
लोकतन्त्र में जनता ही अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है । इसमें चुनावो की अहम भूमिका होती है । इनकी निष्पक्षता ही लोकतन्त्र का आधार है । एक बार निर्वाचित हो जाने के बाद उन्हें पूरे कार्यकाल तक झेलना पड़ता है । उन जनप्रतिनिधियों पर जन नियंत्रण जरूरी है ताकि उनमे उत्तरदायित्व का आभास हो सके नही तो वे अपनी मनमानी से काम करेंगे और चुनाव में किये गए वादे को भूल जाएंगे । जनप्रतिनिधि जन अपेक्षाओं में खरा उतरे इस लिए उन पर जन नियंत्रण जरूरी है । राइट टू रिकॉल भी उन्ही में से एक कारगर साधन हो सकता है ।
क्या है राइट टू रिकॉल
जब एक व्यक्ति जिसे चुना गया है । उसे प्रत्यक्ष वोट द्वारा अपने कार्यकाल के अंत से पहले अपने कार्यालय से पूर्व ही हटा दिया जाता है। जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि जब जन अपेक्षाओं में खरा नही उतरता तो उन पर जनता का क्या नियंत्रण होना चाहिये । इसी सिद्धान्त के आधार पर जनता को यह अधिकार मिले की वह उन पर नियंत्रण कर सके, उन्हें वापस बुला सके । बस यही अधिकार राइट टू रिकॉल (RTR) कहलाता है ।
राइट टू रिकॉल (RTR) का शाब्दिक अर्थ होता है निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाना । यह मतदाता को वापस बुलाने का अधिकार प्रदान करता है। जिसे किसी निर्वाचन क्षेत्र के भीतर किसी भी निर्वाचक द्वारा एक निश्चित प्रक्रिया को अपना कर ऐसे जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाया जा सकता है । विश्व के अनेक देशों में इन प्रकार के अधिकार का प्रावधान है। प्राचीन समय मे यूनान में भी इस प्रकार के अधिकार का विकास हुआ था भले ही उसे किसी और नाम से जाना जाता रहा हो । आज अमेरिका और कनाडा भी अनुचित आचरण के आधार पर जनप्रनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार की अनुमति देते हैं।
भारत मे राइट टू रिकॉल
भारत मे भी प्राचीन समय में भी इस प्रकार का प्रावधान था बस उसका नाम और प्रक्रिया अलग जरूर थी । वैदिक काल के दौरान ” राजधर्म ” की अवधारणा राइट टू रिकॉल की अवधारणा के समान थी जिसमे राजा को पद से हटाया जा सकता था । भारतीय स्वतंत्रता से पहले हो या बाद में समय समय पर इस प्रकार की मांग उठती रही है सन 1944 में, महान कम्युनिस्ट मानवेन्द्र नाथ रॉय ने शासन के विकेंद्रीकरण और विचलन का प्रस्ताव रखा था जो कि चुनाव और प्रतिनिधियों को वापस बुलाने की तरफ संकेत था ।
सन 1974 में भी राइट टू रिकॉल के लिए संसद में विधेयक लाया गया था। अटल बिहारी वाजपेय जी ने भी इस बिल/विधेयक का समर्थन किया था लेकिन यह प्रयास सफल नही हो सका क्योंकि यह विधेयक पास ही नही हुआ था।
सन 2016 , वरुण गांधी की शुरुआत की ‘लोग (संशोधन) विधेयक का प्रतिनिधित्व लोकसभा में’ गैर-प्रदर्शन के लिए सांसदों, विधायकों को वापस बुलाने के के प्रावधान की मांग की थी हालांकि यह प्रयास भी असफल ही रहा।
आज भारत में भले ही सांसदों, विधायको के सम्बंध में इस प्रकार के अधिकार का कोई प्रावधान नही है लेकिन अनेक प्रान्तों में स्थानीय संस्थाओं, पंचायतराज संस्थाओं के स्तर पर यह प्रावधान है ।स्थानीय स्तर पर आज भारत के कई राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड,छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में लागू है और हाल ही में हरियाणा में भी पंचायत स्तर पर राइट टू रिकॉल का प्रावधान किया गया है ।
राजस्थान में राइट टू रिकॉल का अधिकार
राइट टू रिकॉल के अधिकार को लेकर राजस्थान में भी गई इसका इतिहास रहा है। राजस्थान सरकार के द्वारा सन 2011 में नगरी पंचायत राज संस्थाओं में इस अधिकार को लागू करने का कार्य किया था ।
राजस्थान विधानसभा द्वारा 22 मार्च 2011 को नगर पालिका अधिनियम में संशोधन हेतु एक विधेयक पारित किया था इस संशोधन में प्रावधान था कि किसी भी शहरी निकाय – नगर निगम, नगर परिषद या नगर पालिका के मुखिया को हटाने के लिए जनमत संग्रह करवाया जा सकता है ।
नगरीय निकाय के मुखिया को पद से हटाने के लिए निकाय पार्षदों के तीन चौथाई बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के बाद उसे जनमत संग्रह हेतु जनता में भेजा जाएगा तथा जनमत संग्रह में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान होने पर मुखिया को पद से हटाया जा सकेगा । लेकिन इसके साथ साथ यह शर्त भी जोड़ दी गई कि यह अविश्वास प्रस्ताव निकाय प्रमुख के पद ग्रहण करने के 2 वर्ष की अवधि से पूर्व नहीं लाया जा सकेगा ।
राजस्थान में राइट टू रिकॉल का पहला प्रयोग
राजस्थान में राइट टू रिकॉल या नगर निकाय की मुखिया को हटाने के लिए जनमत संग्रह के प्रावधान को लागू करने के कुछ ही समय बाद पहली बार राजस्थान के बारां जिले के मांगरोल नगर पालिका में इसका पहला प्रयोग किया गया था । जहां पर नगर पालिका अध्यक्ष अशोक जैन को हटाने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव लाया गया था हालांकि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका और यह पहला ही प्रयास असफल रहा।
राजस्थान में राइट टू रिकॉल की वर्तमान स्थिति
2011 में लागु किए गए इस प्रावधान के राजस्थान में अनुभव अच्छे नहीं रहे या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही यह एक चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन मई 2017 में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम में पुनः संशोधन कर राइट टू रिकॉल के प्रावधान को हटा दिया गया है । अब ऐसा कोई प्रावधान राजस्थान में लागू नहीं है ।
यह है वर्तमान में प्रावधान
राइट टू रिकॉल के प्रावधान को समाप्त करने के बाद आज नगरीय निकाय के तीन चौथाई सदस्यों के न्यूनतम गणपूर्ति वाली बैठक में ऐसे किसी प्रस्ताव पर अधिकतम 4 घंटे चर्चा करने के पश्चात तीन चौथाई योग्य सदस्यों द्वारा समर्थित अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाया जा सकता है । अब जनमत संग्रह के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।