किसी भी देश के लोकतंत्र और जनता के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका होना पहली आवश्यकता है । इसलिए कहा जाता है कि ऐसे किसी सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती जिसमें न्यायपालिका का कोई अस्तित्व नहीं हो ।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता में इस बात का भी बड़ा महत्व रखती है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति किस प्रकार से होती है ?  उसमें कितनी निष्पक्षता और पारदर्शिता अपनाई जाती ,उसमे आम जनता का कितना विश्वास है ।

विश्व के विभिन्न देशों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की भिन्न भिन्न प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है । कही व्यवस्थापिका द्वारा तो कही कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति की जाती है, तो कही कोई और तरीका अपनाया जाता है। भारतीय संविधान में राष्ट्रपति (कार्यपालिका प्रमुख) द्वारा नियुक्ति की प्रक्रिया को अपनाया गया है ।

  • संविधान के इस भाग व अनुच्छेद में है उल्लेख

भारतीय संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाने का प्रावधान है । जिंसके लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनायी जाती है । संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 124 से लेकर 147 तक उच्चतम न्यायालय व भाग 6 में अनुच्छेद 214 से 231 तक उच्च न्यायालय के गठन,स्वतंत्रता,कार्यक्षेत्र ,शक्तियां और प्रक्रिया का उल्लेख है।

  • SC/HC के न्यायाधीशों की नियुक्ति

 भारतीय संविधान अनुसार सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

नियुक्ति की इस प्रक्रिया में सर्वोच्च न्यायालय के  मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति – (अनुच्छेद 124(2) – राष्ट्रपति द्वारा अन्य न्यायाधीश एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह से करता है । तथा मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश का परामर्श लिया जाने का प्रावधान है । 

उसी प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति के द्वारा ही की जाती है।  उच्च न्यायालय के  मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल से राय/ मसुहारा जरूर करता है । इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय  उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल व  उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का भी परामर्श लिया जाने का प्रावधान है।

  • दो बार CJI की नियुक्ति में वरिष्ठता का हुआ उलंघन

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता का ध्यान रखा जाता रहा है लेकिन कई बार इस परंपरा का उल्लंघन भी हुआ है । अब तक दो बार वरिष्ठता का उल्लंघन कर कनिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया है। 1978 में हेगड़े ,सेलक, ग्रोवर की वरिष्ठता को छोड़कर अजीत राय को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया । इसके अतिरिक्त 1977 में एच.आर .खन्ना की जगह एच. एम. बैग को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। 

एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ मामला 1981 में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया था और  1993,1998 में  भी विवाद न्यायालय के समक्ष पहुंचा ।
न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर समय-समय पर अनेक वाद न्यायालय के समक्ष आए जिनके निर्णयों के परिणामस्वरूप न्यायाधीशों की नियुक्ति की नई व्यवस्था विकसित हुई ।

  • कॉलेजियम प्रणाली से नियुक्ति

SC/HC के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया तथा नीति प्रक्रिया में परामर्श को लेकर जो 1993 व 1998 वाद सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए उनके परिणामस्वरूप न्यायाधीशों की  नियुक्ति की एक नई प्रक्रिया विकसित हुई जिसे कॉलेजियम प्रणाली कहा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेटस ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ बाद 1993 में उच्चतम न्यायालय ने 7:2 के बहुमत से सहमति को आवश्यक माना। न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली को आधार बनाते हुए स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश ऐसा परामर्श अकेला न देकर अपने दो अन्य श्रेष्ठ सहकर्मियों के साथ विचार करके देगा ।

इसी के साथ 1998 में राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने अनुच्छेद 143 के प्रावधानों के तहत इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा था । उच्चतम न्यायालय ने इस सम्बंध में परामर्श देते हुए स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 124 और 217 में दी गई राय को मानना होगा।

*कॉलेजियम प्रणाली  क्या है ?

