन 1992 जो कि संविधान के भाग 9 में उल्लेखित है,अनुच्छेद 243 (क)से लेकर 243 (ण) तक के कुल 16 अनुच्छेदों में इसका उल्लेख है ज्ञात हो कि इन्हीं 16 अनुच्छेदों में से एक अनुच्छेद 243 (क) में ग्राम सभा का प्रावधान किया गया है।
गठन संबधी अंतर :ग्राम पंचायत का गठन मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से होता है पंचायत क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा सरपंच और वार्ड पंच का चुनाव किया जाता है। ज्ञात हो की यह चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा करवाया जाता है। जबकि ग्रामसभा का निर्माण किसी निर्वाचन द्वारा नहीं बल्कि ग्राम पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी मतदाता जिनका नाम मतदाता सूची में उल्लेखित हो इसके सदस्य होते हैं।
ध्यातव्य:ग्राम पंचायत की सबसे छोटी इकई वार्ड सभा होती है जिसमे वार्ड के सभी सदास्य शमिल होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता संबंधित वार्ड के वार्ड पंच द्वारा की जाती है।
ध्यातव्य :राजस्थान में ग्राम सभा की शुरुआत सर्वप्रथम 26 जनवरी 1999 को जयपुर जिले के सांगानेर पंचायत समिति की मुहाना ग्राम पंचायत में की गई थी तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे।
ध्यातव्य :राजस्थान देश का पहला राज्य है जहां जनवरी 2000 में वार्ड सभा का पहली बार गठन किया गया था।
सरंचना संबधी अंतर: ग्राम पंचायत में मतदाताओं द्वारा निर्वाचित व्यक्ति ही इसके सदस्य होते जबकि ग्रामसभा के संबंध में यह अलग प्रावधान है। संविधान के अनुच्छेद 243 (क) के अंर्तगत ग्राम पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले समस्त गांव या गांव से संबंधित सभी पंजीकृत मतदाता इसके सदस्य होंगे। इसका तात्पर्य प्रत्येक 18 वर्षीय या उससे ऊपर के नागरिक जिनका नाम मतदाता सूची में पंजीकृत है ग्राम सभा के सदस्य होते हैं।
अध्यक्षता संबधी अंतर: ग्राम पंचायत और ग्राम सभा दोनों की बैठकों की अध्यक्षता सरपंच द्वारा की जाती है और उनकी अनुपस्थिति में उपसरपंच द्वारा की जाती है। सरपंच और उपसरपंच दोनों की अनुपस्थिति की स्थिति में बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से इस प्रयोजन के लिए निर्वाचित किए जाने वाले किसी सदस्य द्वारा इसकी अध्यक्षता की जाती है।
कार्यकाल संबधी अंतर: ग्राम पंचायत का एक निश्चित कार्यकाल होता है जो संविधान के अनुसार 5 वर्ष है उसे कुछ प्रावधानों के अंर्तगत समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है लेकिन ज्ञात हो कि ग्रामसभा एक स्थाई संस्था है जो कभी भंग नहीं होती क्योंकि इसका किसी चुनाव द्वारा गठन ना होकर इसका निर्माण ग्राम पंचायत में आने वाले सभी मतदाताओं से मिलकर होता है और पंचायत क्षेत्र में आने वाला प्रत्येक मतदाता अतः इसका सदस्य बन जाता है। भले ही उसकी अध्यक्षता निर्वाचित सरपंच द्वारा की जाती हों। क्योंकि जो भी व्यक्ति ग्राम पंचायत का सरपंच बनेगा वही ग्राम सभा की अध्यक्षता करने लगता है।
सदस्यता की समाप्ति :ग्राम पंचायत के किसी सदस्य लगातार तीन बैठकों में बिना बताए अनुपस्थित रहता है तो नियमनुसार उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है लेकिन ग्राम सभा के सदस्य की सदस्यता तब तक खत्म नहीं की जा सकती जब तक उसका नाम मतदाता सूची में नाम अंकित हो।
शपथ संबंधी अंतर :ग्राम पंचायत के गठन में सरपंच, उप सरपंच और वार्ड पंच को सदस्यता की शपथ लेनी होती है जो रिटर्निंग ऑफिसर/ पीठासीन अधिकारी द्वारा दिलाई जाती है जबकि ग्राम सभा के सदस्यों को किसी भी प्रकार की शपथ नहीं लेनी पड़ती।
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