स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारतीयों को संगठित कर स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका निभाने वाला  भारत का पहला राष्ट्रीय संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस था।  1885 ई में स्थापना से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति 1947 के समय तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -1 कांग्रेस का उदारवादी युग, 2 कांग्रेस का उग्रवादी युग 3  कांग्रेस का गांधीवादी युग ।  स्वतंत्रता के पश्चात महात्मा गांधी ने कह दिया था कि अब कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात एक राजनीतिक दल के रूप में कार्य कर रहा है ।

  • कांग्रेस का हाल ही में मनाया 136 वां स्थापना दिवस 

पिछले दिनों 28 दिसंबर 2021 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 136 वां स्थापना दिवस बड़ी ही धूमधाम से पूरे देश मे मनाया गया।  ज्ञात हो कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना आज ही के दिन यानी 28 दिसंबर 1885 ई को व्योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता वाले पहले  बम्बई अधिवेशन में की थी।

स्थापना दिवस मनाए जाने के दौरान सोनिया जी गांधी ने कहा कि” हम 136 साल पुरानी कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया केवल एक राजनीतिक पार्टी ही नहीं बल्कि एक आंदोलन है

  • कांग्रेस की स्थापना का इतिहास

ज्ञात हो कि 25 दिसंबर से 28 दिसंबर 1885 को अंग्रेज सिविल सर्विस के सेवानिवृत्त अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम और शिक्षित भारतीय के प्रयासों से हुई थी । इसीलिए एलन ऑक्टेवियन ह्यूम  को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संस्थापक या जनक भी माना जाता है। एलन ऑक्टेवियन ह्यूम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहले पहले सचिव भी थे  । इन्होंने ही लॉर्ड डफरिन के परामर्श के उपरांत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी।ध्यातव्य- लॉर्ड डफरिन ने कांग्रेस को “सेफ्टी वॉल” की उपमा दी थी। 

  • ए.ओ. ह्यूम ने पत्र लिखकर किया था प्रोत्साहित

अंग्रेज सिविल सर्विस के सेवानिवृत्त अधिकारी एलेन ऑक्टेवियन ह्यूम ने सर्वप्रथम 1883 में कोलकाता विश्वविद्यालय के स्नातकों के नाम एक पत्र जारी किया था । जिसमें भारतीय स्वाधीनता आंदोलन मिलजुलकर व संगठित होकर ही लड़ने की सलाह दी थी। इसी सलाह से प्रभावित होकर कोलकाता विश्वविद्यालय के शिक्षित युवाओं तथा अनेक समाज सेवकों के प्रयासों से जिनमें दादा भाई नौरोजी, महादेव गोविंद रानाडे, सुरेंद्रनाथ बनर्जी अग्रणी थे ने संगठित होने का बीड़ा उठाया । ये युवा पहले से ही ऐसे किसी मंच की आवश्यकता महसूस करते रहे थे डफरिन के इस पत्र ने युवाओं को संगठित होने को प्रेरित किया।

  • इंडियन नेशनल यूनियन नाम से हुई थी स्थापना 

संगठित होने की इस दिशा में सबसे पहला कदम सितंबर 1884 में थियोसॉफिकल सोसायटी के मद्रास अधिवेशन में हुआ था ।उसी के परिणामस्वरूप 1884 में इंडियन नेशनल यूनियन नाम से एक देशव्यापी संगठन की स्थापना की गई थी । इसी कदम के तहत आगे चलकर 25 दिसंबर 1884 को इंडियन नेशनल यूनियन का नाम बदलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस या भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया गया।
० इंडियन नेशनल यूनियन को इंडियन नेशनल कांग्रेस शब्द दादा भाई नौरोजी  की सलाह पर दिया था। 

