लाल देह ले भासित हुए अरुण भगवन,
शीतल मकरन्द घुली सुगन्धित बहे पवन!
दिनकर उदित ले प्रथम कस्तूरी किरण,
दरख्तों पर खिले नव कुसुमित पल्लव!
भानु प्रकटे प्राची दिसि नव प्रखरता से,
सब संताप क्लेश दारिद्र मिटे प्राणी के!
अंगड़ाई ले उषा जगी थाल सजा कर,
अशोक वल्लरी तोरण द्वार बने नेह के!
गोरी पनघट पर हंसी ठिठोली करती,
नखरे हजार करती नैन मटका प्यार के!
उपवन कूजे कोयल मधुर गीत प्रेम के,
महकी बयार दिशाएँ पूरित आलोक से!
अटखेलिया करते मृग शावक गोचर में,
चहक फुदक रही गौरेया घर आँगन में!
@ गोविन्द नारायण शर्मा