शंभू कंठ सम सागर नीला आकाश ,
उभय मिलन मानो क्षितिज अभ्यास!
श्वेत पट्टिकाएं सोहे ज्यों निहारिकाएँ
अम्बर भाल त्रिपुण्ड विलसती उल्काएँ!
अम्बर मेघ मल्हार उमड़ घुमड़ आये,
सखि पिया घर आने की आस जगाये,
पछुआ मतवाली हवाएं बहती सन सन,
पिया मिलन आस को उत्सित तन मन!
सागर बीच भँवर नाव अटखेलियां करती,
केसर रंग में रंगी शौर्य पताका बखानती !
बहती हवाओ का रुख बखूबी वो जानती,
उतंग रत्नाकर वीचि नाविक बैठा साहसी!
ए सखि धरा गगन छबि अनुपम निराली,
मयूर कण्ठी गलहार पहने अवनि आळी!
क्षीरनिधि अपने अंक छुपाये माणिक मोती,
व्योम छुपाये अगणित तारकवृन्द की थाती!
- सृजनकर्ता: गोविन्द नारायण के शर्मा