वह भी क्या बचपन था देर तक सोना , ना बीते हुये का कोई पछतावा और ना ही भविष्य की कोई चिंता , बस बचपन तो बचपन होता है । बचपन में दादी – नानी के कहानी औऱ किस्से भी खूब सुनने को मिलते थे। हर कहानी – किस्से में एक संदेश हुआ करता था । भारत विशेषकर राजस्थान, मध्य प्रदेश ,हरियाणा, पंजाब में तो कहावतो का अपना महत्व है ही और निराला उनका अंदाज है । कहावतो/किस्सो के माध्यम से दादी -नानी सामाजिकरण भी करती थी ।
एक दिन उन्होंने राजस्थानी लहजे में एक कहावत सुनाई-” उद्धरम कर उद्धरम कर कहे नाहर ने मंकी , मेरे घर में कौन सी भैंस दूध देवे हैं पर में दूध पीती हूं नतकी ” अथार्थ बिल्ली शेर को कह रही है उठ और कर्म कर कर्म मेरे घर में कौन सी भैंस दूध देती है लेकिन फिर भी मैं हर रोज दूध पीती हूं क्योंकि में कर्म करती हूं तुम्हारी तरह आलसी नही हूँ । जब थोड़े बड़े हुये तो दादी सुबह सुबह जल्दी उठने के लिए प्रेरित करती और कहती उठ रजक (कर्म ) बट चुका है कहीं तू पीछे ना रह जाए इसलिये जल्दी उठा कर और जल्दी उठने/जगने को अपनी आदत बनाले । दादी का यह किस्सा यह कहावत हर व्यक्ति को कर्म करने का एक संदेश देती है और कर्म का महत्व समझाती हैं।
जब हमने दादी से पूछा कि एक कर्म क्या होता है दादी ने कहा कर्म ही जीवन है और जीवन ही कर्म हर व्यक्ति को अपने जीवन में कर्म करने होते हैं और यही जिंदगी का सच है बड़ी मासूमियत से पूछा कि सच क्या है दादी ने कि कहा जीवन ही सच है और सच ही जीवन है ।
- कर्म क्या है ?
कर्म से अभिप्राय पिछले व्यवहारगत अभ्यासों से सम्बंधित हमारे उन मानसिक आवेगों से होता है जो हमें उस तरह से आचरण करने, वचन कहने और विचार करने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं । जिसके हम अभ्यस्त हो जाते हैं। हमारी आदतें हमारे मस्तिष्क में ऐसी तंत्रिकीय मार्गों का निर्माण करती हैं जो आवश्यक परिस्थितियों के प्रभाव से सक्रिय हो जाने पर हमें अपने व्यवहार के सामान्य अभ्यासों को दोहराते रहने के लिए मजबूर करते हैं। साधारण शब्दों में बात की जाये तो हमारे मन, मस्तिष्क में किसी कार्य को करने की इच्छा औऱ आकांक्षा जाग्रत होती है, और फिर हम मजबूर होकर उसी कार्य को करने लगते हैं।
राजस्थानी में कहा जाता है कि जीवन में हाथा जोड़ी, माथा फोड़ी, और भागा दौड़ी करनी होती है यही कर्म है भागा दौड़ी अपने परिवार का पालन पोषण करने, अपने परिवार की जिम्मेदारियों अपने कर्तव्य और दायित्व को पूरा करने के लिए हर इंसान को कर्म करने होते है । जब इंसान की कर्म करने की आदत हो जाती है तो उसका परिवार और जब देश की जनता की देश सेवा की आदत बन जाती है तो वह देश निश्चित रूप से विकास की राह पर आगे बढ़ता है क्योंकि यही जीवन की सच्चाई है जीवन मे कर्म की प्रधानता है । कर्म इंसान का पीछा नहीं छोड़ता। मानव जीवन और कर्म का बड़ा गहरा संबंध होता है। कर्मशील बनो कर्म हीन नहीं ।
भगवान श्री कृष्ण के गीता संदेश में भी कर्म के संदेश को प्रधानता दी गई। निसंदेह रूप से कर्म करने के लिए प्रेरणा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है लेकिन जब व्यक्ति कर्म करने की आदत को अपने जीवन में अपना लेता है , जब कर्म को अपने जीवन में प्रधान समझने लगता है तो सफलता की राह खुद ब खुद खुल जाती हैं। । जापान जैसे देश को न जाने कितनी त्रास्तियों का सामना करना पड़ा न जाने कितनी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा लेकिन जापान हर बार एक नए जोश, नए उत्साह के साथ पहले से बेहतर तरीके से उठकर विकास की राह पर चल पड़ता है । इसके पीछे जापानी लोगों की कर्म करने की आदत महत्वपूर्ण भूमिका है यही कर्म की प्रधानता होती। चाहे कहानियां हो किस्से हो या कहावत हमें जीवन में कर्म के महत्व को समझाते हैं । युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद ने कहा था “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए।
एक बौद्ध कहावत भी है कि विचार से कर्म की उत्पत्ति होती है और कर्म से आदत की उत्पत्ति होती है आदत से चरित्र की उत्पत्ति होती है और इस तरीके से आपके प्रारब्ध की उत्पत्ति होती है । इस कहावत से स्पष्ट होता है कि आपकी आदत आपकी जिंदगी बदल सकता है । कर्म को मजबूरी नहीं अपनी आदत अपनी जिम्मेदारी बनाए सफलता के रहा है खुद ब खुद खुलती नजर आयेगी ।
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