जैसलमेर जिले के पोकरण के पास विश्व प्रसिद्ध बाबा रामदेव का मंदिर स्थित है जहां पर प्रतिवर्ष भादवा की दूज पर मेला भरता है जिसमें देश प्रदेश से करोड़ों श्रद्धालु हजारों किलोमीटर पैदल चलकर पहुँचते हैं और बाबा के दर्शन करते हैं।
बाबा के इस मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।लोक देवता के रूप में विख्यात बाबा रामदेव के इस मंदिर में बाबा की समाधी बनी हुई है।यहां वे मूर्ति स्वरूप में पूजे जाते हैं। मान्यता के अनुसार रामदेवरा में उन्होंने जीवित समाधी ली थी और यहीं पर उनका भव्य मंदिर बना हुआ है।
पूर्व में समाधी छोटे छतरीनुमा मंदिर में बनी थी।वर्ष 1912 में बीकानेर के तत्कालीन शासक महाराजा गंगासिंह ने छतरी के चारों तरफ बड़े मंदिर का निर्माण कराया।जिसने शनः-शनःभव्य मंदिर का रूप ले लिया।बाबा की समाधी के सामने पूर्वी कोने में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित रहती है।
दर्शन द्वार पर लोहे का चैनल गेट बना हुआ है।बाबा के दर पर आने वाले श्रद्धालु अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए कपड़ा,मौली,नारियल आदि बांधते हैं तथा मनौती पूर्ण होने पर उसे खोल देते हैं।
बाबा के इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि जब मंदिर का निर्माण हुआ था तब 57 हजार रूपये की लागत आई थी।यह मंदिर हिन्दुओं एवं मुसलमानों दोनों की आस्था का प्रबल केन्द्र है।मंदिर में बाबा रामदेव की मूर्ति के साथ-साथ एक मजार भी बनी है।
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार राजस्थान से ही नहीं गुजरात,महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी बड़े पैमाने पर श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
मंदिर में प्रातः साढ़े चार बजे मंगला आरती,प्रातः आठ बजे भोग आरती, दोपहर पौने चार बजे श्रृंगार आरती, सायं सात बजे संध्या तथा रात्रि नौ बजे शयन आरती होती है।
समाधी स्थल के पास ही रामदेवजी की परमभक्त शिष्या डाली बाई की समाधी और कंगन हैं।डाली बाई का कंगन पत्थर से बना है और इसके प्रति धर्मालुओं में गहरी आस्था है। मान्यता के अनुसार इस कंगन के अन्दर से होकर निकलने पर सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।मंदिर आने वाले लोग इस कंगन के अन्दर से निकलने पर ही अपनी यात्रा पूर्ण मानते हैं।
गांव के निवासियों को जल का अभाव न रहे इसलिए रामदेव जी ने मंदिर के पीछे विक्रम संवत् 1439 में रामसरोवर तालाब खुदवाया था।यह तालाब 150 एकड़ क्षेत्र में फैला है तथा इसकी गहराई 25 फीट है।
तालाब के पश्चिमी छोर पर अद्भुत आश्रम तथा पाल के उत्तरी सिरे पर रामदेवजी की जीवित समाधी है।इसी क्षेत्र में डाली बाई की जीवित समाधी भी है।तालाब के तीनों ओर पक्के घाट बनाये गये हैं।इसकी पाल पर श्रद्धालु पत्थरों से छोटे-छोटे मकान बनाकर अपने सपनों का घर बनाने की रामदेव जी से विनती करते हैं।बताया जाता है इस तालाब की मिट्टी के लेप से चर्म रोग दूर हो जाता है।कई श्रद्धालु तालाब की मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं।
रूणीचा कुंआ (राणीसा का कुंआ)
रामदेवरा मंदिर से 2 किलोमीटर दूर पूर्व में निर्मित रूणीचा कुंआ (राणीसा का कुंआ) और एक छोटा रामदेव मंदिर भी दर्शनीय है।बताया जाता है कि रानी नेतलदे को प्यास लगने पर रामदेव जी ने भाले की नोक से इस जगह पाताल तोड़ कर पानी निकाला था और तब ही से यह स्थल “राणीसा का कुंआ” के नाम से जाना गया।
कालान्तर में अपभ्रंश होते-होते “रूणीचा कुंआ” में परिवर्तित हो गया। जिस पेड़ के नीचे रामदेव जी को डाली बाई मिली थी,उस पेड़ को डाली बाई का जाल कहा जाता है।मान्यता के अनुसार रामदेवरा से पूर्व की ओर 10 किलोमीटर एकां गांव के पास छोटी सी नाडी के पाल पर घटित इस घटना के दौरान पीरों ने भी परचे स्वरूप पांच पीपली लगाई थी, जो आज भी मौजूद हैं।यहां बाबा रामदेव का एक छोटा सा मंदिर व सरोवर भी बना है तथा मंदिर में पुजारी द्वारा नियमित पूजा की जाती है। रामदेवरा में रामदेवजी के मंदिर से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूर आरसीपी रोड पर श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर,गुरु मंदिर एवं दादाबाड़ी दर्शनीय क्षेत्र हैं।