पश्चिम बंगाल में राज्य विधानसभा के चुनाव के बाद बंगाल में जिस प्रकार का राजनीतिक माहौल बन रहा है, जिस प्रकार की हिंसा हुई है। जिसमें निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं । इन सब को देखते हुए वर्तमान समय में पश्चिमी बंगाल में कुछ बड़ा परिवर्तन होने की आशंका और संभावनाएं नजर आने लगी है। एक तरफ वहां राष्ट्रपति शासन की चर्चाएं जोरों पर है वही दूसरी ओर अब वहाँ कुछ बड़ा होने की संभावनाये नजर आ रही है । जिसमें बंगाल विभाजन की चर्चाएं जोरों पर है ।
- विभाजन की चर्चाओं ने पकड़ा जोर
पिछले दिनो बंगाल में भाजपा के नेताओ की एक मीटिंग हुई है बीजेपी के कार्यकर्ताओं की ओर पदाधिकारियों की और उसमें बंगाल विभाजन, नए राज्य के गठन के इस मुद्दे पर जोर शोर से विचार विमर्श किया गया है । इस मीटिंग में नार्थ बंगाल को बाकी बंगाल से अलग करके यूनियन टेरिटरी (संघ शासित प्रदेश) बनाये जाने की जरूरत बताई । इसके बाद तो मानो इस बारे में चर्चा जोरों पर रही । इसके अतिरिक्त इस बारे में पिछले दिनों नेपाल के एक अखबार में एक स्टेटमेंट छपी उसके बाद यह सुगबुगाहट शुरू हुई थी।
- सांसदों ने की अलग राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश की मांग
पश्चिमी बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के दो सांसद जिन्होंने 13 जून 2021 को एक मीटिंग का आयोजन किया । जिसमें भी बंगाल के विभाजन का समर्थन किया। जॉन बराला ने कहां है कि या तो नार्थ बंगाल में अलग राज्य बनाया जाए या फिर उसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अलग किया जाए क्योंकि वहां के लोगों का और उस क्षेत्र का विकास समान रूप से नहीं हो रहा है ।21 जून 2021 को विष्णुपुर से सांसद सोमित्रा खान ने भी जंगलमहल क्षेत्र को अलग राज्य बनाए जाने की मांग जोरशोर से उठाई ।
बंगाल विभाजन और नए राज्य के गठन के सवाल पर पश्चिमी बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि हमारे कुछ नेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्तर पर यह कहां है । पार्टी का तरह का कोई दृष्टिकोण नहीं है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि कोई भी सांसद इस प्रकार की मांग और इतने बड़े आत्मविश्वास के साथ यूं ही नहीं कह सकता इसके पीछे कुछ न कुछ बात तो जरूर है,जो भी होगा जल्द ही सामने आयेगा । बंगाल के हालातों को देखते हुए राजनीतिक चर्चाओं को देखते हुए वहां पर कोई बड़ा निर्णय होने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि राजनीति होती ही है संभावनाओं का खेल।
डॉ. भारत अग्रवाल ने दैनिक भास्कर अखबार में अपने नियमित स्तंभ ‘पॉवर गैलरी’ में लिखा है कि ”जम्मू-कश्मीर की तरह पश्चिम बंगाल का तीन हिस्सों में विभाजन करने की योजना पर काम चल रहा है। दक्षिण हिस्से को पश्चिम बंगाल कहा जाएगा। मौजूदा पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग के गोरखा इलाके को, माने सिलिगुड़ी कॉरीडोर और दार्जिलिंग को अलग राज्य बनाया जाएगा और मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तरी दिनाजपुर- दक्षिणी दिनाजपुर को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा?”
