जेठ मास की तपन : काव्य के रचनाकार गोविंद नारायण शर्मा
जेठ मास की भीषण गरमी लू चाले ताती,
ऊपर फलक झुलसे तपती जमीं की छाती!
उगता सूरज अगन बरसावे निष्ठुर अभिमानी,
खगवृन्द सब हुए बेहाल पीने को नही पानी!
दसों दिशाओं में तूफान अन्धड़ उडती गर्द ,
आँधी खूब चले बेदर्द जरा भी नही हमदर्द!
गरीबों के उड़ गये घास पूस छान छप्पर,
पूस टापरी ढह गयी नहीआसरो हुए बेघर!
आवे सी भभक रही धरती शोले सुलग रहे,
बालू सुलगे भड़भूजे की भट्टी दहके अंगारे!
दरियाव कूप वाटिका सूखे खुद पानी मांगे,
कहीँ नीर सरोवर दिखता नही वसुन्धरा पर!
तेज तपन धरा का सीना जीर्ण विदीर्ण हुआ ,
पाषाण शिला चटक गये प्रचण्ड लू थपेड़ों से!
मरुधरा में कोसों तक जल स्रोत दिखे नही,
तरुवर सूख गये पंछी को छाया नसीब नही !
प्रसून मुरझा गये उदास बागवां देख क्यारी,
उजड़ गयी बिन पानी मेहनत की फुलवारी!
प्यासी धरा बिलख पुकारे मेघा उमड़ आवो, जलधर तड़ित गर्जन कर जलधार बरसाओ!
चातक प्यासा बिन स्वाति की एक बूंद को,
मेह आवो बरसो टेर रहा मयूरा नयन मूँद के!
शत्रु मित्र हो गये तपती जेठमास की घाम में,
गर्मी से बचने विषधर चुप बैठा मोरपंख छांव में!
भीषण गर्मी तन सुलगे बड़वानल अंगारों सा ,
रश्मि देव इतनी भीषण अगन मत सुलगाओ!
सबसे कहना है छाछ राबड़ी छक के पीवो,
सकल गरमी में बिन काज बाहर न जावो!
तन ढककर बाहर निकलो रखे सदा ध्यान,
तन की तपन बुझाने का पूरा जतन करो!
बारम्बार शीतल पदार्थ जलपान खूब करो,
ठंडा भोजन त्यागे खरबूजे मतीरे खूब खाओ
हाथ जोड़ गोविन्द विनती तरस दिखाओ!
इन्द्रदेव बरसो सब जीवो की प्यास बुझाओ
रचनाकार- गोविंदनारायण शर्मा