हाल ही में करीब तीन दशक से लटका महिला आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) में बहुमत से पास/पारित हुआ । यह भारतीय संसद के नवीन भवन से भारतीय लोकतंत्र में एक इतिहास गढ़ा जाने वाले एक ऐतिहासिक कार्य है और यह कार्य है ” नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023” का पारित होना।
ध्यातव्य: संसद की गणेश चतुर्थी के शुभ दिन संसद भवन की नई इमारत का शुभारंभ हुआ था।
- नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 क्या है ?
नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 क्या हैं ? इसके पारित होने से देश,समाज और राजनीति में क्या प्रभाव होगा क्या कुछ बदलाव होगा। इन सभी सवालों का जवाब इस आलेख के माध्यम से आपको मिलेंगे जो निश्चित रूप से आपके लिए उपयोगी साबित होंगे।
नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023 लोकसभा और राज्य विधानसभा में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने का संवैधानिक प्रावधान करने के लिए एक ऐतिहासिक कार्य हैं,जिसे लोकसभा और राज्यसभा द्वारा बहुमत से पारित कर दिया है।नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 के लागू होने पर संसद और विधान मंडलों में अब महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा।
ध्यातव्य: ज्ञात हो कि यह नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 केंद्र के साथ-साथ सभी राज्यों में लागू होगा।
- संसद के विशेष सत्र में पेश किया विधेयक
सितंबर 2023 में संसद का विशेष सत्र बुलाया गया और यह सत्र तब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया जब दोनों सदनों ने भारी बहुमत से महिला आरक्षण बिल( नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023) पारित किया । संविधान के अनुच्छेद 368 के उपबंधों के अनुसार अपेक्षित बहुमत द्वारा पारित हुआ है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 राजनीति में महिला सशक्तिकरण की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा।
128 वा संशोधन विधेयक था महिला आरक्षण बिल
संविधान का 128 वां संशोधन है नए अनुच्छेद 32 एक को भी जोड़ता है जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है । नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2003 संविधान का 128 वा संशोधन अधिनियम यानी की नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 संसद और राज्य विधान मंडलों में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण देता है यानी कि लोकसभा में मौजूद 545 सीटों में से 181 सीटों से सिर्फ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ सकती है यह सीटे केवल महिलाओं के लिए आरक्षित होगी।
- कानून मंत्री ने किया लोक सभा में विधेयक प्रस्तुत
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 20 सितंबर 2023 को यह विधेयक लोकसभा में सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था । उन्होंने विधायक प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसे लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से 181 हो जाएगी। उदाहरण के रूप में इस विधेयक के लागू होने के बाद दिल्ली विधानसभा की बात करें तो यहां मौजूद 70 में से 23 सीट महिलाओं के लिए रिजर्व होगी।
ध्यातव्य: नवीन संसद भवन में प्रस्तुत किया (20 सितंबर) गया यह पहला विधायक था जो कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
ध्यातव्य : लोकसभा में प्रस्तुत किए गए नारी शक्ति विधायक अधिनियम के पक्ष में 454 मत डाले गए।
ध्यातव्य : पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभा में महिलाओं के लिए सीटे आरक्षित नहीं की गई है क्योंकि वहां लोकसभा की केवल एक सीट है। यह कानून सभी राज्यों में लागू होगा।
राज्य सभा में हुआ पारित: राज्यसभा में यह विधेयक 21 सितंबर पेश किया गया और इसी दिन पारित भी हो गया। इसके पक्ष में 215 वोट पड़े और इस तरह से बहुमत से सरकार ने महिला आरक्षण बिल पास करवा कर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में महिला सशक्तिकरण को मजबूती प्रदान की । देश की नीति निर्धारण में महिलाओं की भूमिका को सशक्त करने के लिए जो कानून बना है उसे नारी शक्ति बंधन अधिनियम 2023 का नाम दिया गया है।