कॉलेजियम सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक समिति होती है । इस समिति में 5 सदस्य होते हैं । जिनमे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और 4 अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश होते है । राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति में इस कॉलेजियम समिति के परामर्श पर ही न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनका स्थानांतरण करता है।

  • संविधान में नही है कॉलेजियम प्रणाली का उल्लेख

न्यायाधीशों की नियुक्ति में भले ही कॉलेजियम प्रणाली अहम स्थान रखती हो पर ध्यान रहे कॉलेजियम प्रणाली का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है । इस प्रणाली की शुरुआत सन  1993 के सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद  और 1998 में  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए  गए निर्णय के परिणाम स्वरूप सबसे पहले 1999 व्यवहार में आई थी । 

  • कॉलेजियम प्रणाली पर उठाये सवाल

कॉलेजियम प्रणाली पर भी कई बार सवाल उठाए गए इसी के तहत एक नई प्रणाली की व्यवस्था का प्रयास किया गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार के द्वारा 2014 में कॉलेजियम प्रणाली की जगह एक आयोग बनाए जाने के लिए लोकसभा में एक विधेयक लाया गया। 

  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC)

केंद्र सरकार के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली की जगह NJAC लागू की गई ।

  • सविधान संशोधन व न्यायाधीशों की नियुक्ति

भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय तत्कालीन विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद जी के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव करने के लिए एक विधेयक जो कि 121 वा संविधान संशोधन विधेयक 2014 था संसद में रखा गया । 

यह विधेयक 13 अगस्त 2014 को लोकसभा में तथा 14 अगस्त 2014 को राज्यसभा में पारित हुआ । जिस पर 16 राज्यों की सहमति प्राप्त हुई और 13 अप्रैल 2015 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही अस्तित्व में आया ।

इस संविधान संशोधन के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कि कॉलेजियम प्रणाली की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के माध्यम से की जाने का प्रावधान किया । यह आयोग 13 अप्रैल 2015 से कार्यशील व प्रभाव में आया था । ध्यान रहे 121 वां संविधान संशोधन विधेयक  जो कि 99 वे सविधान संशोधन अधिनियम 2014 के रूप में लागू हुआ । 

  • क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति उनके स्थानांतरण से संबंधित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का प्रावधान किया गया । यह आयोग 6 सदस्य आयोग था जिसमें ….

(1 ) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश – अध्यक्ष (2 ) दो वरिष्ठ न्यायाधीश – सदस्य। (3 ) देश के कानून मंत्री -सदस्य। (4 ) दो अन्य सदस्य – सदस्य 

ध्यातव्य – दो अन्य सदस्यों का चयन /मनोनयन तीन सदस्यों वाली एक समिति करेगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्षी दल के नेता तथा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सदस्य होते हैं ।

  • राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के कार्य

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (ख ) के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का कर्तव्य बताया गया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में परामर्श देना ।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों के एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश करना ।

यह सुनिश्चित करना कि वह व्यक्ति जिसकी सिफारिश की गई है सक्षम और योग्यता सत्यनिष्ठा में विश्वास करता है ।

  • 99 वे संविधान संशोधन अधिनियम को किया रद्द

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को 99 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2014 के द्वारा मान्यता प्रदान की गई थी लेकिन 16 अक्टूबर 2015 को उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की एक पीठ ने 4 : 1 के बहुमत से इस संविधान संशोधन अधिनियम को ही असवैधानिक मानते हुये रद्द कर दिया गया तथा कॉलेजियम प्रणाली को फिर से मान्यता प्रदान कर दी गई ।

 न्यायालय ने यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद में अपने निर्णय में आदेश जारी किया । ध्यान रहे इस वाद को 4th जजेस केस 2015 के नाम से भी जाना जाता है ।

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति और वर्तमान स्थिति

सन 1999 में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित प्रावधानों में कॉलेजियम प्रणाली विकसित हुई थी।  इसके बाद 99 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2014 के द्वारा अप्रेंल 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अस्तित्व में आया  लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस अधिनियम को रद्द कर देने  व कॉलेजियम प्रणाली  की बहाली के बाद अब एक बार फिर से पूर्व की तरह कॉलेजियम प्रणाली अस्तित्व में आ गई  । वर्तमान में इसी प्रणाली से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति होती है । 

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