लोकतंत्र की प्रारंभिक पाठशाला पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान भारत में प्राचीन समय से ही विद्यमान रहा है । संविधान लागू होने के पश्चात देश में गठित  पहली लोकतांत्रिक सरकार में पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से 02 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में उद्घाटन के साथ आधुनिक पंचायत राज की शुरुआत हुई।

ध्यातव्य– राजस्थान में पंचायत राज व्यवस्थाओं केे उद्घाटन के समय राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया थे तथा सचिव भगवंत सिंह मेहता थे । ज्ञात हो कि भगवंत सिंह मेहता को ही राजस्थान में आधुनिक पंचायत राज के जनक के नाम से जाना जाता है।

राजस्थान में पंचायत राज 

भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात और संविधान लागू होने से पूर्व जब राजस्थान का एकीकरण प्रक्रियाधीन था, उस समय भी पंचायत राज्य से संबंधित पहली बार संयुक्त राजस्थान संघ के द्वारा पंचायत राज अध्यादेश 1948 लागू किया गया था। इसके अतिरिक्त इसका दूसरा प्रयास राजस्थान पंचायत राज अधिनियम 1953 जो कि 1 जनवरी 1954 को लागू हुआ के तहत पंचायत राज का आधुनिक स्वरूप सामने आया था। इसी अधिनियम के अंतर्गत राजस्थान में पहली बार फरवरी 1954 में आम चुनाव हुए थे।

जब 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान में पंचायत राज का शुभारंभ हुआ तब से लेकर वर्तमान समय तक पंचायत राज संस्थाओं का विकास अनवरत जारी है। राजस्थान में पंचायत राजस्थान व्यवस्था के विकास और पंचायत राज के इस उतार-चढ़ाव के दौर में राज्य सरकार ने जिन समितियों का गठन किया उनमें से कुछ महत्वपूर्ण समितियों व अध्ययन दलों के बारे में जानकारियां निम्न प्रकार से है।

राजस्थान पंचायत राज संस्थाओं से संबंधित विभिन्न समितियां और आयोग।

(1) हरीश चंद्र माथुर समिति/ प्रशासनिक सुधार आयोग 1963

प्रशासनिक सुधार के उद्देश्य से सन 1963 में एक प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन तत्कालीन राजस्थान सरकार के द्वारा किया गया जिसके अध्यक्ष हरीश चंद्र माथुर थे । ज्ञात हो कि इस प्रशासनिक सुधार आयोग को हरिश्चंद्र माथुर समिति के नाम से भी जाना जाता है।

(2) सादिक अली समिति 1964

पंचायती राज व्यवस्था में सुधार के लिए सन 1964 में सादिक अली की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया था । इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की जिनमें पंचायत समिति के प्रधान तथा ज़िला परिषद के प्रमुख का चुनाव इन संस्थाओं के सदस्यों द्वारा किये जाने के स्थान पर एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाना चाहिए । साथ ही उन्होंने इस निर्वाचक मंडल में ग्राम पंचायत के अध्यक्ष तथा सभी सदस्य शामिल होनेे की अनिवार्यता पर बल दिया। 

(3) गिरधारी लाल व्यास समिति1973

 राजस्थान पंचायत राज व्यवस्था में सुधार हेतु सन 1973 में श्री गिरधारी लाल व्यास की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया गया । इस समिति ने अपनी सिफारिशों में ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सेवक के पद का सृजन और उसकी नियुक्ति का प्रावधान करने तथा पंचायत राज संस्थाओं को पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के लिए जैसी महत्वपूर्ण सिफारिशे की। 

ध्यातव्य– हाल ही में ग्राम सेवक के पद का पदनाम ग्राम विकास अधिकारी (VDO)कर दिया गया है।

(4) हरलाल खर्रा समिति 1990 

श्री हरलाल खर्रा की अध्यक्षता में सन 1990 में ग्रामीण पंचायत राज संस्थाओं के लिए आवश्यक सुविधाओं तथा उनकी वित्तीय स्थिति को मध्य नजर रखते हुए इस समिति का गठन किया दया इस समिति ने ग्रामीण क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकताओं पर पंचायत राज संस्थाओं का नियंत्रण बढ़ाने तथा पंचायत राज संस्थाओं को अनुदान देने तथा जिला परिषद के अधीन जिला ग्रामीण विकास अभिकरण को सम्मिलित करने की सिफारिश की।

(5) शिवचरण माथुर समिति 1999

राजस्थान सरकार ने प्रशासनिक सुधारों पर सिफारिश करने के लिए वरिष्ठ नेता शिवचरण माथुर की अध्यक्षता में मई 1999 समिति का गठन किया तथा अप्रैल सन 2000 में इस समिति ने अपनी 11 सूत्रीय सिफारिश सरकार को सौंप दी । ज्ञात हो कि लगभग 2 वर्षों के पश्चात इस समिति की सिफारिशों को लागू करने के उद्देश्य से सन 2002 में तत्कालीन सरकार के द्वारा एक मंत्रिमंडलीय उप समिति का गठन भी किया गया हालांकि इसकी सिफारिशों को लागू नहीं किया जा सका।(

6) कटारिया समिति सन 2009

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता वाली इस 3 सदस्यीय कमेटी का गठन पंचायत राज संस्थाओं के पुनर्गठन के के लिए सिफारिश करने के लिए की गई थी। गुलाबचंद कटारिया के अतिरिक्त इस समिति में प्रभु लाल सैनी एवं यूनुस खान इसके दो अन्य सदस्य थे।

(7) वी. एस. व्यास समिति 2010

वी एस व्यास के अध्यक्षता में गठित इस समिति के परामर्श पर ही राजस्थान सरकार ने पंचायत राज संस्थाओं को पांच नवीन विषय प्रदान किए जैसे महिला एवं बाल विकास, सामाजिक न्याय व अधिकारिता, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कृषि और प्रारंभिक शिक्षा।

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