• ध्यातव्य:रचनाकार गोविंद नारायण शर्मा

मोहब्बत के सारे निशां मिटाकर गयी हैं वो ,
चीरकर दिल तड़पता ठुकराकर गयी हैं वो!

घोंपकर खंजर दिल में मरा जानकर गयी है,
हाथों से कत्ल के सबूत मिटाकर गयी हैं वो!

न रही पहले जैसी उल्फ़त उसके किरदार में,
मलाल रकीब के ख़ातिर छोड़कर गयी हैं वो

मुड़कर न देखने की कसम उठाकर गयी हैं,
ख़ताये मुझे मेरी सारी जताकर गयी हैं वो!

घर वापसी का नेक इरादा नही है उसकाअब,
दिलबर किसी रकीब को बनाकर गयी है वो!

गुरुर रख सकू वो ऐसी वफादार न थी कभी,
उम्मीद के चराग़ खुदबखुद बुझाकर गयी है वो!

पनपे फिर रिश्ते इश्क के उम्मीद बची नही है
बेवफा मुझे ही दगाबाज बताकर गयी हैं वो!

गैरत की क्या मज़ाल कहे जो उसे हरजाई ,
बेवजह बेमुरव्वत खुद हबीब से रुठकर गयी हैं वो!

खत लिखकर दिल के राज बयाँ कर गयी हैं,
जले हुए जख्म पे नमक छिड़कर गयी है वो!

मारने को लबों से धीमा जहर पिला गयी हैं,
आगोश में ले पीठ में खंजर घोंपकर गयी हैं वो!

रुखसत होते झुका कर पलके कह गयी हैं,
हमदर्द हो तुम मेरे अश्क बहाकर गयी हैं वो!

उसे मना कर भला होगा क्या अब गोविन्द,
हाथों खुद महकता चमन जलाकर गयी है वो!


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