ध्यातव्य: इस संशोधन के तहत भारतीय संविधान में अनुच्छेद 330(ए) और अनुच्छेद 332(ए) शामिल किया गया।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दी मंजूरी
महिला आरक्षण बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 29 सितंबर 2023 को मंजूरी दे दी इस मंजूरी के साथ ही भारत सरकार की ओर से इस संबंध में गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है।
- विधेयक 15 वर्षों तक रहेगा लागू
महिला आरक्षण कानून अभी लागू नहीं हुआ है यह भी प्रावधान जोड़ा गया है की जनगणना और परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण कानून लागू किया जाएगा और जब भी लागू होगा तब की तारीख से 15 वर्ष तक की अवधि के लिए यह होगा ऐसा प्रावधान किया गया है साथ ही इसे संसद की अनुमति से आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
- कब लागू होगा यह अधिनियम
नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 में यह भी प्रावधान जोड़ा गया है कि जनगणना और परिसीमन के बाद ही महिला आरक्षण कानून लागू किया जाएगा। परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद और लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने के बाद अगले चुनाव में महिला आरक्षण लागू/प्रभावित होगा।
ध्यातव्य: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 एक के तहत आरक्षण के लिए परिसीमन अनिवार्य है।
गृह मंत्री अमित शाह ने सदन को विश्वास दिलाया कि महिला आरक्षण का यह प्रावधान 2029 में लागू हो जाएगा। गृह मंत्री ने कहा कि 2024 में लोकसभा चुनाव की तत्काल बात नई सरकार जनगणना और परिसीमन का काम शुरू करेगी और महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने की प्रक्रिया रफ्तार पकड़ लेगी।
ध्यातव्य: देश में हर 10 साल पर जनगणना कराई जाती है। हर जनगणना के बाद संसद संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत परिसीमन अधिनियम लागू करती है।
ध्यातव्य:अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी जनगणना के बाद परिसीमन के आधार पर क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र में बांटा जाता है। परिसीमन अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है जो एक स्वतंत्र निकाय है ।
ध्यातव्य: पहले परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में गठित किया गया था उसके बाद 1962,1972 और 2002 तक यानी की चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया गया।
अब तक हुआ चार बार परिसीमन – यहां आपको बता दे की साल 1981 और 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं हुआ 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर परिसीमन को साल 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया था।
ध्यातव्य: अब सवाल यह उठता है कि परिसीमन कब होगा लोकसभा और विधानसभा में सीटों की संख्या में परिवर्तन पर रोक को वर्ष 2001 की जनगणना के बाद हटा दिया जाना था लेकिन संशोधन के तहत इसे वर्ष 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया गया ।
इसके पीछे कारण यह बताया गया कि साल 2026 तक पूरे देश में एक समान जनसंख्या वृद्धि दर हासिल हो जाएगी । इसके बाद ही जनगणना और परिसीमन सटीक होगा। पिछली जनगणना 2011 में हुई थी।
ध्यातव्य: परिसीमन आयोग महिलाओं के लिए आरक्षित होने वाली सीटों का निर्धारण करेगा।
- इसे लागू करने में राज्यों की सहमति जरूरी है
महिला आरक्षण को पूरे देश में लागू करने के लिए राज्यों की भी सहमति जरूरी है या नही तो आपको बता दे कि इसे लागू करने के लिए राज्यों की भी सहमति जरूरी है ।संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत इस कानून को लागू करने के लिए कम से कम 50 फ़ीसदी राज्यों की सहमति जरूरी है ।
- SC/ST के लिए अलग से आरक्षण है या नही
