एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका किसी भी देश के लोकतंत्र और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए पहली आवश्यकता होती है। स्वतंत्रता से पूर्व भी भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत इस प्रकार की न्यायपालिका का प्रावधान था लेकिन वह सर्वोच्च न्यायालय नहीं था क्योंकि उसके निर्णय के खिलाफ लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल में अपील की जा सकती थी इसलिए उसे संघीय न्यायालय या फेडरल कोर्ट ही कहा जाता था सर्वोच्च न्यायालय नही ।
भारतीय सविधान निर्माता एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का महत्व समझते थे इसीलिए उन्होंने इसकी आवश्यकता पर बल दिया ।
- संविधान के भाग 5 में है प्रावधान
भारतीय संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 124 से लेकर 147 तक देश की सबसे बड़ी और अंतिम अपीलीय न्यायालय/ सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया है ।भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी ,लेकिन यह ध्यान देने योग्य बात है सर्वोच्च न्यायालय का गठन इसके 2 दिन बाद यानी कि 28 जनवरी 1950 को किया गया था। स्थापना के समय इसमें 07 न्यायाधीश और एक मुख्य न्यायाधीश का प्रावधान किया गया था लेकिन आवश्यकताओं के अनुसार इसकी संख्या बढ़ाई जा सकती है । सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि का अधिकार संसद को प्राप्त है । वर्तमान समय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश है।
सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों के अतिरिक्त कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश, तदर्थ न्यायाधीश और सेवानिवृत्त न्यायाधीश जैसी शब्दावली का भी प्रयोग संविधान में किया गया है । इसका प्रावधान भी संविधान के भाग 5 और अनुच्छेद 126, 127, और 128 में किया गया है
- कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश(Acting Chief Justice)
कार्यकारी का तात्पर्य है कि कुछ समय के लिए या अस्थाई रूप से उस पद को व्यवस्थार्थ भरा जाना । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 126 के अनुसार जब ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाए कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या वह पद के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो या अउपस्थित हो तो ऐसी परिस्थितियों में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की जा सकती है।
- कौन करता है कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति
सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से किसी भी न्यायाधीश को राष्ट्रपति के द्वारा कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश/कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश के पद पर नियुक्त किए जाने का प्रावधान है, अक्सर देखा गया है की सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश को ही इस पद पर नियुक्त किया जाता है।
ध्यातव्य
जब कोई भी न्यायाधीश,सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करता है तो उसे वही वेतन भत्ते प्राप्त होते हैं जो सर्वोच्च न्यायालय के नियमित मुख्य न्यायाधीश को प्राप्त होते हैं।
- तदर्थ न्यायाधीश(Ad hoc Judges)
तदर्थ न्यायाधीश एक प्रकार से स्थाई न्यायाधीश होते हैं।जब किसी भी कारणवश चाहे न्यायाधीश अनुपस्थिति हो, पद रिक्त हो या किसी कारणवश भी वह इस पद पर कार्य करने में समर्थ नहीं हो या ऐसी परिस्थितियों में किसी भी कारण से सर्वोच्च न्यायालय की बैठकों के लिए निर्धारित गणपूर्ति जो कि 0 3 की संख्या में निश्चित की गई है पूरी नहीं होती है,तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 127 (1) के तहत तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है।
ध्यान देने की बात है कि जब किसी भी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करता है तो उसे भी वही वेतन भत्ते प्राप्त होते हैं जो कि सर्वोच्च न्यायालय के एक नियमित न्यायाधीश को मिलते हैं।
- कौन करता है तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की एक निर्धारित प्रक्रिया है जो कि फ्रांस के संविधान से प्रभावित है । जिसका प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 127 (1) में किया गया है । राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति की जाती है।
कौन बन सकता है तदर्थ न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश वही व्यक्ति बन सकता है जो किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या वह सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।
ध्यातव्य
तदर्थ न्यायाधीशों का प्रावधान केवल और केवल सर्वोच्च न्यायालय के लिए ही किया गया है । इस प्रकार का प्रावधान उच्च न्यायालय में नहीं होता है।
- सेवानिवृत्त/ कार्यवाहक न्यायाधीश
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश और तदर्थ न्यायाधीश की तरह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 में सेवानिवृत्ति या कार्यवाहक न्यायाधीशों का प्रावधान भी किया गया है। ऐसी परिस्थितियों जब न्यायाधीशों के पद रिक्त हो या आवश्यकता महसूस होने पर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को फिर से अस्थाई रूप से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया जा सकता है।
ध्यातव्य
राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने की रिक्वेस्ट कर सकता है लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है ऐसे न्यायाधीश को यह अधिकार है कि वह सेवानिवृत्ति या कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के लिए अपनी सहमति और असहमति देने के लिए स्वतंत्र है।
- कौन करता है नियुक्ति ?
सेवानिवृत्त या कार्यवाहक न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 128 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिया गया है, लेकिन महत्वपूर्ण बात है कि मुख्य न्यायाधीश अपनी मर्जी से किसी भी न्यायाधीश को सेवानिवृत्त या कार्यवाहक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त नहीं कर सकता बल्कि ऐसा वह राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही कर सकता है।
ध्यातव्य
तदर्थ न्यायाधीशों का प्रावधान केवल और केवल सर्वोच्च न्यायालय के लिए ही किया गया है। इस प्रकार का प्रावधान उच्च न्यायालय में नहीं होता है।