होली से जुड़ा एक संस्मरण……….
* कुछ यूँ मनाई मित्र के साथ ससुराल की पहली होली
*.कहते हैं आज त्यौहार के रंग फीके हो गए सच यह है जनाब कि आज व्यक्ति के व्यवहार ही फीके हो गए।
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यादें भी क्या चीज है देर सवेर चली आती है यादों के साथ वक्त गुजर जाता है और वक्त जाने अनजाने मैं कुछ कही कु..छ अनकही यादें ,बातें छोड़ जाता है ऐसी ही कुछ संस्मरण कुछ यादें रंगों के त्यौहार होली से जुड़ी हैं । माना यादें थोड़ी पुरानी है लेकिन वक्त उन्हें तरोताजा कर देता है ऐसे ही कुछ यादें होली के इस अवसर पर आपके साथ साझा करते हैं ।
कुछ यूं थी घटना
आज से करीब 25 वर्ष पूर्व की बात है । मेरे एक अजीज मित्र जिसकी नई-नई शादी हुई थी ससुराल में उसे पहली होली मनाने के लिए आमंत्रित किया गया था । मित्र थोड़ा शर्मीला था तो अपने किसी मित्र को वहां साथ ले जाने का विचार उसके मन मस्तिष्क में था । मित्र ने वह बात मुझसे साझा की …अब मित्र था उसकी बात को स्वीकार करते हुए सहज रूप से उसके साथ उसके ससुराल में होली के पावन त्यौहार पर जाने को सहमत हो गया । गांव की संस्कृति थी ,परंपराओं और संस्कृति के अनुसार उसका बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया आस पड़ोस के मोहल्ला वाले भी चाय के लिये बुलाते …आखिर स्वागत हो भी क्यों नहीं मित्र उस गांव का जमाई जो था वह भी इकलौते। मित्र की आव-भगत , स्वागत का कुछ फायदा हमें भी मिला जब जमाई साहब के अजीज मित्र जो थे हम। आव भगत स्वागत का दौर खत्म हुआ होली के पावन अवसर पर जमाई साहब के लिए पकवान बनाए गए खाने का दौर समाप्त हुआ । कुछ बातें हुई.. कुछ एक दूसरे परिवार के हालचाल जाने गए । ग्रामीण अंचल था सोने का वक्त जल्दी ही हुआ मित्र की सासू मां ने जमाई साहब के बिस्तर लगाने को बोला …..जैसा कि होली का वक़्त था थोड़ी गुलाबी ठण्ड थीं बिस्तर खुले में ही लगा लगाया गया गांव जो था । मित्र की सांस ने मित्र से बोला कि रात को ठण्ड लगेगी रजाई भी रख दो पर …..मित्र में अनायास ही बोल दिया कि नही ….नही रजाई तो रहने दो ठण्ड नही है गुलाबी ठंड का मौसम था मध्य रात्रि के पश्चात सर्दी ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया मित्र न तो सोने की स्थिति में थाना जागने की स्थिति में ….मन ही मन सोच रहा था कि कास रजाई ले आते यहां मुझे भी कहां नींद आने वाली थी सर्दी का एहसास जो हो रहा था। मन ही मन मैं भी मित्र को कोस रहा था ….इसी प्रकार भोर का समय हुआ मित्र मन ही मन सोच रहा था कि काश वह (मित्र की पत्नी) रजाई लेकर आ जाये और मेरे ऊपर डाल दे …. ग्रामीण क्षेत्र था लोग प्रातः काल जल्दी उठ जाया करते हैं घर की महिलाएं जाग चुकी थी । सासु मां ने मित्र की छोटी और नटखट साली साहिबा को बोला की जमाई सा को प्यास लगी होगी पानी की आवश्यकता होगी पानी का लोठा /जग ले जाकर रख दे….. मित्र की साली साहिबा ने पानी का जग ले जाकर कहा कि लो …….. (मित्र ने पूरी बात भी नही सुनी थी) उस वक्त मित्र जाग रहा था और मन ही मन मैं चल ही रहा था कि काश वो (मित्र की पत्नी) रजाई लेकर आए….. मित्र ने सोचा कि वह रजाई लेकर आ गई….. बिना सोचे समझे जल्दबाजी में अनायास ही बोल दिया कि… डाल दो उपर… साली साहिबा जिसमे बचपना था अबोध थी नटखट थी अब बचपन तो बचपन होता है ….. उसने पानी का जग मित्र के ऊपर डाल दिया । मित्र की हालत देखने लायक थी गुस्सा बहुत था लेकिन करता क्या …. पर मुह से निकल गया कि क्या इसी प्रकार ससुराल में पहली होली मनाई जाती है । जब इस घटना के बारे में घर वालों को जानकारी हुई तो कोई अपनी हंसी नहीं रोक पा रहा रहा था। आज भी जब होली का त्यौहार आता है तो हम उस मंजर को याद करते हैं तो अपनी हंसी नहीं रोक पाते हैं । वह भी एक दौर था प्रेम का एहसास था अपनेपन का भाव था । अब वह दौर कहां वह मंजर ,कहां वह संस्कृति और सभ्यता कहां वो लोग । आज तो खुद अपने आप से ही अपरिचित हो गए हैं लोग ,न वो प्रेम न वो अपनापन, न वो सहनशक्ति ।….फिर कहते हैं लोग कि त्यौहार आज फीके हो गए .. पर नहीं मित्रों आज त्यौहार नही व्यक्ति के व्यवहार ओर मन फीके हो गए । सच्चाई यह है कि आज त्यौहार मनाए जाने के तरीके बदल गए त्यौहार मनाए जाने के उद्देश्य बदल गए ,इंसान की नियत बदल गई व्यक्ति के व्यवहार बदल गये तो त्यौहार के रंग तो फीके होने ही थे ।
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