शूर वराह मंदिर में प्राचीन कीर्ति स्तंभ धराशाई हुआ जनता ने उठाया नवीन कीर्ति स्तंभ स्थापित करने का बीड़ा ।
आगामी पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को होगी नवीन कीर्ति स्तंभ की प्राण प्रतिष्ठा
धर्म और सनातन संस्कृति वाले भारतवर्ष में मंदिर निर्माण और मंदिर में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के दौर में कीर्ति स्तंभ जो कि विशाल शिलाखंड का या फिर कलाकृति का एक नमूना ओर इतिहास व धर्म की कीर्ति को युगों युगों तक यादगार के रूप में स्थापित किया जाता रहा है साथ ही इस स्तम्भ का धार्मिक महत्व भी होता है बताया जाता है कि कीर्ति स्तम्भ की प्रक्रिमा करने पर अपनी मनोकामना पूरी होती है । गुप्त काल से यही परंपरा प्रारंभ हुई थी। पूरे भारतवर्ष और धोरा की धरती राजस्थान में भी अनेक कीर्ति स्तंभ अपना महत्व रखते हैं । अजमेर जिले की केकड़ी तहसील के सबसे बड़ी ग्राम पंचायत बघेरा जो कि लगभग 5000 वर्ष प्राचीन कस्बा रहा है । धर्म अध्यात्म पुरातात्विक और इतिहास में अपना अहम स्थान रखने वाला एक कस्बा जहां पर विष्णु के अवतार अवतार का वड़ा मंदिर शक्तिपीठ ब्रह्माणी माता मंदिर ,अमर प्रेमी ढोला मारू की अमर प्रेम की जीवंत गाथा को बयान करने वाला तोरण द्वार ,कल्याण मंदिर और गांव की हर गली में ऐसे प्राचीन मंदिर देखने को मिलते है और अपना महत्व खुद ब खुद बयां कर रहे है ।
महा वराह मंदिर परिसर में कीर्ति स्तंभ
बघेरा कस्बे के उत्तर दिशा की तरफ लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई पवित्र और पौराणिक झील है जिसे ‘ वराह सागर झील” के नाम से जाना जाता है इस झील के किनारे विश्व प्रसिद्ध शुर वराह का भव्य ओर ऐतिहासिक मंदिर स्थित है इस प्राचीन और भव्य मंदिर का इतिहास काफी पुराना रहा है इसका जीर्णोद्धार आठवीं शताब्दी से पूर्व के मंदिरों के अवशेषों पर संवत 1600 के आसपास मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेगू के राव सवाई मेघ सिंह जिसे ‘काली मेघ ‘ के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने इस मंदिर का नए सिरे से करवाया था यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी है तथा इस मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार महावराह कि दसवीं शताब्दी से पूर्व की निर्मित प्रतिमा को स्थापित किया था। मंदिर निर्माण और उसमें प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के दौर में कीर्ति स्तंभ की स्थापना एक परंपरा रही।है ।
प्राचीन हुआ धराशाई नवीन कीर्ति स्तंभ की कवायत

महा वराह मंदिर बघेरा के परिसर में विशाल शिलाखंड का एक कीर्ति स्तंभ सैकड़ों वर्षो से अपना इतिहास बयान कर रहा था लेकिन यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की देखरेख के अभाव में प्राकृतिक मार झेल ता हुआ यह कीर्ति स्तंभ लगभग आज से 3 वर्ष पूर्व धराशाई हो गया । इस धर्म और आध्यात्मिक ऐतिहासिक धरोहर को राजस्थान सरकार ने धरोहर संरक्षण अधिनियम 1961 के तहत बरसों पहले यहाँ नीला बोर्ड लगा कर इस मंदिर को संरक्षित घोषित जरू र कर रखा है लेकिन यह नीला बोर्ड केवल औपचारिकता मात्रा प्रतीत होता है यह जरूर है कि पिछली अशोक गहलोत सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में इस पर 50 लाख स्वीकृत कर विकास कार्यो की शुरुआत की थी । लेकिन मंदिर परिसर में स्थित कीर्ति स्तंभ के धराशाही हो जाने के बाद भी इसकी कोई सुध नही ली । संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है इस कारण प्रशासन / पर्यटन विभाग को इस बारे में अवगत कराया गया लेकिन उपेक्षा ही झेलनी पड़ी अंततः ग्राम के ही नागरिकों ने अपने स्तर पर एक ऐसा बीड़ा उठाया और ग्रेनाइट व्यावसायिक श्री चेना राम जी ने एक विशाल शिलाखंड उपलब्ध करवाया ।
तरसाने का काम जारी,पूर्णिमा को होगा स्थापित
मंदिर परिसर में धराशाही हुए स्तम्भ / कीर्ति स्तंभ की जगह एक नवीन कीर्ति स्तंभ स्थापित पूरे विधि विधान से स्थापित किए जाने की पहल की । कस्बे में ही ग्रेनाइट जिसे बघेरवाल ग्रेनाइट के नाम से जाना जाता है ।

विशाल शिलाखंड पर गांव के ही एक कारीगर महावीर जी जांगिड़ के द्वारा अपनी उम्दा कलाकृतियों से कीर्ति स्तम्भ को तरासा जा रहा है जो कि काबिले तारीफ है । सरकार भले ही इसे संरक्षित स्मारक घोषित करने के बावजूद भी इसकी उपेक्षा कर रही हो लेकिन इस कस्बे में धर्म प्रेमियों की दानदाताओं की कलाकारों की कमी नहीं है ऐसे धर्म प्रेमियों दानदाताओं और उम्दा कलाकारों के जज्बे ओर प्रयासों को मैं नमन करता हूं । बताया जााता है कि आगामी पूर्णिमा (30 नवंबर 2020) को महाभिषेक के साथ पूरे विधि विधान के द्वारा नवीन कीर्ति स्तंभ स्थापित कियाा जाएगा ।

ज्ञात हो कि महा वराह मंदिर में हर महीने पूर्णिमा के अवसर पर महाभिषेक कार्यक्रम का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है।
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