- बंगाल में विभाजन की मांग का रहा है पुराना इतिहास
बंगाल में विभाजन हो या नई राज्य के निर्माण की मांग हो इसका पुराना इतिहास रहा है । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी ब्रिटिश सरकार के द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए या उसकी एकता को तोड़ने के लिए सन 1905 में बंगाल का विभाजन किया । हालांकि उस विभाजन को 1911 में रद्द करना पड़ा । उसके पश्चात भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के समय भी बंगाल का विभाजन हुआ जिसका एक भाग भारत में और एक भाग पाकिस्तान में चला गया ।
- बंगाल का यह तीसरा विभाजन होगा
वर्तमान समय में बंगाल के विभाजन की जिस प्रकार से मांगे उठ रही है चर्चाएं जोर पकड़ रही है । उससे लगता है कि निकट भविष्य में बंगाल के विभाजन की संभावना से नकारा नहीं जा सकता । विभाजन की यह चर्चाएं अगर धरातल पर आती है और विभाजन होता है तो बंगाल का यह तीसरा विभाजन होगा क्योंकि इससे पूर्व भी सन 1905 में अंग्रेजी शासन काल के दौरान तथा 1947 में भारत विभाजन के समय हुआ था ।
ध्यातव्य
बंगाल ने नए राज्य की मांगो में यह कोई पहली मांग नही है । इससे पगले भी गोरखालैंड दार्जिलिंग क्षेत्र में 1985 – 86 में ऐसी मांग उठी थी बड़ा हंगामा हुआ था, सैकड़ों लोग मारे गए थे। उसके पश्चात 1988 में 1995, 1998 और 2007 में भी बंगाल में नए राज्य के निर्माण की मांगे उठी ।
- जम्मू कश्मीर के प्रयोग को दोहराया जा सकता है
पिछले वर्षों अनुच्छेद 370 को हटाकर जिस प्रकार जम्मू कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया । क्या उसी प्रकार के प्रयोग की ओर बंगाल बढ़ रहा है ।
किसी भी राज्य के विभाजन के लिए संबंधित राज्य के विधानसभा की राय ली जाती है ( सविधान निर्माण के समय भी के टी शाह ने यह मामला उठाया था कि विभाजन के इस प्रकार के विभाजन में लोगों की राय ली जाए) लेकिन उस राय को स्वीकार करने के लिए केंद्र सरकार बाध्यकारी नहीं है । W
एक पल के लिये मान लिया जाए कि अगर बंगाल के विभाजन की बात की जाए तो बंगाल विधानसभा और ममता सरकार यह कभी नहीं चाहेगी कि बंगाल का विभाजन हो, इसलिए वहां से इसकी सहमति मिलना असंभव सा है । इसको देखते हुये संभावनाएं यह बनती है कि अगर केंद्र सरकार इस ओर कदम बढ़ाती है तो जम्मू और कश्मीर के प्रयोग को यहां दोहराया जा सकता है।
- मानसून सत्र और एतिहासिक निर्णय
मानसून सत्र और ऐतिहासिक निर्णय का पुराना संबंध रहा है ।अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और जम्मू एंड कश्मीर का विभाजन मानसून सत्र की ही देन है । सन 2021 में संसद का मानसून सत्र शुरू होने से तत्काल पहले बंगाल के विभाजन की चर्चाएं होना किस ओर संकेत कर रही है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। एक बार फिर से इतिहास दोहराया जा सकता है ।
- नए राज्य के गठन,विभाजन की यह है प्रक्रिया
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 नए राज्यों के निर्माण और गठन तथा वर्तमान राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं या नामों में परिवर्तन की शक्ति संसद विनीत है ।
अनुच्छेद 3 के तहत संसद किसी भी राज्य में उसके राज्य क्षेत्र से अलग अथवा दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर अथवा किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी । किसी राज्य का क्षेत्र बड़ा सकेगी , किसी राज्य के क्षेत्र को कम कर सकेगी तथा किसी राज्य की सीमाओ और उसके नाम में परिवर्तन कर सकेगी ।
विधेयक को राज्य के पास विचारार्थ भेजा जाता है
अनुच्छेद 3 में उपबंध है कि राष्ट्रपति संसद में विधेयक पुनर्स्थापित होने से पूर्व ऐसे किसी विधेयक को संबंधित राज्य अथवा राज्यों के विधान मंडल को विचारार्थ भेजेगा । यदि राज्य विधानमंडल जिसको की विभाजन से सम्बंधित विधेयक भेजा गया है राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित समय अवधि के अंदर उस विधेयक पर अपने विचार व्यक्त नहीं करता है या अपनी राय नही देती है तो राष्ट्रपति विधेयक को संसद में पुनर्स्थापित कर सकता है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि राज्य विधानमंडल से विचार लिया जाता है, उसकी राय ली जाती है निर्णय का अधिकार संसद का ही होता है।