भारतीय संविधान के भाग 3 के अंतर्गत अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया है।इनमे पहला मौलिक अधिकार समानता का मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 14 से 18 तक  में उल्लेखित है। आखिरकार समानता के अधिकार के अंतर्गत किस प्रकार की समानता आती है इसको आज हम विस्तार से जानेंगे।

समानता के अधिकार: अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता एवं विधि का समान संरक्षण प्रदान करता है ज्ञात हो कि यह एक नकारात्मक अधिकार है जो किसी व्यक्ति के विशेषाधिकारो को नकारता है

  • 1.विधि के समक्ष समानता : 

सामान्यतयाविधि के समक्ष समानता का तात्पर्य है कि सभी नागरिक विधि के समक्ष समान समझे जाएंगे या विधि सब पर समान रूप से लागू होगी और कोई विधि से ऊपर नहीं है। 

डायसी से इसे विधि का शासन कहां है । जिसका तात्पर्य है कि शासन प्रशासन विधि के अनुसार चलाया है न कि व्यक्ति की इच्छा अनुसार, इसके अतिरिक्त सभी व्यक्ति बिना किसी विभेद के देश के सामान्य कानूनों से शासित होंगे तथा कोई भी व्यक्ति विधि से ऊपर नहीं है।संविधान देश के सामान्य कानूनों का परिणाम है और संविधान ही  देश का सर्वोच्च कानून है तथा विधायिका द्वारा निर्मित सभी कानून संविधान के अनुरूप होंगे। 

  • भारत में विधि के शासन के स्रोतक्या है ?

विधि के शासन की अवधारणा जर्मन के बीमार संविधान की धारा 109 से ग्रहण की गई है। हालांकि विधि के शासन की अवधारणा ब्रिटेन के संविधान प्रेरित मानी जाती हैं, लेकिन मौलिक अधिकार संबंधी समिति के समक्ष मूल अधिकारों की सूची एवं उसके स्रोतों का उल्लेख करते समय संवैधानिक सलाहकार बी एन राव ने जर्मन के विमर्श संविधान का उल्लेख किया है ब्रिटेन का नही।

ध्यातव्य:संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता की अवधारणा जर्मन के विमर्श संविधान से ली है।

  • भारत में विधि के शासन के अपवाद: 

निश्चित रूप से अनुच्छेद 14 विधि के शासन का उल्लेख करता है लेकिन भारतीय संविधान में ऐसे अनेक अनुच्छेद और प्रावधान है जिसे लगता है क्या भारत में विधि का शासन है या नहीं इन प्रावधानों को हम विधि के शासन का अपवाद कह सकते हैं …।

• भारत में किसी भी प्रकार के आपराधिक एवं न्यायिक कार्यवाही राष्ट्रपति तथा राज्यपाल के विरुद्ध उनकी पद्मावती के दौरान न तो शुरू होगी और न ही जारी रहेगी।

• भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दीवानी कार्रवाई उन्हें 2 महीने के अग्रिम नोटिस दिए बिना प्रारंभ नहीं किए जा सकते ।

• भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 के अनुसार राष्ट्रपति तथा राज्यपाल किसी भी न्यायालय के समक्ष अपनी शक्तियों के प्रयोग के संबंध में किए गए कार्य हेतु किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं होते हैं।

• भारतीय संसद सदस्यों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत आम नागरिकों से अधिक विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं जो कि समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाता है। इसे विधि के शासन का अपवाद नहीं कहा जाए तो क्या कहा जायेगा।

• भारत में प्रवास पर आए विदेशी राष्ट्राध्यक्ष,विदेशी राजनयिक और विदेशी राजदूत भी विधि के शासन से ऊपर होते हैं क्योंकि उनको भी विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।

  • 2.विधि का समान संरक्षण

विधि के समान संरक्षण समानता का एक नकारात्मक रूप माना गया है ,वही विधि का समान संरक्षण समानता का साकारात्मक रूप है। इस अधिकार का तात्पर्य है कि किसी भी प्रकार की समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियो के साथ समान व्यवहार किया जाएगा और समान परिस्थितियों में विधि का सभी को समान संरक्षण प्राप्त होगा, इसमें किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसका सीधा सा तात्पर्य है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत है जो मनमानेपन के खिलाफ हर व्यक्ति को समान संरक्षण प्रदान करता है।

ध्यातव्य :विधियों के समान संरक्षण की अवधारणा अमेरिका संविधान के XIV संशोधन 1868 की धारा 1 से ली हैं।

  • विधिक का समान संरक्षण का अपवाद 

• राज्य  ऐसे प्रावधान कर सकता है जो उचित उद्देश्यों के लिए पुरुषों और महिलाओं के बीच भेदभाव करते हैं इसे इसका उल्लंघन नहीं माना जाता।

• नाबालिक/अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को संविदा करने की अनुमति नहीं देता है। यह नाबालिगों को संविदात्मक दायित्वों, जिन्हें समझने मे वह सक्षम नहीं हो सकते है।

• भारतीय प्रधानमंत्री को भारतीय वायु सेना के विमान को गैर-आधिकारिक कार्यों के साथ-साथ चुनावों में प्रचार के लिए भी उपयोग कर सकता है,इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं माना जाता है। 

• आवश्यकता होने पर सरकार ऐसे कानून का निर्माण कर सकती है जो तर्कसंगत कारणों से कुछ व्यवसायों /वृति पर कुछ प्रतिबंध लगाते हो। इसमें ऐसे कानून भी शामिल हैं जो सरकार को कुछ व्यवसायों का एकाधिकार (मोनोपोली) प्रदान करते हैं। 

ध्यातव्य :कानून के समक्ष समानता’ एक नकारात्मक अवधारणा है क्योंकि इसका तात्पर्य उन विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति से है जो किसी व्यक्ति के पक्ष में हैं या यह किसी प्रकार के भेदभाव का निषेध करता है। दूसरी ओर ‘कानून के समान संरक्षण’ एक सकारात्मक अवधारणा है। 

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