अक्षर शादी-विवाह में दहेज एक आम बात होती है जो पीढ़ियों से भारतीय समाज के एक हिस्सा बना हुआ है।मूलतः दहेज शब्द अरबी भाषा का शब्द है जो जहेज शब्द से बना है और इसका अर्थ होता है सोगात । इसके अतिरिक्त कई बार आपने स्त्रीधन के बारे में भी सुना होगा। 

कई बार दहेज और स्त्रीधन को एक ही समझ लिया जाता है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दहेज और स्त्रीधन दोनों अलग-अलग हैं । समाज की इस कुरीति के नाम पर न जाने कितनी मासूम नवविवाहित, महिलाएं भेंट चढ़ चुकी होगी, न जाने कितनी सताई जाती  रही होगी, न जाने कितने परिवार दहेज के बोझ के नीचे दबे होंगे। दहेज प्रथा पर नियंत्रण करने के लिए दहेज निषेध अधिनियम 1961 लाया गया और इस की धारा 2 के अनुसार दहेज और स्त्री धन को अलग-अलग रूप में परिभाषित किया गया है । 

  • दहेज (Dowry) क्या है ?  

दहेज विवाह के एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को माता-पिता द्वारा या किसी अन्य पारिवारिक सदस्य के द्वारा विवाह के समय या विवाह से पहले या फिर विवाह के पूर्व व पश्चात प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में किसी मूल्यवान वस्तु, सामान, संपत्ति देता है या देने का वादा करता है तो इसे दहेज माना जाता है ।

  • स्त्रीधन क्या है ?

बेटी के विवाह के समय उसे उपहार के रूप में जेवर,कपड़े, व अन्य वस्तुएं जैसे घरेलू उपयोग में आने वाले सामान, फर्नीचर, टीवी, फ्रिज,गहने भेंट किए जाते हैं जिस पर स्त्री का ही हक होता है,लेकिन उनका प्रयोग पति-पत्नी दोनों समान रूप से कर सकते हैं।  ऐसा ही धनऔर  ऐसी ही कीमती वस्तुएं स्त्रीधन कहलाती है।

  • दहेज निषेध अधिनियम 1961 

दहेज निषेध अधिनियम 1961 तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के प्रधानमंत्री का कार्यकाल के दौरान दहेज प्रथा पर नियंत्रण लगाए जाने के उद्देश्य से दहेज निषेध अधिनियम 1961 लाया गया था । यह विधेयक लोकसभा में लाया गया वहां से उसे बहुमत से पारित पर राज्यसभा में भेजा गया।  लोक सभा के द्वारा पारित इस विधेयक के प्रावधानों से राज्यसभा सहमत नहीं थी और उन्होंने कुछ सुझाव के तहत उस विधेयक को वापस लोकसभा को लौटा दिया।  

  • पहली बार बुलाई गई संयुक्त बैठक 

राज्यसभा के द्वारा सुझाए गए सुझावों से लोकसभा सहमत नहीं थी इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति ने संयुक्त अधिवेशन बुलाया । ध्यान देने योग्य बात है कि स्वतंत्र भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार संयुक्त अधिवेशन बुलाया गया था। संयुक्त अधिवेशन में ही 9 मई 1961 को यह विधेयक पारित हो गया और 20 मई 1961 को राष्ट्रपति के द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए गए।  

  • कब लागू हुआ यह अधिनियम ?

01 जुलाई 1961 को यह लागू हुआ दहेज निषेध अधिनियम 1961 में कुल 10 धाराएं है। समय-समय पर इस अधिनियम में कई बार संशोधन भी किए गए हैं। जैसे दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम 1984 व दहेज निषेध (संशोधन) अधिनियम 1986,

1 जुलाई 1961 को यह जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत पर लागू हुआ था लेकिन ध्यान देने योग्य बात है कि संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन के बाद अब यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होता है।

  • दहेज निषेध अधिनियम 1961 की विभिन्न धाराएं

धारा 1- अधिनियम का संक्षिप्त नाम और इसे लागू होने की तारीख ,उसका विस्तार क्षेत्र का उल्लेख 

धारा -2 दहेज स्त्रीधन और उपहार की परिभाषा 

धारा 3-  दहेज लेने और देने के लिए दंड के प्रावधान के बारे में उल्लेख 

धारा 4 – दहेज मांगे जाने पर सजा के प्रावधान का उल्लेख 

धारा 5- दहेज लेने या देने के करार के संबंध में प्रावधान

धारा 6- दहेज का पत्नी या उसके वारिसों के फायदे के लिए होना के बारे में प्रावधान 

धारा 7 – दहेज से संबंधित अपराधों के संबंध में सुनवाई के उल्लेख 

धारा 8- अपराधों का कुछ प्रयोजन के लिए संज्ञेय होना

धारा 9 केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून बनाने उसे लागू करने के संबंध में प्रावधान 

धारा 10 राज्य सरकार को इस संबंध में कानून निर्माण किए जाने के बारे में प्रावधान। 

  • दहेज मृत्यु क्या है ?

भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 के तहत जहां किसी स्त्री की मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ समय पूर्व उसके पति या उसके पति के रिश्तेदार ने दहेज की मांग की थी या उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता की गई, उसे परेशान किया गया हो वहां ऐसी परिस्थिति में हुई मृत्यु को दहेज मृत्यु माना जाता है।

  • ध्यातव्य

◆ दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत दहेज से संबंधित प्रत्येक प्रकार का अपराध गैर जमानती है व संज्ञेय माना जाएगा।

इस प्रकार केके मामलों में बिना वारंट के भी आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकता है

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