मानवीय मूल्यों और रिश्तो की उपेक्षा :- कारण संक्रमण का डर,संवेदनहीनता,गैरजिम्मेदाराना, इंसान की बेबसी या फिर कोई मजबूरी ।
खुले आंगन में लकड़ी के एक तख्त पर पड़ी हुई व्यक्ति की लाश पास में खड़े हुए एक व्यक्ति ने दूर से ही एक लंबी सी लकड़ी के द्वारा दूसरी तरफ खड़ी हुई एक जेसीबी मशीन के डाले में धकेल रहा था । कुछ देर बाद वह जेसीबी मशीन उस लाश को ऊपर उठाकर पास में ही खुदे हुए एक गहरे खड्डे में डाल देती है और ऊपर से मिट्टी डाल देती है. कुछ लोग दूर खड़े ही इस घटना को देखती नजर आये है ……… जी हां सही सुना आपने, सही पढ़ा आपने । लेकिन यह न तो कोई कहानी है नहीं रील लाइफ की कोई स्टोरी बल्कि यह रियल लाइफ की एक मार्मिक हक़ीक़त है ……….। ऐसा ही मार्मिक और दिल दहलाने वाला वीडियो पिछले दिनों सोशल मीडिया पर बड़ा वायरल हुआ । मानव मन है इस वीडियो को देख कर मन बड़ा विचलित हुआ । वीडियो में दिखाई गई घटना की सच्चाई क्या है ? किस प्रयोजन से यह सब कुछ किया गया ? यह कहां की घटना है ? कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन यह समाज के अलग ही पहलू को बयाँ करता है । ईश्वर के द्वारा बनाए गई सबसे खूबसूरत कृति इंसान और मानवीय मूल्यों की यह दशा देखकर यह सवाल मन मस्तिष्क में उठता है कि क्या यही कलयुग है।
मानव और संवेदना का है गहरा रिश्ता
जहां तक भारतीय समाज की बात है इसकी अपनी परंपराएं है , रिश्तो की अहमियत है, संयुक्त परिवार की प्रथा है , जीवन में सोलह संस्कार है और हर संस्कार का अपना महत्व है । भौतिकवादी संस्कृति, आर्थिक युग , मरती हुई मानवीय संवेदनाओं , बदलते हुए सांस्कृतिक मूल्यों के कारण मानवीय मूल्यों संवेदना और संस्कारों का हास हुआ है । रही सही कसर आधुनिक युग में इस कोरोना रूपी महामारी ने पूरी कर दी । इस महामारी के दौर में मानवीय संवेदनाओं का अंत देखा गया है, नाते रिश्तेदारी का महत्व कम हुआ है , रिश्तो की उपेक्षा की जाती रही है । यहां तक कि इंसान की जिंदगी का 16 वे संस्कार से लोग मुँह मोड़ने लगे है।
कोरोना काल मे मरती संवेदनाये
मीडिया रिपोर्ट की माने तो अस्पताल में हो रही मौत कोरोना से हो गई तो परिवार ने शव को लेने से ही इनकार कर दिया जाता है, शव लेने और अंतिम संस्कार करने में असमर्थता जताई जाती है । इस दौर में अनेक मार्मिक घटनायें देखने को मिली । अकेला व्यक्ति ही अपने परिजन के शव को कंधो पर , साईकिल पर , रिक्शा पर, टेम्पो में ले जाते नजर आये । ये सब कोरोना का भय है इंसान की बेबसी या संवेदनहीनता या फिर मजबूरी न जाने क्यों लोग अपना धर्म , परिवार जन अपना धर्म , मानव धर्म भूल गया स्नातन धर्म के मूल सिद्धांत भी निभाने सामने नही आते । सेकड़ो शव गंगा नदी में बहते नजर आये ।
शेखावाटी अंचल के जाने-माने एक कवि चंद्र सिंह चेतन की वो पंक्तियां याद आती है ” सीना छेद कर छलनी कर देते हैं लोग, सहज अपनी पर आ जाते हैं लोग ,जीते जी तो सम्मान करते नहीं , मरने पर कंधे उठा लेते हैं लोग ” लेकिन आज तो मरने के बाद भी कुछ लोगों को चार लोगों के कंधे भी नसीब नहीं होते ।अब ये संवेदनहीनता की पराकाष्ठा कहे ,मानवीय मूल्यों की हत्या कहें, या अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना कहे, या फिर कलयुग का प्रभाव या इंसान सब बेबसी क्या कहे शब्द नही है मेरी कलम के पास कलम रुक सी जाती है कलम रोने लगती है ..
समाज में घट रही ऐसी मार्मिक घटनाओं , बदलते हुए सामाजिक परिवेश और ऐसी कुछ घटनाओं से यह तो नहीं कहा जा सकता किस सनातन संस्कृति के मानवीय मूल्य,मानवीय संवेदनाएं, सामाजिक परंपराएं खत्म हो गई लेकिन एक सोचनीय और चिंतनी विषय जरूर है ।
संवेदनाओं को जिंदा रखें
आज भी कुछ बातों को छोड़कर कुछ घटनाओं को छोड़कर संवेदनाएं मानवीय मूल्य अपना महत्व रखते हैं ।उनका अस्तित्व है ।अनेक सामाजिक संगठन , सरकारी और गैर सरकारी संगठन शासन और प्रशासन भी अपना दायित्व बखूबी निभा रहा है । जिस प्रकार जीवन जीने का अधिकार है उसी प्रकार मृत्यु के बाद भी इंसान के साथ कोई गैर मानवीय व्यवहार ना हो इसलिए प्रयास किए जाते रहे हैं । वो आपके अपने है सम्मान से अन्तिम विदाई उनका हक ओर आपका दायित्व तो बनता है ।इस दौर में सरकारी गाइडलाइन का पालन वो आपके अपने है सम्मान से अन्तिम विदाई उनका हक ओर आपका दायित्व तो बनता है । हुए जो प्रोटोकॉल निर्धारित किए गए हैं उनको मानते हुए आप भी अपना सामाजिक धर्म, मानवीय धर्म, नैतिक धर्म निभाएं । आखिर अपने तो अपने होते हैं जब जिंदगी में साथ हैं तब भी और जब अंतिम समय में जब है यह दुनिया छोड़ चुके हो तब भी । लिखते लिखते अब तो कलम भी आंसू बहाने लगी है और मुझे रुकने को मजबूर कर रही है।