कब मनाया जाता है विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा सर्वप्रथम 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाए जाने की घोषणा करके शुरुआत की गई थी लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह पहले अप्रैल में मनाया जाता था लेकिन सन 1988 में 7 अप्रैल को मनाया गया था लेकिन इसके बाद 1988 में 31 मई को इसे 31 मई को मनाए जाने का निर्धारित किया गया था। इसी वर्ष से प्रतिवर्ष 29 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है

क्यो मानते है यह दिवस ?

यह दिवस मनाये जाने का सबसे बड़ा उद्देश्य लोगो को तंबाकू के सेवन से रोकने और उससे होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक करना है । इस दिन विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है सरकार और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के द्वारा पोस्टर जारी किए जाते हैं शिक्षण संस्थाओं में निबंध लेखन प्रतियोगिता आयोजित किए जाते हैं ।

 बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू ,गुटका, पान मसाला के भंडारण, बिक्री सेव्रन पर ही  नही उत्पादन पर भी पूर्णतया रोक लगाने की जरूरत है क्योंकि “नशा नाश का मूल है  “ 

  वैश्विक महामारी  (कोरोना) कोविड-19  संक्रमण के चलते  पिछले दिनों सोशल मीडिया पर गुटका ,जर्दा बन्द होने की अफवाह ने अचानक जोर  पकड़ लिया जिसके कारण  कई शहरों ओर कस्बो ,गावो में इनकी कालाबाजारी , जमाखोरी शुरू हो गई ओर भीड़ जमा होती देख अफवाहो पर ध्यान नही देने की अपील की  साथ ही अजमेर जिला कलक्टर विश्व मोहन शर्मा ने भी अजमेर जिले के नागरिकों से अफवाहों पर ध्यान ना देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि बाजार बंद कराने या कफ्र्यू  लगाने जैसी बातें सिर्फ अफवाहें है। इसके साथ ही आज एक बार फिर यह सामयिक मुद्दा बन गया जिस पर आप आदमी का ध्यान जाना लाजमी है-       नशा’ एक ऐसी बीमारी है  जिसने हमारी युवा शक्ति को पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया है । यह हमारे युवाओं  और हमारे समाज को तेजी से निगलती जा रही है, । आज गुटखा पान मसाला, जर्दा , सिगरेट पीना मानो एक फैशन सा बन गया। जिसे देखो मुंह में गुटखा, जर्दा, पान मसाला चबाते हुए नजर आते हैं ।

युवाओं का शोख  ये नशा  खुद अपने आप के लिए जिंदगी में जहर घोलने से कम नहीं साथ ही यहां- वहां ओर जहां भी मौका मिले पीके थूंक थूंक कर दीवारों पर, कोने में, रास्ते मे तरह तरह की डिजाइन बना के मानो  अपनी कलाकृति का परिचय दे रहे ।  चाहे बस स्टैंड हो, सार्वजनिक स्थल हो, ऑफिस हो, राह चलते किसी भी जगह पर  गुटका ,बीड़ी, सिगरेट का नशा करते युवा  देखे जा सकते हैं   ।

यात्रा के दौरान भी बस में आगे की तरफ बैठकर चलती बस में बाहर की तरफ पीक थूंक कर पीछे बैठे यात्रियों के चेहरे पर लाल पीले निशान कर देते है ।टोके ओर समझाने जाने पर झगड़ा करने को उतारू हो जाते है और उलाहना देते है कि तेरा क्या जाता है ये जगह तेरी है क्या  मेरे पैसे से खा पी रहे है क्या  तुम्हे क्यो समस्या हो रही है  । 

     आज एक बार फिर  गुटखा बीड़ी सिगरेट पान मसाले पर प्रतिबंध लगाए जाने की आवाजें उठने लगी है  । कई राज्य सरकारों ने भी इस पर कदम उठाए  है, कानूनों का निर्माण  भी किया, इनका सेवन प्रतिबंध किया है लेकिन हालात जस के तस है या तो सरकारें ऐसे कानून के प्रति गंभीर नहीं है या फिर आम जनता समझने को तैयार ही नहीं है।


जान बूझकर मोत को गले लगाते लोग


  लोग जानते है कि  तम्बाकू, जर्दा गुटका, पान मसाला के  सेवन से बीमारियां होती है, नुकशान है फिर भी यह  आश्चर्य की बात है कि धूम्रपान के आदी लोगों को दिल, फेफड़े, मस्तिष्क और सेक्स जीवन पर धूम्रपान के बुरे प्रभावों की काफी हद तक जानकारी है, बावजूद इसके वह अपने स्वास्थ्य हितों को ‘सिगरेट के धुएं में जला डालते हैं’। यह ‘स्मोकर्स’ को पीला और बीमार कर सकता है तो आपके समग्र व्यक्तित्व को बिगाड़ सकता है। धूम्रपान कई प्रकार की दंत समस्‍याओं जैसे ओरल कैंसर और अन्‍य कई प्रकार के मसूड़ों के रोगों का कारण बनता है। तम्बाकू और धूम्रपान का असर इतना घातक है कि नशा छोड़ने के बाद भी इसका असर खत्म नहीं होता है,  असमय ही बीमारियों से ग्रसित होकर मोत को निमंत्रण देते है  इसलिए बेहतर यही होगा कि नयी पीढ़ी को इसके चंगुल में फंसने से रोका जाए।

