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धैर्य रखें,चिकित्सा टीम अपना धर्म निभा रही है आप भी अपना धर्म निभाये,
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वह दौर भी क्या दोर था तू बचपन भी क्या बचपन था सामाजिकरण के नाम पर दादी नानी के किस्से सुनाये जाते थे और किस्से प्रेरणा दायक हुआ करते थे । एक संदेश दिया करते थे । ऐसा ही किस्सा बचपन मे मैंने अपनी दादी से सुना जो आज भी मुझे याद है और आज भी मुझे प्रेरणा देता है। किस्सा कुछ यूं था . …..एक साधु सन्यासी हुआ करते थे प्रातः कालीन वह साधु संत पूजा पाठ करने से पूर्व एक सरोवर पर जाते स्नान करते लेकिन जिन सीढ़ियों से वह जाया करते थे उन सीढ़ियों पर उन्हें एक बिच्छू काट दिया करता था हर रोज संत तालाब में स्नान करने जाते हैं उन सीढ़ियों पर बिच्छू ने काट लेता पर हर रोज वह साधु उस बिच्छू को उठाकर किनारे रख देता ।
इस घटना को बहुत सारे लोगों ने देखा और बड़े आश्चर्य में थे और सोचते थे की बिच्छू काटता है संत इसे हर रोज उठाकर पानी के किनारे रख देता है । एक दिन उन्होंने संत से पूछ ही लिया कि यह हर रोज बिच्छू आपको काटता है और आप इसे ने उठाकर किनारे रख देते हो ऐसा क्यों संत ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया कि बिच्छू का अपना धर्म है । हर रोज मेरा पांव इस पर छू हो जाता होगा इसलिए अपने बचाव में अपनी पीड़ा को जाहिर करने के लिए मुझे काट लेता होगा । अपना धर्म निभा रहा है और मैं एक संत एक इंन्सान हूं मेरा भी धर्म है कि मैं उससे उसकी जान की रक्षा करु बिच्छु अपना धर्म निभा रहा है और मैं एक साधु होकर अपना धर्म निभा रहा हूं ।
धर्म और कर्तव्य से मुझे याद आया आज की कोविड- 19 की महामारी के दौर में जब कोरोना संकरणं के नाम से ही लोग डर जाया करते हैं इस दौर में भी कुछ इंसान ऐसे हैं जो अपने और अपने परिवार जनों की जान की परवाह किये बिना अपना धर्म निभाई जा रहे हैं । रात दिन मरीचों की सेवा में लगे रहते हैं ,उनका उपचार करने में लगे हैं, गर्मी में पीपीई किट पहनकर अपना धर्म निभा रहे हैं । इन चिकित्सा कर्मियों की वजह से ही कोविड-19 के संक्रमित मरीज ठीक हो कर घर पहुंच रहे हैं और यही त्याग यही समर्पण यही जज्बा यही अपने कर्तव्य निष्ठा यही अपने धर्म निभाने की सोच उन चिकित्सा कर्मियों को भगवान का दर्जा देता है ।
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बीमार व्यक्ति के परिजन जब एक जिंदगी और मोत की जंग लड़ रहे मरीच को लेकर अस्पताल पहुंचते है तो एक विश्वास लेकर पहुंचते हैं एक उम्मीद लेकर पहुंचते हैं उपचार पर देरी होने पर या किसी कारणवश उपचार नहीं होने के कारण उसके परिजन डॉक्टर्स और चिकित्सा कर्मियों पर अपनी भड़ास निकालने के लिए उतारू हो जाते हैं वह परिजन है ।
अपने परिजन की पीड़ा पर दुख प्रकट करना उनकी मानवीय संवेदना का प्रतीक है वह अपना धर्म निभा रहे हैं जो कि पलभर का आवेश और पीड़ा का परिणाम होता है ,तो एक डॉक्टर होने के कारण अपने धर्म अपने कर्तव्य से कैसे विमुख हो सकता है ऐसे चिकित्सा कर्मी हो ऐसा डॉक्टर को मैं तहे दिल से नमन करता हूं नमन करता हूं मैं उनके जज्बे को नमन करता हूं मैं उनके त्याग और समर्पण को।
कोविड-19 के इस दौर में लगातार चिकित्सा कर्मियों और चिकित्सालय पर बढ़ रहे कार्यभार और दबाव की में ऐसी घटनाएं देखने और सुनने को मिल सकती है । इस दौर में सभी परिजनों से अपील करना चाहूंगा कि वह धैर्य बनाए रखें और भगवान का रूप माने जाने वाले चिकित्सक और चिकित्सा कर्मी को अपना धर्म निभाने दें । उनका अपमान ना करें उनके साथ सहयोग करें । जब उनके साथ सहयोग किया जाएगा उनका हौसला बढ़ाया जाएगा तो निश्चित रूप से हमारे चिकित्सा टीम का मनोबल बढ़ेगा ।
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हमारे देश की अनूठी परंपरा है कि जब भी किसी चुनौती का सामना करना होता है, तो भारतवासियों की अंतर्निहित शक्ति तेजी से बढ़ जाती है। हम सभी को यह याद है कि साठ के दशक में जब खाद्यान्न संकट गहराया था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से हर दिन एक वक्त का भोजन छोड़ देने की अपील की थी और देश ने उनका पूरा साथ दिया था। अब बात अपने-अपने धर्म निभाने की चली है तो सरकार और जनप्रतिनिधि राजनीतिज्ञ मतभेद भूला कर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की प्रर्वती को छोड़कर इस मुसीबत से निकलने के लिए अपना राज धर्म निभाएं , नागरिक अपना नागरिक धर्म निभाएं ।
जब सभी अपने अपने धर्म की पालना करेंगे । संगठित होकर कार्य करेंगे ऐसी विकट समस्या कब आए और कब गई हो जायेगी यह दौर यूं ही निकल जाएगा । बस आप हौसला रखें धैर्य रखें सरकारी गाइडलाइन की पालना कर सहयोग करें ।