  • पूना में होना था पर मुंबई में हुआ पहला अधिवेशन 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला स्थापना दिवस पूना में होना था लेकिन पूना में हेजा संक्रमण के कारण तुरंत इसका सम्मेलन मुंबई में आयोजित किया जाना सुनिश्चित किया और यह पहला सम्मेलन 25 दिसम्बर से 28 दिसंबर 1885 को मुंबई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत स्कूल/महाविद्यालय के सभागार में योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ था जिसमें 72 सदस्यों ने भाग लिया था। जिनमें फिरोज शाह मेहता, दादा भाई नौरोजी, एन.जी चंद्राकर, वी राघवाचार्य,काशीनाथ तेलंग ,दिनशा वाचा आदि शामिल थे। 
ध्यातव्य
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष एनी बेसेंट ने कहा था कि ” राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म मातृभूमि की रक्षा करने हेतु 17 प्रमुख भारतीय तथा ह्यूम के द्वारा हुआ था।”वहीं दूसरी ओर इस के संबंध में यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस की स्थापना ए.ओ ह्यूम ने तत्कालीन वायसराय  लॉर्ड डफरिन के मार्गदर्शन और परामर्श से ही की थी ताकि भारतीय जनता में पनप रहे असंतोष की ज्वाला को फटने से रोका जा सके।

  • कांग्रेस का पहला विभाजन

कांग्रेस की स्थापना के करीब 20 वर्षों तक की नीति अंग्रेजी सरकार के प्रति उदार रही थी, लेकिन अचानक अंग्रेजों के प्रति असंतोष, कार्य करने की नीति व अध्यक्ष बनाने के विवाद के परिणामस्वरूप कांग्रेस में ही विचार भेद और मतभेद होने शुरू हो गए ।  इसी के परिणामस्वरूप 1905 तक उग्रवाद की भावना उभर कर सामने आ गई।  इसी कारण 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस में फूट पड़ चुकी थी और यह दो भागों में विभाजित हो गया।  
उदारवादियों और उग्रवादियों का यह मतभेद आगे चलकर 1916 के लखनऊ अधिवेशन में समझौते के साथ समाप्त हुआ और ये दोनों गुट फिर से एक हो गए। जनवरी 1915 को गांधी जी के भारत आगमन के पश्चात लगभग 1920 से कांग्रेस में गांधी जी का वर्चस्व स्थापित हो गया इसीलिए गांधी युग भी कहा जाता है। 

