सम्मानित मंच और मंच पर विराजमान आज के अतिथि महोदय, शिक्षा रूपी जहाज के कैप्टन आदरणीय प्राचार्य महोदय ….. जी ,शिक्षा रूपी जहाज पर गीता रूपी संदेश देकर  सारथी की भूमिका निभाने वाले जी, विद्यालय/महाविद्यालय के उप प्राचार्य , मेरे विद्वान साथियों…और प्यारे छात्र छात्राओं….

आज 2 अक्टूबर के  इस महान दिन और इस महान क्षण पर जब पूरा विश्व राष्ट्रपिता के जन्मदिवस को मना रहा है और भी बड़ा भाग्यशाली हूं की मै उस क्षण का हिस्सा बन रहा हूं। इस अवसर पर मैं आप सभी का यथा योग्य अभिवादन करता हूं और जिस प्रयोजन से आज हम यहां एकत्रित, इकठे हुए हैं उस प्रयोजन को मेरा नमन… 

साथियों अक्सर हम सभी ने यह भजन सुना ही होगा कि दे दी हमें आजादी बिना खडक, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल…

जी हां वह कमाल ही तो था जिसने बिना शस्त्र उठाए, विश्व की सबसे बड़ी ताकत को झुकने को मजबूर कर दिया, भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया,…

हां वह कमाल ही तो था कि गांधी जैसा महात्मा पाप से घृणा करते थे पापी से नहीं। ऐसी ही महान शख्सियत का जन्म आज से 153 वर्ष पूर्व 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर पिता करमचंद गांधी और माता पुतलीबाई के घर हुआ था। 

इस महान शख्सियत कि आज हम 153 वी जयंती मना रहे हैं। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए । कानून की पढ़ाई को अपने जीवन का आधार बनाने के अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह कंपनी के आग्रह पर सन 1893 में दक्षिण अफ्रीका चले गए।  वहां घटित एक घटना ने उनके जीवन की दशा और दिशा को ही परिवर्तित/बदल दिया । यात्रा के दौरान उनके पास ट्रेन का प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद भी उन्हें ट्रेन से धक्का देकर बाहर निकाल दिया तभी सत्य और अहिंसा के पुजारी की अंतरात्मा जाग उठी और एलान कर दिया कि …अरे ओ फिरंगीयो आज तुम लोगों ने मुझे ट्रेन से धक्का देकर बाहर निकाला है एक दिन मैं तुम लोगों को भारत से बाहर निकालूंगा ।

गांधी जी ने सत्य अहिंसा और अपने त्याग के बल पर इसे सच साबित कर दिया और अंग्रेजी को यहां से जाने को मजबूर कर दिया।

हम गांधी जी के जन्मदिन को प्रति वर्ष गांधी जयंती ग्रुप में मनाते आए हैं।  गांधी जी के आदर्शों, सत्य और अहिंसा का महत्व न केवल भारत बल्कि विश्व ने भी समझा और भारत सरकार की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 15 जून 2007 को महात्मा गांधी के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया और दुनिया से यह आग्रह किया गया गांधी जिनके शांति और अहिंसा के विचार पर अमल करें और 2 अक्टूबर को गांधी जी के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाए। 

इस प्रस्ताव पर 191 में से 140 सदस्यों ने इसके समर्थन में मत दिया तभी से इसे अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाते आए हैं और आज हम इस मंच पर 16 वा अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मना रहे हैं।

गांधी जी का जीवन आज हमें प्रेरणा देता है, पूरे विश्व को त्याग,तपस्या, सत्य और अहिंसा का संदेश देता है, इसीलिए रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा उन्हें महात्मा की उपाधि दी जाना खुद-ब-खुद सार्थक साबित हो जाता है ।

कितने दुख की बात है कि दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले इस महात्मा के जीवन का अंत 30 जनवरी 1948 को हिंसा के द्वारा हुआ है और आज हमने गांधी जी के जीवन और उनके आदर्श को भुला दिया है। 

किसी ने सच ही कहा है.किसी ने कि….हमने शास्त्री को भुला दिया, हमने भगत सिंह और राजगुरु को भुला दिया  । आज हमने महा पुरुषो के आदर्शो को ही भुला दिया। हमने अपनी फितरत को ऐसी बना लिया।

सपनों के झूलों में हम सभी झूल जाते, यह तो अच्छा हुआ नोट पर छप गए वरना हम गांधी को भी भूला जाते हैं।”

आज पूरी दुनिया में झूठ, पाखंड, स्वहित पूर्ति, हिंसा, आतंकवाद,बेरोजगारी ,नैतिक पतन, जैसी समस्याएं विकराल रूप दे रही है निश्चित रूप से इनका समाधान आज गांधीवाद में ढूंढा जा सकता है।

गांधी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह कि जो राह उन्होंने हमें दिखाई,जो जीवन दर्शन उन्होंने हमें दिया, वह आज भी जिंदा है।  गांधी मर सकते हैं लेकिन गांधीवाद और गांधीजी की विचारधारा कभी नहीं मर सकती। इसका महत्व आज पूरा विश्व समझ रहा है।

आज इस बात की आवश्यकता है कि महात्मा गांधी के आदर्शों और उनके द्वारा दिखाये रास्ते पर हम चले और आगे बढ़े तो निश्चित रूप से कई आधुनिक अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाएगा । यही उनके लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

गांधी को मजबूरी का नाम न समझे …यह पहले भी सच था और आज भी कि गांधी मजबूरी का नाम नहीं बल्कि मजबूती का नाम है। 

अंत में आज मैं गांधी जी और गांधी के दर्शन को नमन करता हूं और अपने विचारों को यहीं विराम देता हूं ।

जय हिंद,जय भारत।

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