यहां पर सवाल एसटी और एसटी और ओबीसी वर्ग की महिलाओं के आरक्षण को लेकर है सवाल यह है कि क्या इसमें इन वर्गों के लिए भी आरक्षण की अलग से व्यवस्था है, ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए इस आरक्षण व्यवस्था में क्या प्रावधान है।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 में यह साफ कहा गया है कि संसद और राज्य विधान मंडलों में एससी और एसटी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण नहीं होगा दरअसल उन्हें आरक्षण के अंदर ही आरक्षण मिलेगा जैसे इस समय लोकसभा में 84 सीट एससी और 47 सीट एसटी के लिए आरक्षित है तो इस कानून के अनुसार 84 सीटों में से 33 फ़ीसदी यानी की 28 सीट एससी महिलाओं के लिए आरक्षित होगी। इसी तरह एसटी की 47 सीट में से 33 फ़ीसदी यानी की 16 सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगी। कानून में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।
आरक्षित सीटों का इस प्रकार होगा निर्धारण: अब सवाल उठता है कि महिला आरक्षित सीट कैसे तय होगी इसका उत्तर भी यही है कि परिसीमन के बाद यानी की 2026 के बाद ही तय हो पाएगा। इसके पीछे का कारण यह है कि परिसीमन के बाद जनसंख्या के आधार पर सीट के आंकड़े बदल जाएंगे इसलिए सरकार की ओर से पेश कानूनी में कहा गया है कि परिसीमन की हर प्रक्रिया के बाद आरक्षित सीटों का रोस्टर होगा। आने वाले समय में सीटों की संख्या और परिसीमन को निर्धारित करने के लिए एक अलग से कानून और अधिसूचना की आवश्यकता होगी ।
ध्यातव्य: स्थानीय निकाय जैसे की पंचायत और नगर पालिका में भी एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित है इनमें हर चुनाव में सीटों का आरक्षण बदलता रहता है यानी कि रोस्टर होता है यही प्रक्रिया यहां (लोकसभा और राज्य विधानसभा में) भी लागू होगी।
- महिला आरक्षण का अब तक का इतिहास
संसद और राज्य विधान मंडलों में महिला आरक्षण की यह कहानी भले ही लगभग तीन दशक पुरानी हो लेकिन इसकी मांग एक सदी से उठ रही थी।
आजादी के पहले भी कई बार राजनीति में महिलाओं की सक्रियता, भागीदारी और उनके प्रतिनिधित्व के लिए आवाज मुखर की गई थी। इसका इतिहास ब्रिटिश काल में भी महिलाओं को प्रतिनिधित्व की मांग जोर-शोर से की गई थी।
- सन 1931 में बेगम शाहनवाज और सरोजिनी नायडू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था इसमें महिलाओं के लिए राजनीति में समानता की मांग की गई संविधान सभा की बैठकों में भी महिलाओं के आरक्षण की मुद्दे पर चर्चा हुई थी।
- 1971 नेशनल एक्शन कमेटी ने भारत में महिलाओं के घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर चर्चा की ।
- 1988 में महिलाओं के लिए नेशनल पर्सपेक्टिव प्लानिंग पंचायत स्तर से संसद तक महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की आखिरकार 73वें और 74वें संविधान संशोधन के तहत एक तिहाई सीटे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है। महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश, बिहार ,छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल सहित कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी तक आरक्षण लागू किया है तो इस तरह से संसद में महिलाओं को आरक्षण के लिए कई बार प्रयास किए गए, कई बार लोकसभा या राज्यसभा में विधेयक पारित भी हुआ लेकिन दूसरे सदन में जाकर अटक गया ।
- महिला आरक्षण विधेयक का पूरा इतिहास
देश की संसद में महिला आरक्षण बिल पहली बार एच.डी देवीगोड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को पेश किया। सत्ता पक्ष में एक राय नहीं बन सकी ।विधायक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया।
दूसरी बार 26 जून 1998 को अटल बिहारी वाजपेई की नेतृत्व वाली सरकार ने 84 वे संविधान संशोधन के रूप में 12वीं लोकसभा में पेश किया।
इस प्रकार का विधेयक 2002 और 2003 में भी सदन में पेश किया गया लेकिन विधेयक पारित नहीं हो सका।
2004 में यूपीए की सरकार की साझा कार्यक्रम में महिला आरक्षण शामिल रहा लेकिन यूपीएस सरकार भी लोकसभा में विधेयक को पास करने में नाकाम रही।
महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन का 108 वां विधेयक मनमोहन सिंह सरकार की कार्यकाल में पेश हुआ 2008 जो कि मार्च 2010 को राज्यसभा से पारित हुआ मगर लोकसभा से पारित नहीं हो सका ।
आजादी की 75 साल पूरे होने के बाद देश में 2047 तक विकसित भारत बढ़ाने के लक्ष्य में समाज के सभी वर्गों का योगदान होगा। भारत की आधी आबादी का भी विकसित भारत के निर्माण में योगदान होगा,नारी सशक्त बनेगी, देश विकसित बनेगा।