कोविड -19  दौर में तम्बाकु  प्रतिबन्ध


कोरोना वायरस के प्रसार की रोकथाम के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों से सार्वजनिक स्थानों पर चबाने वाले तंबाकू के इस्तेमाल और थूकने पर रोक लगाने को कहा है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशां के मुख्य सचिव को भेजे पत्र में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा, ‘ गैर धूम्ररहित चबाने वाले तंबाकू, पान मसाला और सुपारी से शरीर में लार अधिक बनने लगती है और इससे थूकने की अत्याधिक इच्छा होती है। सार्वजिनक स्थानों पर थूकने से कोविड-19 के प्रसार में तेजी आ सकती है।’ इस दौरान कि राज्य सरकारों ने संक्रमण  खतरे को देखते हुए तंबाकू बीड़ी सिगरेट गुटखा जर्दा के सेवन और बिक्री पर रोक लगाई ।

राजस्थान में तम्बाकू, पान मसाला पर रोक,


राजस्थान में लॉकडाउन के दौरान गुटखा और तंबाकू की बिक्री पर भी सरकार ने रोक लगाई  लेकिन बावजूद इसके राजधानी जयपुर समेत प्रदेशभर  हर छोटे बड़े गांव शहर में  चोरी-छिपे तंबाकू, गुटखे की बिक्री जारी रही  । कई जगह पुलिस ने  इनकी बिक्री पर अंकुश लगाते हुए छापेमार कार्रवाई की हैं वहीं गुटखा और तंबाकू बेचने वाली दुकानें और गोदाम भी सील की गई हैं। दुकानदारों ने भी खूब चांदी कूटि खूब कला बाजारी की मनमानी दरों पर इनकी बिक्री की, कमाने का कोई मोका नही छोड़ने वाले थे। इस दौर में  राजस्थान सरकार ने शराब, गुटखा और तंबाकू बेचने वालों पर 5000 रुपए का जुर्माना भी लगाने का ऐलान किया है।  लेकिन भारतीय युवा  तो युवा है समझाने से कहां मानने वाले है। 
  अनलॉक डाउन -01 की शुरुआत हुई बाजार में रोनक चहल पहल लौटने लगी ,पान ,बीड़ी ,गुटखा, जर्दा पान मसाला की बिक्री मानो परवान पर चढ़ने लगी, हालात जस के तस जहां मोका मिले वही पीक थूंकने बाज नही आये  न उनको स्वच्छता की चिंता, न संक्रमण की चिंता, और न किसी सरकारी आदेश  ओर कानून की चिंता बस उनको तो नशा करना है अपनी तलब जो मिटानी है। 


सार्वजनिक स्थानों पर रोक कितनी सार्थक भारत सरकार की ओर से सिगरेट और अन्य तंबाकू अधिनियम 2003 (कोटपा) नाम का एक राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण अधिनियम बनाया था। लेकिन इस अधिनियम की कितनी पालना ही रही है राज्य सरकारें कितनी गंभीर है यह किसी से छुपा नही है  खुलेआम उल्लंघन होता है। निसंदेह सरकार के द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करना,  बिक्री करना निषेध किया हुआ है लेकिन यह एक सैद्धांतिक विषय मात्र बनकर रह गया हैं क्योंकि व्यवहारिकता में रोक के बावजूद आज भी सार्वजनिक स्थानों पर बिक्री होती है और लोग बिना किसी डर और बिना किसी भय के खुले रूप से धूम्रपान करते हैं आए दिन ऐसी तस्वीरें देखने को मिलती है । लेकिन यह  सच्चाई है कि न इस रोक ओर प्रतिबन्ध को गंभीरता से लागू कराने वाले जिम्मेदार लोग गंभीर हैं और ना ही आम जनता को किसी  प्रकार के कानून का डर है । 

खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 के तहत कायवाही


  राजस्थान सरकार के द्वारा भी बजट 2019 में की गई घोषणा के तहत युवाओं में बढ़ते हुए तंबाकू बीड़ी गुटखा सिगरेट निकोटीन जैसे खाद्य पदार्थों से युवाओं में गले और मुंह के कैंसर की बीमारियों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए इस पर रोक लगाए जाने, इसके भंडारण, बेचना आदि पर रोक लगाए जाने की घोषणा की थी जिसे गांधी जी की 150वीं जयंती पर लागू कर दिया गया इसमें प्रावधान किया गया कि अगर कोई भी व्यक्ति इनका भंडारण करता है ,बेचता पाया जाता है तो खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 के तहत उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी  ।   एक बार फिर कोविड- 19 के खतरे को देखते हुए चर्चा चल पड़ी है और किसी प्रयास के तहत राजस्थान के मुख्य सचिव डीबी गुप्ता  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने इस पर अपना पक्ष रखेंगे ऐसी  बात भो रही है। गुटखा खाने के बाद लोग सड़कों पर थूंक रहे,ऐसे  में कोविड-19 के मामलों में बढ़ी संख्या  के कारण अब सरकार वापस इसकी समीक्षा  करेगी।    

आखिर उत्पादन पर रोक क्यो नही  ? 


राजस्थान सरकार ने तंबाकू, पान, मसाला, निकोटीन के भंडारण उनकी  बिक्री ओर भंडारण  पर 2019 मे रोक भले ही लगा दी हो लेकिन  आज भी हालात में कोई बदलाव नही है अब सवाल यह उठता है कि आखिर इनके उत्पादन पर ही पूर्णतया रोक क्यों नहीं लगाई जाती अगर सरकार में इन पर रोक लगाने की इच्छा शक्ति है इसके प्रति सरकार गंभीर है तो बिक्री भंडारण के साथ-साथ सबसे पहले इसके उत्पादन पर पूर्णतया रोक लगाई जाने की आवश्यकता है कानून निर्माण कर देने मात्र से  ही रोक संभव नहीं बल्कि इसे गंभीरता से लागू किए जाने की आवश्यकता है ।

जनहित पर स्वहित भारी क्यों ? 


कानून भले बना दिया गया हो लागू भले कर दिया हो लेकिन हालात क्या है कितनी रोक लगी है । इन सब में व्यक्ति और सरकारी दृढ़ इच्छाशक्ति का अभाव ,साथ ही सरकार की नीतियां भी काफी सीमा तक इसके लिए जिम्मेदार है । तर्क दिया जाता है कि इसके द्वारा सरकार को बहुत अधिक राजस्व प्राप्त होता है इस पर रोक से राजस्व की हानि होगी । सैद्धांतिक रूप से यह तर्क सही लगेगा लेकिन यदि गंभीरता पूर्वक इस पर विचार मंथन किया जाए  तो एक कड़वा सच सामने आएगा कि इससे होने वाली बीमारियां ,असमय उनकी मौत, साफ- सफाई से होने  वाले खर्च,    कैंसर और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं  तथा पान, गुटका ,पान ,मसाला  खाकर गल्दगी फैलाने पर बीमारियों का खतरा  इन सब के लिए सरकार का  कितना बजट ओर  खर्च हो जाता होगा  । युवा शक्ति जो हमारी कार्यशील जनसंख्या है जब नशे में डूबे रहेगी उनकी कार्य क्षमता पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है  । अब यह प्रश्न उठता है कि इस तरह प्राप्त राजस्व अधिक महत्वपूर्ण है या जनता का हित ।  क्यो न इनके उत्पादन पर ही पूर्णतया रोक लगा दी जाए ना रहेगा  यही आज की आवश्यकता ओर जरूरत है “बांस ना बजेगी बांसुरी”

नशा छोड़ने के लिये दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता


 तम्बाकू ,पान मसाले जर्दे, सिगरेट पर चेतावनी लिखी होती है लेकिन क्या सिर्फ चेतावनी भर से इस मर्ज़ का इलाज किया जा सकता है? कई तम्बाकू निर्माता चेतावनी भी कुछ इस अंदाज में लिखते हैं कि वह ‘विज्ञापन’ ज्यादा दिखता है, खतरा कम! नशे के कारोबार ने देश में अपना बहुत बड़ा बाजार खड़ा कर लिया है  । अगर ठीक ढंग से इच्छाशक्ति प्रदर्शित की गयी तो इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध भी लगाया जा सकता है, इस बात में दो राय नहीं! आखिर, कुछ राज्यो ने  प्रतिबंध लगाकर वहां के राजनीतिक नेतृत्व ने एक मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय दिया है,राजस्थान में इससे दो कदम आगे बढ़ कर संवेदनशीलता ओर इसके प्रति  गंभीरता का परिचय देकर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाये जाने के कठोर कदम उठाने चाहिये । 


अगर युवा नशे की लत से अपना पीछा छुड़ाना चाहते  है तो सरकारी प्रयासों के साथ-साथ उन्हें अपने स्वास्थ्य और अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर होना होगा और इन सब के लिए सबसे महत्वपूर्ण इस लत को छुड़ाने में जो मदद कर सकती हैं वह सिर्फ और सिर्फ उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति है ।

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