  • कांग्रेस अधिवेशन – कब और कहाँ

1885 ई- बम्बई (वर्तमान मुम्बई) – व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी
 1886 ई. – कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) -दादाभाई नौरोजी
 1887 ई.- मद्रास (वर्तमान चेन्नई) – बदरुद्दीन तैयब जी
 1888 ई.- इलाहाबाद – जॉर्ज यूल
 1889 – बम्बई   – सर विलियम वेडरबर्न
 1890 ई.- कलकत्ता – फ़िरोजशाह मेहता
 1891 ई.- नागपुर   – पी. आनंद चारलू
 1892 ई.- इलाहाबाद – व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी
 1893 ई.- लाहौर – दादाभाई नौरोजी
10  1894 ई.- मद्रास – अल्फ़ेड वेब
11  1895 ई. – पूना – सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
12  1896 ई. – कलकत्ता – रहीमतुल्ला सयानी
13  1897 ई.- अमरावती – सी. शंकरन नायर
14  1898 ई. मद्रास आनंद मोहन दास
15  1899 ई. – लखनऊ – रमेश चन्द्र दत्त
16  1900 ई.- लाहौर – एन.जी. चंद्रावरकर
17  1901 ई. कलकत्ता दिनशा इदुलजी वाचा
18  1902 ई.- अहमदाबाद – सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
19  1903 ई.- मद्रास- लाल मोहन घोष
20  1904 ई- . बम्बई – सर हेनरी काटन
21  1905 ई.- बनारस – गोपाल कृष्ण गोखले
22  1906 ई.- कलकत्ता – दादाभाई नौरोजी
23  1907 ई.- सूरत डॉ. – रास बिहारी घोष
24  1908 ई- . मद्रास- डॉ. रास बिहारी घोष
25  1909 ई.- लाहौर – मदन मोहन मालवीय
26  1910 ई. – इलाहाबाद – विलियम वेडरबर्न
27  1911 ई. – कलकत्ता – पंडित बिशननारायण धर
28  1912 ई.- बांकीपुर – आर.एन. माधोलकर
29  1913 ई- . कराची – नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर
30  1914 ई- . मद्रास- भूपेन्द्र नाथ बसु
31  1915 ई.- बम्बई – सर सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा
32  1916 ई.- लखनऊ – अंबिकाचरण मजूमदार
33  1917 ई.- कलकत्ता – श्रीमती एनी बेसेन्ट
34  1918 ई.- बम्बई – सैयद हसन इमाम
35 1919 ई.- अमृतसर – पं. मोतीलाल नेहरू
# विशेष अधिवेशन 1920 ई.- कलकत्ता – लाला लाजपत राय36 1920 ई-  नागपुर – वीर राघवाचार्य
37 1921 ई.- अहमदाबाद- हकीम अजमल ख़ाँ
38 1922 ई.- गया – देशबंधु चितरंजन दास
39    1923 ई.- काकीनाडा- मौलाना मोहम्द अली
# विशेष अधिवेशन 1923 ई. – दिल्ली – मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
40  1924 ई.- बेलगांव – महात्मा गाँधी
41  1925 ई.- कानपुर- श्रीमती सरोजनी नायडू
42   1926 ई – . गुवाहाटी – एस. श्रीनिवास आयंगर
43  1927 ई.- मद्रास – डॉ.एम.ए. अंसारी
44  1928 ई.- कलकत्ता – जवाहर लाल नेहरु
45  1929 ई.- लाहौर- जवाहर लाल नेहरु
46  1931 ई.- कराची – सरदार वल्लभ भाई पटेल
47  1932 ई.- दिल्ली – अमृत रणछोड़दास सेठ
48  1933 ई.- कलकत्ता- श्रीमती नलिनी सेनगुप्ता
49  1934 ई.- बम्बई – बाबू राजेन्द्र प्रसाद
50  1936 ई. – लखनऊ – जवाहर लाल नेहरु
51  1937 ई.- फ़ैजपुर – जवाहर लाल नेहरु
52  1938 ई. हरिपुरा- सुभाष चन्द्र बोस
53  1939 ई.- त्रिपुरी – सुभाष चन्द्र बोस
54  1940 ई.- रामगढ़ – मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद
55  1946 ई.- मेरठ – आचार्य जे.बी. कृपलानी

ध्यातव्य – आचार्य जे.बी कृपलानी ने 1946 के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की यह दिसंबर 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तथा दिसंबर 1947 तक इस पद पर रहे । इसीलिए स्वतंत्रता के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी ही थे।

आचार्य जे.बी कृपलानी के त्यागपत्र देने के पश्चात दिसंबर 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद बने थे। इसके पश्चात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अगला अधिवेशन 1948 में जयपुर में हुआ था जिसके अध्यक्ष पट्ठाभीसीतारमैया थे।

  • गांधीजी ने की एकमात्र इस अधिवेशन की अध्यक्षता 

महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र 40 में अधिवेशन जो कि 1924 में बेलगांव में हुआ था उनकी अध्यक्षता की थी। 

  • कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

० भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष व्योमेश चंद्र बनर्जी थे।० भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले फारसी अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी  थे ।०भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बदरुद्दीन तैयब जी  थे ।०भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष एनी बेसेंट थी ।(1917) ० भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले अंग्रेज अध्यक्ष जॉर्ज यूल थे ।० भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला भारतीय अध्यक्ष सरोजनी नायडू ।(1925) ० भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम सचिव एलन ऑटोवियन ह्यूम ।

  • स्वतंत्रता से पूर्व कांग्रेस की 3 महिला अध्यक्ष 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से लेकर स्वतंत्रता प्राप्त होने के समय तक तीन महिलाएं इसके अध्यक्ष रही – 

(1) एनी बेसेंट, -1917 

(2) सरोजिनी नायडू – 1925 

(3)नलिनी सेनगुप्ता-1933

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